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Salman Rushdie: सलमान रुश्दी की कलम हमेशा से चर्चा में रही, जानें उनके जीवन की पूरी कहानी

Salman Rushdie: सलमान रुश्दी पर मौत का खतरा लगातार मंडराता रहा। वह कई साल ब्रिटेन में रहे और पिछले दो दशक से न्यूयॉर्क में रह रहे थे। हमले के बाद 75 वर्षीय लेखक की हालत गंभीर है और उन्हें पेंसिलवेनिया के एरी में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

Edited By: Shashi Rai @km_shashi
Published on: August 14, 2022 13:34 IST
Salman Rushdie- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Salman Rushdie

Highlights

  • सलमान रुश्दी पर मौत का खतरा लगातार मंडराता रहा
  • करीब 10 साल तक दुनिया से छिपकर रहना पड़ा
  • आखिरकार एक कट्टरपंथी ने उन पर चाकू से हमला कर दिया

Salman Rushdie: सलमान रुश्दी की कलम सदा से चर्चा में रही है। उनके एक उपन्यास को विश्व की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में शुमार किया जाता है और एक अन्य उपन्यास में उनके लिखे शब्दों से एक समुदाय की भावनाएं इस कदर आहत हो गईं कि 44 बरस बीतने के बावजूद उनका रोष कम नहीं हुआ और एक कट्टरपंथी ने उन पर चाकू से हमला कर दिया। अंग्रेजी के मशहूर लेखक सलमान रुश्दी पर 12 अगस्त की रात न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम के दौरान स्टेज पर 'हादी मतार' नामक व्यक्ति ने चाकू से हमला किया और इस घटना ने दुनियाभर के लोगों को उस फतवे की याद दिला दी, जो 80 के दशक के अंतिम वर्षों में जारी किया गया था। इसमें रुश्दी को जान से मारने वाले को भारी रकम देने की पेशकश की गई थी।

रुश्दी पर मौत का खतरा लगातार मंडराता रहा

इन तमाम बरसों में रुश्दी पर मौत का खतरा लगातार मंडराता रहा। वह कई साल ब्रिटेन में रहे और पिछले दो दशक से न्यूयॉर्क में रह रहे थे। हमले के बाद 75 वर्षीय लेखक की हालत गंभीर है और उन्हें पेंसिलवेनिया के एरी में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनके प्रारंभिक जीवन की बात करें तो अहमद सलमान रुश्दी का जन्म 19 जून 1947 को बंबई के एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में हुआ। उनके पिता अनीस अहमद रुश्दी ने कैंब्रिज से पढ़ाई की थी और शुरू में वकालत करने के बाद उन्होंने अपना कारोबार किया। उनकी मां नेगिन भट्ट शिक्षिका थीं। उनकी तीन और बहनें हैं। रुश्दी का बचपन बंबई में गुजरा और उन्होंने शुरुआती शिक्षा दक्षिण बंबई के कैथड्रल और जॉन कैनन स्कूल से ग्रहण की। 

उनका पहला उपन्यास 'ग्राइमस' था

उसके बाद उनके पिता ने उन्हें इंग्लैंड में वारविकशायर के रग्बी स्कूल भेज दिया तथा आगे की पढ़ाई उन्होंने किंग्स कॉलेज कैंब्रिज से की। उन्होंने इतिहास विषय के साथ कला स्नातक की उपाधि ग्रहण की। पढ़ाई पूरी करने के बाद सलमान रुश्दी ने एक विज्ञापन कंपनी में कॉपी राइटर के तौर पर काम किया और इस दौरान उन्होंने अपने बेबाक ख्यालों को काग़ज पर उतारना शुरू कर दिया। उनका पहला उपन्यास ग्राइमस था, जिसकी तरफ ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया, लेकिन अगले उपन्यास ने सलमान रुश्दी को पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया। उनके इस उपन्यास का नाम था ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’, जिसे दुनियाभर में प्रसिद्धि मिली। इस उपन्यास के लिए उन्हें 1981 में बुकर पुरस्कार से भी नवाजा गया। 

 रुश्दी को ब्रिटेन हमेशा मिला सम्मान

इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह हुई कि इसे बुकर द्वारा पिछले चार दशक में पुरस्कृत तमाम विजेता रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ कहा गया और 1993 में इसे ‘बुकर ऑफ बुकर्स’ पुरस्कार से नवाजा गया। रुश्दी को ब्रिटेन में हमेशा एक बेहतरीन लेखक के तौर पर सम्मान दिया गया। साहित्य की सेवा के लिए 16 जून 2007 को महारानी एलिजाबेथ के जन्मदिन पर उन्हें नाइट (सर) की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। इस रचना के बाद सलमान रुश्दी के लेखन का सिलसिला चलता रहा और वह दुनिया के बेहतरीन लेखकों में गिने जाने लगे। 1988 में उनके लिखे एक उपन्यास ने उन्हें एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया, लेकिन इस बार वजह कुछ अलहदा थी। इस्लाम पर आधारित उनकी रचना 'द सेटेनिक वर्सेज’ मुस्लिम समुदाय के लोगों को सख्त नागवार गुजरी और ईरान के दिवंगत सर्वोच्च नेता अयात्तुल्लाह रुहोल्लाह खोमैनी ने 1989 में उन्हें मारने का फतवा जारी करते हुए उन्हें मारने वाले को 30 लाख डॉलर का इनाम देने का ऐलान कर दिया। 

 रुश्दी को करीब 10 साल तक दुनिया से छिपकर रहना पड़ा

उनकी एक रचना को जहां विश्व की बेहतरीन किताब कहा गया, वहीं उनकी इस दूसरी रचना को इतिहास की सबसे विवादित किताबों में शुमार किया जाता है और इसे दुनियाभर के अधिकतर देशों में प्रतिबंधित किया जा चुका है। इस फतवे के कारण अपने सिर पर मंडराते मौत के साए से बचने के लिए रुश्दी को करीब 10 साल तक दुनिया से छिपकर रहना पड़ा। हालांकि इस दौरान रुश्दी की किताब के ट्रांसलेटर्स पर लोगों का गुस्सा उतरा और किताब बेचने वाले बुकस्टोर्स पर हमले किए गए। किताब के प्रकाशन को चार दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद अब लग रहा था कि सलमान रुश्दी सुरक्षित हैं और इसी वजह से वह सार्वजनिक समारोहों में शिरकत भी करने लगे थे। लेकिन उन पर हुआ हमला इस बात का सबूत है कि लोग उनकी कलम से निकले शब्दों से अब तक नाराज हैं और मौका मिलते ही उन्हें खामोश करने की कोशिश की गई। 

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