Highlights
- चीन और अमेरिका का बढ़ रहा तनाव
- ताइवान को लेकर दोनों में विवाद बढ़ा
- वार्ताओं से पीछे हटने का लिया फैसला
China US Tensions: अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पेलोसी की यात्रा के जवाब में चीन ने तीन दिन तक ताइवान के आसपास सैन्य अभ्यास किया और आगे भी ऐसा करते रहने की घोषणा की। इसके अलावा उसने जलवायु परिवर्तन समेत कई मुद्दों पर अमेरिका के साथ जारी महत्वपूर्ण वार्ताओं से पीछे हटने का फैसला किया है। यह कड़ी प्रतिक्रिया आनी स्वाभाविक थी। इससे पहले राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को आग से नहीं खेलने की चेतावनी दी थी। स्वाभाविक है, अगर पेलोसी यात्रा न करतीं तो बाइडेन प्रशासन को संसद में दोनों दलों डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन की कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता।
बाइडेन प्रशासन पर ताइवान को लेकर चीन की धमकी के आगे झुकने, तिब्बत और शिनजियांग से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों पर नहीं बोलने और हांगकांग का जिक्र नहीं करने के आरोप लगते। ऐसे में सवाल उठता है कि दुनिया के दो अग्रणी शक्तिशाली देशों के बीच संबंध कैसे रहे हैं और व्यापार फिलहाल किस स्तर पर है? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए हमें इतिहास के पन्ने खंगालने होंगे। अमेरिका ने 1941 से 1945 के बीच हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के खिलाफ चीनी गणराज्य का साथ दिया था। चीन में हुए गृह युद्ध में माओ जेदोंग के नेतृत्व में साम्यवादियों की जीत के बाद जब 1949 में चीन का नेतृत्व ताइवान भाग गया, तब भी अमेरिका ने माना कि निर्वासित सरकार ही चीन की वैध सरकार है। अमेरिका ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) को संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने से रोक दिया।
अमेरिका के रुख में कब आया बदलाव?
हालांकि मौजूदा चीन को लेकर 1972 में अमेरिका के रुख में तब बदलाव आया जब सोवियत संघ को अलग-थलग करने के इरादे से अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन के दौरे पर गए। निक्सन के दौरे के साथ अमेरिका ने पीआरसी को चीन की एकमात्र सरकार के रूप में मान्यता दे दी और एक चीन सिद्धांत को भी स्वीकार कर लिया। अमेरिका ने ताइवान के साथ अपने संबंधों को कमतर करते हुए इन्हें महज अनौपचारिक रूप दे दिया। अमेरिका ने साम्यवादियों के इस दावे के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की कि ताइवान चीन का एक अलग हुआ प्रांत है, जिसे दोबारा मुख्यभूमि में मिलाया जाना है। इसके बाद अमेरिका और चीन के बीच व्यापार भी शुरू हो गया।
अमेरिका ने 1940 से चीन पर लगे व्यापर प्रतिबंध को हटा लिया। माओ के उत्तराधिकारी देंग शियाओपिंग के शासनकाल में 1980 में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध बेहतर हुए, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था को फलने-फूलने में मदद मिली, तो अमेरिका को भी इसका फायदा हुआ। पश्चिमी विनिर्माण कंपनियों ने या तो चीनी कंपनियों से काम कराया या फिर खुद चीन में अपने कारखाने स्थापित किए। सस्ते उत्पादन के चलते उन्हें फायदा हुआ। बदले में, चीनियों ने जबरदस्त विनिर्माण क्षमता हासिल कर ली। जैसे-जैसे चीन का मध्यम वर्ग अमीर होता गया, देश अमेरिकी कंपनियों जैसे एप्पल और जीएम के लिए एक प्रमुख उपभोक्ता बाजार बन गया। लेकिन इसके साथ ही दोनों देशों के बीच विश्व अर्थव्यवस्था के पटल पर वर्चस्व कायम करने की होड़ भी शुरू हो गई।
जीडीपी पर चीन-अमेरिका का कब्जा
साल 1980 से 2020 के बीच दुनिया भर में सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक हिस्से पर चीन और अमेरिका का कब्जा रहा। अमेरिका की जीडीपी में पांच गुना वृद्धि हुई, जो 4.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 20.9 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गई। दूसरी ओर, चीन की जीडीपी ने 310 अरब डॉलर से बढ़कर 14.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक का मुकाम हासिल कर लिया। हालिया कुछ वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच कई मुद्दों पर टकराव देखने को मिला है, जिसका असर उनके बीच होने वाले व्यापार पर भी दिखा है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में चीन से आयातित सामान पर अतिरिक्त शुल्क लगाया और 2020 में विभिन्न अर्धचालित निर्माण प्रौद्योगिकियों तक चीन की पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया, जबकि चीन ने भी पलटवार करते हुए कई कदम उठाए।
ट्रंप ने कोविड-19 के प्रसार के लिए भी चीन को दोषी ठहराया और उससे इसकी जिम्मेदारी लेने की भी मांग की। ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका और चीन के रिश्तों में काफी खटास देखी गई। जब 2021 में राष्ट्रपति बाइडन ने पदभार संभाला, तो उन्होंने शिनजियांग में मानवाधिकारों के मुद्दों और ताइवान के लिए खतरे के बारे में लंबे समय से मिल रहीं शिकायतों पर बोलना शुरू कर दिया। उन्होंने कुछ चीनी कंपनियों पर कुछ ऐसे प्रतिबंध भी लगाए जो माओ-युग में लगे व्यापार प्रतिबंध के बाद से कभी नहीं देखे गए।
बाइडेन ने 2022 में चीन पर शिनजियांग प्रांत में बंधुआ मजदूरी कराने का आरोप लगाते हुए प्रांत से आने वाली वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जिससे कई पश्चिमी कंपनियों द्वारा सामान की खरीद प्रभावित हुई। इसके बाद चीन ने कथित तौर पर श्रमिकों को देश के अन्य हिस्सों में स्थानांतरित कर दिया ताकि पश्चिमी कंपनियां खरीदारी जारी रख सकें। ऐसे में साल 1980 के बाद दोनों देशों के व्यापार संबंधों में जो नजदीकी आई थी, उसमें ताइवान, शिनजियांग, कोविड-19 और मानवाधिकार जैसे मुद्दों के चलते धीरे-धीरे दरार पैदा होती जा रही है। लिहाजा, आने वाले समय में दोनों देशों के बीच संबंध और खराब होने की आंशका जताई जा रही है।