Highlights
- अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच न्यूक्लियर पनडुब्बी सहयोग पर विचार-विमर्श किया
- विरोधों के बावजूद तीनों देशों ने ये काम किया
- इस बार चीन ने सात समस्याएं पेश की हैं
World News: हाल में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की परिषद ने विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच न्यूक्लियर पनडुब्बी सहयोग पर विचार-विमर्श किया। यह चौथी बार है कि इस संस्था के सदस्य देशों ने स्वयं ही औपचारिक विषय के तरीके से इस सवाल पर चर्चा करने का निर्णय लिया। चर्चा में चीनी पक्ष ने अमेरिका-ब्रिटेन- ऑस्ट्रेलिया न्यूक्लियर पनडुब्बी सहयोग की चार समस्याएं पेश कीं, जिन पर सदस्य देशों ने व्यापक प्रतिक्रियाएं दीं। एक साल पहले अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने विश्व के विरोध को नजरअंदाज कर जानबूझकर ऑकस समझौता (AUKUS) कर यह सहयोग करने का निर्णय लिया, जिसका मकसद अमेरिका और ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया को कम से कम 8 नाभिकीय पनडुब्बियों का निर्माण करने को मदद देना है।
विरोध के बावजूद तीनों देशों ने ये काम किया
विश्लेषकों का मानना है कि तीन देशों के सहयोग में न्यूक्लियर हथियारों की सामग्रियों का स्थानांतरण संबंधित है, जिसका सार न्यूक्लियर प्रसार ही है और यह वैश्विक सुरक्षा को भारी धमकी भी है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया तीनों न्यूक्लियर हथियारों की अप्रसार संधि के संस्थापक देश हैं। तीनों को न्यूक्लियर अप्रसार का कर्तव्य निभाना चाहिए। तीनों के बीच न्यूक्लियर पनडुब्बियों के सहयोग को आईएईए के सदस्य देशों की अनुमति पाने की जरूरत है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विरोध के बावजूद तीनों देशों ने इसे आगे विकसित करने की पूरी कोशिश की।
चीन के साथ कई समस्याएं पेश की
इस बार चीन ने जो सात समस्याएं पेश की हैं, वो मुख्यत: निम्न विषय शामिल हैं। तीनों देश सहयोग में नाभिकीय प्रसार के सार को छिपाने की कोशिश करते हैं और न्यूक्लियर हथियार के गैरकानूनी स्थानांतरण को कानूनी कार्रवाई में बदलने की कुचेष्टा करते हैं। तीनों देशों ने आईएईए के सदस्य देशों को छोड़कर खुद एजेंसी के सचिवालय से वार्ता की और उसे तीनों देशों के सहयोग की निगरानी को मुक्त करने का प्रस्ताव पेश करने के लिए दबाव बनाया।
क्या आईएईए में विभाजन हो सकता है?
आईएईए की संबंधित संधि के मुताबिक सचिवालय और महानिदेशक को भी सदस्य देशों के अनुसार काम करना है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच नाभिकीय पनडुब्बी सहयोग का निर्णय केवल प्रभुसत्ता संपन्न देशों द्वारा लिया जा सकता है। मानों बैंक खुद काले पैसे का निपटारा नहीं कर पाते हैं क्योंकि बैंकों की कोई प्रवर्तन क्षमता नहीं है। तीनों देशों की यह कार्रवाई वास्तव में आईएईए में विभाजन करना चाहती है।
मानव जाति के लिए खतरा है परमाणु
हाल में अमेरिकी पत्रिका द नेशनल इंट्रेस्ट में एक लेख जारी हुआ कि ऑकस समझौता से वाशिंग्टन का दोहरा मापदंड देखा गया है। एक तरफ अमेरिका ऑस्ट्रेलिया के न्यूक्लियर पनडुब्बी पाने को अनुमति देता है, दूसरी तरफ अमेरिका ईरानी नाभिकीय योजना के खिलाफ मजबूत विरोधी रुख प्रकट करता है। आखिरकार कौन विश्व शांति भंग करने वाला है? हालिया दुनिया डांवाडोल की स्थिति में है। परमाणु प्रसार का खतरा बढ़ता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने चेतावनी दी कि मानव जाति और परमाणु हथियारों द्वारा दुनिया को नष्ट करने के बीच केवल एक गलतफहमी या एक गलत निर्णय की दूरी होती है। न्यूक्लियर सुरक्षा की रक्षा करना सभी देशों का समान कर्तव्य है।