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संयुक्त राष्ट्र में भारत ने दोस्त रूस का खुलकर दिया साथ, यूक्रेन पर आए इस प्रस्ताव से बनाई दूरी, साथ ही दे दी ये खास सलाह

UN Resolution on Ukraine-Russia: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव से दूरी बनाई है। इसमें रूस को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने के लिए जवाबदेह ठहराने का आह्वान किया गया था।

Edited By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Published : Nov 15, 2022 16:32 IST, Updated : Nov 15, 2022 23:15 IST
यूएम में रूस के खिलाफ लाया गया प्रस्ताव
Image Source : FILE PHOTO यूएम में रूस के खिलाफ लाया गया प्रस्ताव

भारत ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में दोस्त रूस का खुला समर्थन किया। भारत उस मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा, जिसमें रूस को यूक्रेन पर हमला करके अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने के लिए जवाबदेह ठहराने और कीव को युद्ध से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति करने का आह्वान किया गया था। यूक्रेन द्वारा पेश मसौदा प्रस्ताव ‘फरदरेंस ऑफ रेमेडी एंड रिपेरेशन फॉर अग्रेशन अगेंस्ट यूक्रेन’ को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सोमवार को मंजूरी दे दी। 94 वोट प्रस्ताव के पक्ष में और 14 इसके खिलाफ पड़े। वहीं 73 सदस्य मतदान में अनुपस्थित रहे, जिनमें भारत, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, मिस्र, इंडोनेशिया, इजरायल, नेपाल, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका शामिल हैं।

बेलारूस, चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया, ईरान, रूस और सीरिया ने इस मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। भारत ने मतदान से दूर रहने के अपने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए सवाल किया कि क्या क्षतिपूर्ति की प्रक्रिया टकराव का हल निकालने की कोशिशों में योगदान देगी। उसने इस तरह के प्रस्तावों के माध्यम से मिसाल कायम करने के प्रयासों के प्रति आगाह भी किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा, “हमें निष्पक्ष रूप से विचार करने की जरूरत है कि क्या महासभा में मतदान के माध्यम से एक क्षतिपूर्ति प्रक्रिया संघर्ष के समाधान के प्रयासों में योगदान देगी। इसके अलावा, महासभा में लाए गए एक प्रस्ताव के जरिए इस तरह की प्रक्रिया की कानूनी वैधता को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।”

मिसाल कायम नहीं करनी चाहिए- कंबोज

कंबोज ने कहा, “इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय कानून के पर्याप्त पुनरीक्षण के बिना ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनानी चाहिए या मिसाल कायम नहीं करनी चाहिए, जिसका संयुक्त राष्ट्र के भविष्य के कामकाज और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। हमें उन कदमों से बचने की जरूरत है, जो इस संघर्ष के अंत के लिए बातचीत की संभावना को घटाते हैं या फिर खतरे में डालते हैं।”

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