नई दिल्ली। अमेरिका ने चीन के जासूसी गुब्बारे को जबसे फोड़ा है, तब से दोनों देशों के बीच रिश्तों का अंदरूनी गुब्बारा भी फूट गया है। ताइवान पर तनाव के बीच दोनों देश रिश्ते को सामान्य करने की कोशिश में जुटे थे। नवंबर 2022 में इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शी जिनपिंग का गर्मजोशी से स्वागत कर यह जता दिया था कि वह रिश्तों को सामान्य करना चाहते हैं। इस बीच अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन की यात्रा पर जाने वाले थे। उम्मीद जताई जा रही थी कि इसके बाद चीन और अमेरिका के रिश्तों के बीच जमी बर्फ और पिघल सकती है, लेकिन चीन ने अमेरिका में कथित जासूसी गुब्बारा भेजकर रही-सही संभावनाओं को पूरी तरह खत्म ही नहीं किया, बल्कि एक बड़े जंग की पटकथा भी लिख दी है।
अमेरिका और चीन के बीच यह सीधा तनाव रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच उपजा है। अब सवाल है कि चीन का जासूसी गुब्बारा मार गिराए जाने के बाद दोनों देश क्या आपस में भिड़ जाएंगे, आखिर गुब्बारा फोड़े जाने के बाद भी चीन के चुप रहने की मजबूरी या रणनीति क्या है?...पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका और चीन के बीच पैदा हुए इस ताजा तनाव को लेकर हैं। यदि अमेरिका और चीन में सीधे भिड़ंत हुई तो तीसरा विश्वयुद्ध होना तय है। द्वितीय विश्वयुद्ध को अब करीब 8 दशक हो चुके हैं। ऐसे में दुनिया बहुत आगे जा चुकी है। इसलिए तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो तबाही भी दूसरे विश्व युद्ध से कई गुना ज्यादा होगी, जिसे असीमित ही समझा जाना चाहिए।
क्या चीन ने किया अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन
दरअसल अमेरिका के आसमान में पिछले हफ्ते अचानक एक गुब्बारा नजर आया था। अब सवाल यह है कि क्या ये चीनी गुब्बारा अमेरिका में निगरानी कर रहा था? या फिर यह अनुसंधान कार्य में शामिल था जैसा कि चीन ने दावा किया है? इन सवालों का जवाब भले ही तत्काल स्पष्ट न हो लेकिन एक बात साफ है: चीनी गुब्बारे की घुसपैठ ने अंतरराष्ट्रीय कानून की सीमाओं पर प्रश्नचिन्ह जरूर खड़ा किया है। इस घटना ने पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे अमेरिका और चीन के रिश्तों में जटिलता को और बढ़ा दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की बीजिंग की निर्धारित यात्रा स्थगित कर दी गई है, जबकि चीन ने गुब्बारे के मार गिराए जाने पर कूटनीतिक रोष के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की है। दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में अमेरिकी युद्धपोतों की उपस्थिति पर दोनों पक्षों में लंबे समय से गतिरोध है। चीन इसे अपना जलक्षेत्र मानता है, वहीं अमेरिका के नजरिये से यह अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र है।
क्या भिड़ जाएंगे दो महाशक्तियां
सवाल यह भी है कि क्या इसी गुब्बारे को लेकर दो महाशक्तियों के बीच हवा अब टकराव की अगली वजह होगी? लंबा सैन्य इतिहास गर्म हवा के गुब्बारों की कुछ हद तक लोगों के बीच सौम्य सार्वजनिक छवि रहती है। उनका हालांकि एक लंबा सैन्य इतिहास भी है जो 18वीं शताब्दी में यूरोप में नेपोलियन युग और 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक फैला हुआ है, जब गुब्बारों का उपयोग निगरानी और बमबारी अभियानों के लिए किया जाता था। युद्ध के शुरुआती कानूनों में सशस्त्र संघर्ष के दौरान गुब्बारों के सैन्य उपयोग के लिए कुछ विशिष्ट उपाय भी शामिल थे। ड्रोन के दौर में गुब्बारों का सैन्य महत्व हालांकि अब बहुत ज्यादा नजर नहीं आता।
युद्ध के लिहाज से गुब्बारे अब बहुत कारगर भले ही न हों, लेकिन उनमें निगरानी करने की एक अद्वितीय क्षमता कायम है। क्योंकि वे विमान की तुलना में अधिक ऊंचाई पर उड़ते हैं, संवेदनशील इलाके में स्थिर रह सकते हैं, रडार के लिए उनका पता लगाना मुश्किल होता है और वे मौसम का पता लगाने के लिए तैनात गुब्बारे के तौर पर छलावा भी दे सकते हैं। चीनी गुब्बारा 60 हजार फुट की जबरदस्त ऊंचाई पर था।
अमेरिका की इजाजत के बगैर उड़ना गैर कानूनी
चीन के इस गुब्बारे का अमेरिका की इजाजत के बगैर उसके क्षेत्र में उड़ना गैर कानूनी था। अगर वाकई वह जासूसी गुब्बारा नहीं था तो चीन इसके लिए अमेरिका से अनुमति ले सकता था। मगर ड्रैगन ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में कई तरह के सवाल पैदा होते हैं। निगरानी तंत्र ऐसे में अंतरराष्ट्रीय नियमों को देखते हुए चीनी गुब्बारे के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई कानूनी लिहाज से बेहद पुख्ता दिखती है। हवाई क्षेत्र के ऊपर से उड़ान अमेरिका की इजाजत से ही हो सकती थी जिसका साफ तौर पर उल्लंघन हुआ। चीन ने शुरू में गुब्बारे में खराबी का संकेत देने का प्रयास किया और दावा किया की अप्रत्याशित घटना के फलस्वरूप यह अमेरिकी क्षेत्र में दाखिल हुआ।
यदि गुब्बारा अपने आप उड़ रहा होता तो यह पूरी तरह से हवा के रुख के साथ चलता। ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ में एक रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि गुब्बारे पर उच्च स्तर का नियंत्रण नजर आता है, खासकर जब यह मोंटाना में संवेदनशील अमेरिकी रक्षा सुविधाओं पर टिका हुआ प्रतीत होता है। अमेरिका ने इस घुसपैठ से निपटने में बेहद संयम दर्शाया है। गुब्बारों की घटना ने स्पष्ट रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन और चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता के प्रति अमेरिका की प्रतिक्रिया की परीक्षा ली है। आगे क्या होने वाला है यह देखना दिलचस्प होगा।
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