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संयुक्त राष्ट्र में रूस से यूक्रेन को क्षतिपूर्ति देने वाले प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा भारत

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ कई प्रस्तावों पर वोट देने से किनारा किया है। भारत ने रूस-यूक्रेन पर तटस्थ रुख अपनाया हुआ है और बातचीत के जरिए मुद्दों को सुलझाने की वकालत करता है।

Edited By: Vineet Kumar Singh @JournoVineet
Published on: November 15, 2022 14:24 IST
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Image Source : FILE संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज।

संयुक्त राष्ट्र: भारत ने यूक्रेन युद्ध के मसले पर सोमवार को एक बार फिर रूस के विरोध में मतदान करने से किनारा कर लिया। भारत ने सोमवार को UNGA में पेश उस मसौदा प्रस्ताव या ड्राफ्ट रेजोल्यूशन पर मतदान से दूरी बना ली, जिसमें रूस को यूक्रेन पर हमला करके अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने के लिए जवाबदेह ठहराने की बात कही गई थी। साथ ही इस लड़ाई से यूक्रेन को हुए नुकसान का मुआवजा रूस से दिलवाने का आह्वान किया गया था।

94 देशों ने पक्ष में किया वोट, 14 ने किया विरोध

यूक्रेन द्वारा पेश मसौदा प्रस्ताव ‘फरदरेंस ऑफ रेमेडी एंड रिपेरेशन फॉर अग्रेशन अगेंस्ट यूक्रेन’ को 193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सोमवार को मंजूरी दे दी। 94 वोट प्रस्ताव के पक्ष में और 14 इसके खिलाफ पड़े। वहीं, 73 सदस्य मतदान में अनुपस्थित रहे, जिनमें भारत, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, मिस्र, इंडोनेशिया, इजराइल, नेपाल, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका शामिल हैं। बेलारूस, चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया, ईरान, रूस और सीरिया ने इस मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।

‘क्या मुआवजा देने की प्रक्रिया से हल निकलेगा?’
भारत ने मतदान से दूर रहने के अपने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सवाल किया कि क्या मुआवजा देने की प्रक्रिया से टकराव का हल निकालने में मदद मिलेगी। उसने इस तरह के प्रस्तावों के जरिए मिसाल कायम करने के प्रयासों के प्रति आगाह भी किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा, ‘हमें निष्पक्ष रूप से विचार करने की जरूरत है कि क्या महासभा में मतदान के माध्यम से एक क्षतिपूर्ति प्रक्रिया संघर्ष के समाधान के प्रयासों में योगदान देगी।’

‘हमें ऐसी कोई मिसाल कायम नहीं करनी चाहिए’
कंबोज ने कहा, ‘इसके अलावा महासभा में लाए गए एक प्रस्ताव के जरिये इस तरह की प्रक्रिया की कानूनी वैधता को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय कानून के पर्याप्त पुनरीक्षण के बिना ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनानी चाहिए या मिसाल कायम नहीं करनी चाहिए, जिसका संयुक्त राष्ट्र के भविष्य के कामकाज और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। हमें उन कदमों से बचने की जरूरत है, जो इस संघर्ष के अंत के लिए बातचीत की संभावना को घटाते हैं या फिर खतरे में डालते हैं।’

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