Highlights
- 65 वर्ष से कम उम्र के मरीजों को मृत्यु का खतरा अधिक है।
- कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित होने पर दीर्घकालीन स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
- अध्ययन में वैक्सीनेशन के जरिये रोग की गंभीरता को रोकने के महत्व को रेखांकित किया गया है।
वाशिंगटन: कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित होने के बाद जीवित बचे लोगों की अगले 12 महीनों में मृत्यु होने का खतरा उन लोगों की तुलना में दोगुना से अधिक हो सकता है, जिन्होंने हल्के या मध्यम स्तर के संक्रमण का सामना किया था या असंक्रमित रहे हैं। बुधवार को प्रकाशित एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि 65 वर्ष से कम उम्र के मरीजों को मृत्यु का खतरा अधिक है और सिर्फ 20 प्रतिशत कोविड के गंभीर मरीजों की मौत हुई, जो रक्त के थक्के जमने या श्वसन तंत्र के नाकाम होने के चलते हुई।
फ्रंटियर्स इन मेडिसीन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित होने पर दीर्घकालीन स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंच सकता है और वैक्सीनेशन के जरिये रोग की गंभीरता को रोकने के महत्व को रेखांकित किया।
अमेरिका के फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रोफसर एवं अध्ययन के मुख्य लेखक आर्क मैनस ने कहा, ‘‘हमने एक अध्ययन किया जिसमें यह प्रदर्शित हुआ कि गंभीर रूप से संक्रमित रहने के बाद इससे उबर चुके मरीजों के अगले छह महीनों में अस्पताल में भर्ती होने की कहीं अधिक संभावना है।’’
अनुसंधानकर्ताओं ने 13,638 मरीजों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकार्ड का अध्ययन किया। उनकी आरटी-पीसीआर जांच की गई। उनमें से 178 मरीज कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित थे, 246 को हल्का या मध्यम संक्रमण था तथा शेष की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई थी।
अध्ययन में शामिल किये गये सभी मरीज रोग से उबर चुके थे और अनुसंधानकर्ताओं ने अगले 12 महीने तक उनके स्वास्थ्य का अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया है कि असंक्रमित या हल्के या मध्यम संक्रमण से पीड़ित मरीजों की तुलना में कोविड से गंभीर रूप से पीड़ित रहने के बाद इससे उबरे मरीजों की अगले एक साल में मृत्यु होने की अधिक गुंजाइश पाई गई।