US Saudi Arabia Relations: सऊदी अरब और अमेरिका के बीच दूरियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद से इनके बीच का रिश्ता लगातार कड़वाहट से भर रहा है। इसके पीछे की एक बड़ी वजह ये है कि बाइडेन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) से काफी नफरत करते हैं। दोनों देशों का इस दुनिया में सबसे अहम स्थान है और ऐसे में उनके बीच तनाव पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। अमेरिकी अधिकारियों ने सऊदी अरब को तेल उत्पादन में कटौती करने के चलते गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। इस महीने की शुरुआत में सऊदी अरब ने तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा की थी।
यह घोषणा ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका में मध्यावधि चुनाव होने हैं। इस फैसले से पेट्रोल की कीमतों में इजाफा हुआ है। अमेरिकी सांसदों ने आशंका व्यक्त की है कि तेल उत्पादन में कटौती किए जाने के फैसले पर कभी विचार नहीं किया गया। अमेरिका ने सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री को प्रतिबंधित करने की धमकी दी है। साथ ही न्याय विभाग ने कहा है कि वह सऊदी अरब और ओपेक प्लस के अन्य सदस्य देशों के बीच मिलीभगत के खिलाफ मामला दर्ज करेगा। तेल उत्पादक देशों के इसी संगठन ने तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा की थी। इसका सबसे प्रमुख सदस्य सऊदी अरब ही है।
आमने सामने आए सऊदी अरब और अमेरिका
इस फैसले के बाद से सऊदी अरब और एमबीएस अक्सर अमेरिकी राजनेताओं के निशाने पर रहे हैं। इस पूरे हालात पर दोनों देश एक दूसरे को देख लेने की बात कर रहे हैं। सऊदी अरब के इस फैसले से वित्तीय बाजार और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ने की आशंका जताई गई है।
दोनों देशों की ओर से तनाव को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की जा रही है। सऊदी सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि उनके देश ने अधिक समझदारी से व्यवहार किया है। वहीं व्हाइट हाउस के अधिकारी ने इसका जवाब देते हुए कहा, 'यहां हाई स्कूल रोमांस नहीं चल रहा है।' अगर यही स्थिति बनी रही तो दोनों देशों के रिश्ते खत्म हो सकते हैं।
विश्व अर्थव्यवस्था हो सकती है प्रभावित
इसके खतरनाक परिणाम विश्व अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलेंगे। यूरेशिया समूह के निदेशक क्लेटन एलन ने कहा कि कई वर्षों में पहली बार संबंध इतने तनावपूर्ण हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साल 2020 में कहा था कि अगर सऊदी अरब के मानवाधिकारों का रिकॉर्ड देखा जाए तो इसे 'पायरिया' कहना सही होगा। इस साल जून में जब बाइडेन सऊदी अरब गए थे तो क्राउन प्रिंस के साथ उनकी मुलाकात काफी चर्चा में रही।
अमेरिकी अधिकारियों को लगा कि शायद देश किसी गुप्त समझौते पर पहुंच गया है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और रूस से हाथ मिलाने से सारा खेल ही बदल गया। 5 अक्टूबर को ओपेक प्लस देशों की बैठक के बाद सऊदी अरब ने घोषणा की कि वह तेल उत्पादन में दो प्रतिशत की कटौती करेगा। कहा जा रहा है कि सऊदी अरब ने रूस के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ ये फैसला लिया है। कुछ लोगों ने इसे बाइडेन के चेहरे पर तमाचा भी बताया है।
सऊदी अरब ने क्या कहा है?
ऐसा कहा जा रहा है कि सऊदी अरब ने अपने दबदबे के चलते यह फैसला लिया है। जबकि ओपेक प्लस के बाकी सदस्य देशों का कहना है कि तेल कटौती का फैसला आपसी सहमति के बाद लिया गया है। सऊदी अरब ने भी जोर देकर कहा कि तेल उत्पादन में कटौती का फैसला विशुद्ध रूप से आर्थिक है। उनके मुताबिक इस फैसले का मकसद ऊर्जा बाजार को स्थिर करना है।
सऊदी के मुताबिक केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाई जा रही हैं और ऐसे में वैश्विक मंदी का डर है। देश के कुछ समर्थकों का यह भी तर्क है कि अमेरिका और सऊदी अरब के बीच सुरक्षा संबंध आपसी लाभ के लिए हैं, न कि अमेरिका के किसी एहसान के लिए। एलन का कहना है कि इस पूरे मामले पर दोनों पक्ष एक दूसरे को समझने को तैयार नहीं हैं।
क्या दुनिया में होगा विनाश?
अब आशंका जताई जा रही है कि यह फैसला विश्व अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है। हो सकता है कि सऊदी अरब अमेरिका द्वारा लगाए गए जुर्माने पर कोई बड़ा कदम उठाए। वॉल स्ट्रीट जनरल की ओर से बताया गया है कि सऊदी अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि वह यूएस ट्रेजरी बांड बेच सकता है।
अगर सऊदी अरब अमेरिकी कर्ज लौटा देता है, तो अमेरिका में बाजार अस्थिर हो सकता है और साथ ही पारिवारिक व्यवसाय बर्बाद हो सकता है। सऊदी अरब का अमेरिका पर 119 अरब डॉलर का कर्ज है और वह इतना अधिक कर्ज लेने वाला दुनिया का 16वां देश है। ऐसे में इस मौके पर अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों का खत्म होना दुनिया के लिए तबाही का कारण बन सकता है।