Wednesday, November 13, 2024
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सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर फिर UNSC पर बरसा भारत, कहा-"1965 से हो रहा टाल-मटोल"

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ठोस सुधार की कड़ी वकालत की है। भारत का कहना है कि बार-बार स्थाई सदस्यता में सुधार की मांग उठाए जाने के बावजूद परिषद की ओर से 1965 से अब तक टाल-मटोल होता आ रहा है।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: November 12, 2024 15:00 IST
संयुक्त राष्ट्र में अपना पक्ष रखते भारतीय अधिकारी। (प्रतीकात्मक)- India TV Hindi
Image Source : INDIA AT UN, NY/X संयुक्त राष्ट्र में अपना पक्ष रखते भारतीय अधिकारी। (प्रतीकात्मक)

संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थाई सदस्यता में सुधार को लेकर भारत ने एक बार फिर कड़ा तेवर दिखाया है। भारत ने यूएनएससी के मौजूदा ढांचे में ‘मामूली फेरबदल’ की कोशिशों के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि इससे स्थायी सदस्यता में विस्तार और एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के कम प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा सकता है। ये टिप्पणियां संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी हरीश ने सोमवार को ‘सुरक्षा परिषद में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और सदस्यता में वृद्धि का प्रश्न’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक पूर्ण सत्र में कीं।

उन्होंने कहा कि यूएनएससी में सुधार की तत्काल आवश्यकता कई दशकों से सामूहिक रूप से दोहराए जाने के बावजूद, यह ‘‘निराशाजनक है कि 1965 के बाद से इस संबंध में हमारे पास दिखाने के लिए कोई परिणाम नहीं है, जब सुरक्षा परिषद का अंतिम विस्तार केवल अस्थायी श्रेणी में किया गया था।’’ साल 1965 में परिषद की सदस्यता छह निर्वाचित सदस्यों से बढ़ाकर 10 कर दी गई थी। अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) की प्रक्रिया की प्रकृति की ओर इशारा करते हुए, हरीश ने कहा कि अपनी स्थापना के 16 साल बाद, आईजीएन एक-दूसरे के साथ संवाद के बजाय मुख्य रूप से बयानों के आदान-प्रदान तक ही सीमित है। उन्होंने कहा, ‘‘कोई बातचीत का पाठ नहीं। कोई समय-सीमा नहीं। और कोई निश्चित अंतिम लक्ष्य नहीं।”

 

भारत ने कहा-अब इंतजार की स्थिति नहीं

भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि जब वह आईजीएन में वास्तविक ठोस प्रगति चाहता है, जिसमें पाठ-आधारित वार्ता के अग्रदूत के रूप में सुरक्षा परिषद के सुधार के एक नए ‘मॉडल’ के विकास के संबंध में प्रगति भी शामिल है, तो दिल्ली दो मामलों में सावधानी बरतने का आग्रह करती है। हरीश ने कहा कि पहला यह है कि सदस्य राज्यों से जानकारी की न्यूनतम सीमा की खोज से उन्हें अपना मॉडल पेश करने के लिए अनिश्चित अवधि तक इंतजार करने की स्थिति नहीं आनी चाहिए। इसके अलावा, ‘कन्वर्जेंस’ के आधार पर एक समेकित मॉडल के विकास से सबसे कम सामान्य ‘डिनॉमिनेटर’ का पता लगाने की दौड़ नहीं होनी चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि इससे स्थायी श्रेणी में विस्तार और एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियाई देशों के कम प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को अनिश्चित काल के लिए या कहें तो ‘भविष्य में लंबे समय के लिए’ स्थगित किया जा सकता है।

गाड़ी को रखा जा रहा घोड़े के आगे

भारत ने यह भी चिंता व्यक्त की है कि ‘यथास्थिति’ का पक्ष लेने वाले कुछ चुनिंदा देशों द्वारा ‘आम सहमति’ का तर्क दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘उनका तर्क है कि पाठ-आधारित वार्ता शुरू करने से पहले ही ‘हम सभी को हर चीज पर सहमत होना चाहिए’! निश्चित रूप से, हमारे पास ‘गाड़ी को घोड़े के आगे रखने’ का इससे अजीब मामला नहीं हो सकता है।’’ हरीश ने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ के सदस्य के रूप में, भारत का मानना ​​है कि ‘प्रतिनिधित्व’ न केवल परिषद, बल्कि पूरे संयुक्त राष्ट्र की ‘वैधता’ और ‘प्रभावशीलता’ दोनों के लिए अपरिहार्य शर्त है। ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। भारत सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए वर्षों से चल रहे प्रयासों में सबसे आगे रहा है, जिसमें इसकी स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में विस्तार शामिल है।

21 वीं सदी के उपयोग को उपयुक्त नहीं परिषद

भारत का कहना है कि 1945 में स्थापित 15 सदस्यीय परिषद 21वीं सदी के उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं है और समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है। भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि वह सही मायने में संरा सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने का हकदार है। इस साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के ऐतिहासिक ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ में अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि वैश्विक शांति और विकास के लिए वैश्विक संस्थानों में सुधार आवश्यक हैं और सुधार प्रासंगिकता की कुंजी है। (भाषा) 

 

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