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भविष्य की खोज के लिए जरूरी हुई अंतरिक्ष की सफाई, छोटे देशों की सफलता में रोड़ा बना कूड़ा, आखिर यहां कैसे फैल रही है गंदगी?

Space Debris: जलवायु परिवर्तन की तरह अंतरिक्ष में कचरे की समस्या से केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही निपटा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के रूपरेखा समझौते पर 1992 में रियो पृथ्वी सम्मेलन में हस्ताक्षर किए गए थे।

Edited By: Shilpa
Updated on: October 04, 2022 12:58 IST
space debris- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV space debris

Highlights

  • अंतरिक्ष का कचरा बन रहा बड़ी मुसीबत
  • सैटेलाइट के छोटे-छोटे टुकड़े फैल रहे
  • भविष्य के लिए इसका साफ होना जरूरी

Space Debris: पृथ्वी की परिक्रमा कर रहीं सैटेलाइट्स मानवता की बेहद जरूरी सेवाएं करती हैं। हम इंटरनेट के माध्यम से उनसे जुड़ते हैं, वे मैपिंग और जीपीएस में मदद करती हैं और वे जलवायु परिवर्तन पर नजर रखने के साथ साथ अन्य काम भी करती हैं। लेकिन ‘अंतरिक्ष में कचरा’ हमारी सैटेलाइट के उपयोग को खतरनाक भी बनाता है। सैटेलाइट के छोटे टुकड़े अंतरिक्ष में मलबा जमा कर रहे हैं। अंतरिक्ष से कचरा हटाने की जिम्मेदारी सामूहिक है और यह जलवायु परिवर्तन की तरह ही पर्यावरण की समस्या है। सैटेलाइट की मदद से जलवायु परिवर्तन का प्रबंधन किया जाता है, उसी तरह जलवायु परिवर्तन से सैटेलाइट के मलबे का प्रबंधन किया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन की तरह अंतरिक्ष में कचरे की समस्या से केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही निपटा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के रूपरेखा समझौते पर 1992 में रियो पृथ्वी सम्मेलन में हस्ताक्षर किए गए थे। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का पहला और सबसे जटिल कदम था। इस समझौते में ‘समान लेकिन विभिन्न जिम्मेदारियां’ (सीबीडीआर) नामक सिद्धांत शामिल है। यह कहता है कि देशों को वैश्विक पर्यावरण समस्याएं पैदा करने और इन समस्याओं से निपटने की क्षमताओं में ऐतिहासिक और मौजूदा योगदानों के अनुसार विभिन्न उपायों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।’

औद्योगिक देशों को लेनी होगी बड़ी जिम्मेदारी

दुनिया के देशों ने माना है कि औद्योगिक देशों की विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों के मुकाबले जलवायु परिवर्तन में अधिक हिस्सेदारी रही है और इसलिए उन्हें इसके परिणामों से निपटने के लिए बड़ी जिम्मेदारी लेनी होगी। ‘पॉल्यूटर पेज’ नामक सिद्धांत के अनुसार किसी देश ने किस सीमा तक जलवायु परिवर्तन में योगदान दिया है और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए उसकी कितनी क्षमताएं हैं, इस बात को संज्ञान में लिया जाता है। अंतरिक्ष में कचरा जमा होने से सभी अंतरिक्ष गतिविधियां प्रभावित होती हैं। उन राष्ट्रों की योजनाएं बेकार हो सकती हैं, जिनके पास अभी तक अंतरिक्ष गतिविधियों में शामिल होने के लिए संसाधन नहीं हैं।

विद्वानों ने अतीत से लेकर अब तक इस बात पर विचार किया है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निर्णय प्रक्रिया में किस तरह समन्वय किया जाए। 

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