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UN पर फिर बरसा भारत, कहा- "21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले जिम्मेदारियां भूल गई महासभा"

भारत ने एक बार फिर "21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले जिम्मेदारियों से पीछे छुड़ाने वाले संयुक्त राष्ट्र की जमकर खिंचाई की। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अपनी मूल जिम्मेदारियों से भटक गया है। मगर अब जरूरत है उसे अपने मूल सिद्धांतों पर वापस आते हुए जिम्मेदारियों के को निर्वहन करने की।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Nov 15, 2023 14:28 IST, Updated : Nov 15, 2023 14:28 IST
संयुक्त राष्ट्र महासभा (प्रतीकात्मक फोटो)
Image Source : AP संयुक्त राष्ट्र महासभा (प्रतीकात्मक फोटो)

भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा की दुनिया के सभी देशों के सामने हवा निकाल दी है। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र तंत्र, खासतौर पर सुरक्षा परिषद 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले चरमरा रहे हैं।जबकि महासभा को बहुपक्षवाद के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को हल करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र के केंद्रीकरण को बहाल करने के लिए नेतृत्व करना चाहिए। मगर संयुक्त राष्ट्र इसमें नाकाम रहा है। वह अपनी वास्तविक और मूल जिम्मेदारियों को भूल गया है। 
 
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में काउंसलर प्रतीक माथुर ने मंगलवार को कहा कि भारत ने लगातार इस दृष्टिकोण की वकालत की है कि महासभा में एक बार फिर तभी जान फूंकी जा सकती है, जब संयुक्त राष्ट्र के मुख्य विचार-विमर्श, नीति-निर्धारण और प्रतिनिधि अंग के रूप में उसकी स्थिति का पूरी तरह सम्मान किया जाए। 'महासभा के कार्य में पुनः जान फूंकने' के विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की पूर्ण बैठक को संबोधित करते हुए माथुर ने कहा, “हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि कुछ दोष महासभा और उसके सदस्य देशों का है, जिन्होंने सभी देशों की सामूहिक आवाज होने के बावजूद इसकी प्रासंगिकता को कम होने दिया।” उन्होंने कहा कि एक ‘‘बढ़ती धारणा’’ है कि महासभा धीरे-धीरे अपनी मूलभूत जिम्मेदारियों से दूर हो गई है और प्रक्रियाओं से अभिभूत हो गई है।

महासभा की भूमिका और अधिकार हुए कमजोर

माथुर ने कहा, “इसके अलावा, सुरक्षा परिषद में विषयगत मुद्दों पर चर्चा करने के प्रयासों ने भी महासभा की भूमिका और अधिकार को कमजोर कर दिया है।” उन्होंने कहा कि भारत का मानना ​​है कि बहुपक्षवाद, पुनर्संतुलन, निष्पक्ष वैश्वीकरण और बहुपक्षवाद में सुधार को लंबे समय तक स्थगित नहीं रखा जा सकता है। माथुर ने कहा, “फिर भी, जब हम बात कर रहे हैं तो हम संयुक्त राष्ट्र तंत्र, खास तौर पर सुरक्षा परिषद को 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले चरमराते देखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुछ जिम्मेदारियां महासभा की ओर मुड़ गई हैं। इससे हमें अधिक मुखरता मिली है । सुरक्षा परिषद की स्थिति के विपरीत ग्लोबल साउथ की आवाज एक दुर्जेय शक्ति है।
 
” ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। ज्यादातर ‘ग्लोबल साउथ’ देश औद्योगीकरण वाले विकास की दौड़ में पीछे रह रह गए। इनका उपनिवेश वाले देश के पूंजीवादी और साम्यवादी सिद्धांतों के साथ विचारधारा का भी टकराव रहा है। माथुर ने इस बात पर जोर दिया कि महासभा को वैश्विक एजेंडा तय करने और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को हल करने के वास्ते बहुपक्षीय दृष्टिकोण तैयार करने में संयुक्त राष्ट्र के केंद्रीकरण को बहाल करने के लिए नेतृत्व करना चाहिए। ​ (भाषा) 

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