संयुक्त राष्ट्र: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पर इजरायल के खिलाफ वोटिंग करके दुनिया की कूटनीतिक महारथियों को चक्कर में डाल दिया है। संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के खिलाफ लाए गए इस प्रस्ताव में भारत फिलिस्तीन के साथ खड़ा दिखा। इतना ही नहीं भारत ने फिलिस्तीन के पक्ष में और इजरायल के खिलाफ में वोटिंग की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस जबरदस्त कूटनीति ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। पूरी दुनिया इस सोच में पड़ गई है कि क्या ये वही भारत है, जिसने 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हमला होने के बाद पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को सबसे पहले फोन किया था और पूरी तरह इजरायल के साथ खड़े होने का न सिर्फ भरोसा दिलाया, बल्कि नेतन्याहू के साथ खड़ा भी रहा। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के खिलाफ पहले भी कई प्रस्ताव लाए गए, लेकिन भारत ने तब या तो इजरायल के पक्ष में वोटिंग किया या फिर मतदान प्रक्रिया से विरत रहा। मगर इस बार भारत खुले तौर पर इजरायल के खिलाफ वोटिंग में फिलिस्तीन के साथ खड़ा नजर आया।
भारत के इस रुख ने विश्व के बड़े-बड़े कूटनीतिज्ञों को भी चक्कर में डाल दिया है। दुनिया सोच रही है कि पीएम मोदी की कौन सी ऐसी डिप्लोमेसी है जिससे वह पक्ष और विपक्ष दोनों को साध लेते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के इस करिश्माई नेतृत्व की हर तरफ चर्चा है। खास बात यह है कि इस प्रस्ताव पर फिलिस्तीन के पक्ष में खड़े होने के बावजूद इजरायल ने भारत से कोई नाराजगी जाहिर नहीं की। आइये अब आपको बताते हैं कि दरअसल पूरा मामला है क्या?
इजरायल के खिलाफ यूएन में लाया गया ये प्रस्ताव
संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने इजरायल के खिलाफ व यूएनजीए के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें पूर्वी यरुशलम सहित 1967 से कब्जाए गए अन्य फिलस्तीनी क्षेत्र से इजरायल से वापस जाने का आह्वान किया गया है। साथ ही पश्चिम एशिया में व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति प्राप्त करने के आह्वान को दोहराया गया है। सेनेगल द्वारा प्रस्तुत ‘फिलस्तीन के प्रश्न का शांतिपूर्ण समाधान’ विषयक मसौदा प्रस्ताव को मंगलवार को 193 सदस्यीय महासभा में भारी बहुमत से स्वीकार कर लिया गया। भारत उन 157 देशों में शामिल था, जिन्होंने इसके पक्ष में मतदान किया।
इन देशों ने की इजरायल के पक्ष और यूएन के खिलाफ में वोटिंग
यूएनजीए के आठ सदस्य देशों - अर्जेंटीना, हंगरी, इजरायल, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी और अमेरिका ने यूएनजीए के प्रस्ताव के खिलाफ और इजरायल के पक्ष में मतदान किया। कैमरून, चेकिया, इक्वाडोर, जॉर्जिया, पैराग्वे, यूक्रेन और उरुग्वे ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। मौखिक रूप से संशोधित रूप में अपनाए गए प्रस्ताव में प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के आधार पर ‘‘पश्चिम एशिया में बिना किसी देरी के व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति की प्राप्ति’’ तथा पूर्वी यरुशलम सहित 1967 में शुरू हुए इजरायली कब्जे को समाप्त करने का आह्वान दोहराया गया।
प्रस्ताव की क्या है मांग
इस प्रस्ताव में ‘‘पूर्वी यरुशलम सहित 1967 से कब्जाए गए फिलस्तीनी क्षेत्र से इजरायल की वापसी’’ और फिलस्तीनी लोगों के अधिकारों, मुख्य रूप से आत्मनिर्णय के अधिकार और उनके स्वतंत्र राज्य के अधिकार को साकार करने का आह्वान किया गया। प्रस्ताव के माध्यम से महासभा ने अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, इजराइल और फलस्तीन के द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए अपने अटूट समर्थन की पुष्टि की जिसके तहत दोनों 1967 से पूर्व की सीमाओं के आधार पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर शांति एवं सुरक्षा के साथ एक साथ रहेंगे। प्रस्ताव में गाजा पट्टी में जनसांख्यिकीय या क्षेत्रीय परिवर्तन के किसी भी प्रयास को अस्वीकार कर दिया गया, जिसमें गाजा के क्षेत्र को सीमित करने वाली कोई भी कार्रवाई शामिल है।
गाजा पट्टी फिलिस्तीन का हिस्सा
प्रस्ताव में इस बात पर भी जोर दिया गया कि गाजा पट्टी 1967 में कब्जे वाले फिलस्तीनी क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और यह ‘‘द्वि-राष्ट्र समाधान के दृष्टिकोण की पुष्टि करता है, जिसमें गाजा पट्टी फिलस्तीन का हिस्सा होगी।’’ प्रस्ताव में सैन्य हमलों, विनाश और आतंकवादी कृत्यों सहित हिंसा के सभी कृत्यों तथा उकसावे वाले सभी कृत्यों को तत्काल और पूर्ण रूप से रोकने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। भारत ने महासभा में एक और प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जिसमें मांग की गई थी कि प्रासंगिक सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के कार्यान्वयन में इजरायल कब्जे वाले सीरियाई गोलन से हटे तथा जून 1967 में तय सीमा रेखा पर लौट जाए।
गोलन हाइट्स दक्षिण-पश्चिमी सीरिया में एक चट्टानी पठार है, जो दमिश्क (सीरिया की राजधानी) से लगभग 60 किलोमीटर दक्षिण में है। यह दक्षिण में यारमौक नदी और पश्चिम में गैलिली सागर से घिरा है। संयुक्त राष्ट्र इस क्षेत्र को सीरिया का हिस्सा मानता है। हालांकि, 1967 में छह दिवसीय युद्ध के दौरान, इजरायल ने गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में 97 मत पड़े जबकि आठ ने इसके विरोध में मतदान किया, वहीं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इजराइल, ब्रिटेन और अमेरिका सहित 64 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं। (भाषा)