Highlights
- अमेरिका के हालिया कुछ कदम पाकिस्तान के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं।
- भारत के लिए अमेरिका का यह रुख पिछली सदी की याद दिलाता है।
- अमेरिका की मदद के बावजूद पाकिस्तान बड़ी चुनौती पेश नहीं कर सकता।
US Pakistan Relations: अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब पाकिस्तान को अमेरिका का पिट्ठू माना जाता था। बाद में जब अमेरिका का झुकाव भारत की तरफ हुआ तो पाकिस्तान भी चीन के पाले में खिंचता चला गया। चीन ने पाकिस्तान में कई परियोजनाएं खड़ी कीं, पैसे से भी मदद की और ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना के तहत ‘चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर’ पर काम भी शुरू कर दिया। इस तरह धीरे-धीरे पाकिस्तान ने अमेरिका से दूरी बनाते हुए चीन से रिश्ते मजबूत किए और दूसरी तरफ भारत और अमेरिका के संबंधों में भी काफी सुधार आया।
पिछले कुछ महीनों में बदल गई है तस्वीर
हालांकि देखा जाए तो पिछले कुछ महीनों में तस्वीर बदली हुई नजर आती है। पाकिस्तान और चीन के बीच रिश्तों में हाल-फिलहाल थोड़ी खटास देखने को मिली है और यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अमेरिका भी भारत से थोड़ी दूरी बनाते हुए दिख रहा है। दरअसल, अमेरिका को उम्मीद थी कि भारत यूक्रेन पर रूस के हमले का जोरदार विरोध करेगा, लेकिन भारत ने इस मसले पर अमेरिका के हिसाब से चलना मंजूर नहीं किया और अपनी स्वतंत्र नीति के हिसाब से ही युद्ध पर अपना स्टैंड रखा। विशेषज्ञों का मानना है कि यही बात अमेरिका को अखर गई है।
अमेरिका में जनरल बाजवा को खास तवज्जो
पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा फिलहाल अमेरिका में हैं और जिस तरह से उनको तवज्जो दी जा रही है, उसे देखकर लगता है कि ‘अंकल सैम’ एक बार फिर पाकिस्तान को गले लगाने जा रहे हैं। अमेरिका ने आतंकवाद से जंग के नाम पर पाकिस्तान को एफ-16 फाइटर जेट पैकेज भी दिया था, जिसका भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विरोध किया था। पिछली सदी में अमेरिका अक्सर भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के साथ नजर आता था, और बाइडेन प्रशासन शायद उन्हीं यादों को ताजा करना चाहता है।
अमेरिका का मकसद पूरा होना मुश्किल
हो सकता है अमेरिका ने भारत को दबाव में लाने के लिए पाकिस्तान के साथ जाने की चाल चली हो, लेकिन उसकी इस रणनीति के नाकाम होने की संभावना ज्यादा है। पिछली सदी के मुकाबले भारत जहां आज ज्यादा ताकतवर है वहीं पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर खड़ा एक नाकाम स्टेट साबित होता जा रहा है। ऐसे में अमेरिकी डॉलर के बदले पाकिस्तान भले ही भारत के लिए थोड़ी-बहुत मुश्किलें पैदा कर ले, लेकिन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन से निपटने के में अगर भारत ने अमेरिका का साथ नहीं दिया तो उसके लिए ज्यादा मुश्किल पैदा हो जाएगी।