Highlights
- बीआरआई को लगातार बढ़ा रहा चीन
- कई देशों में किया निर्माण का काम
- जवाब में पीजीआईआई लाए पश्चिमी देश
China BRI VS West PGII: दुनिया में इस वक्त एक अजीबो-गरीब दौड़ चल रही है। ये दौड़ है विभिन्न देशों में बुनियादी ढांचा बनाने और उसमें निवेश करने की। दौड़ में एक तरफ अनुभवी खिलाड़ी चीन खड़ा है, जिसकी बेल्ट एंड रोड पहल काफी हद तक फैल चुकी है। तो दूसरी तरफ इस प्रतियोगिता में अमेरिका की भी एंट्री हो गई है। इस साल जून महीने में बाइडेन और जी-7 देश के नेताओं ने एक परियोजना में 600 बिलियन डॉलर का निवेश करने की बात कही थी। ‘वैश्विक अवसंरचना एवं निवेश भागीदारी’ (पीजीआईआई) योजना उसी योजना का संशोधित रूप है, जिसे बीते साल ब्रिटेन में हुई बैठक में घोषित किया गया था। इसके पीछे का मकसद भारत जैसे विकासशील देशों में ढांचागत परियोजनाओं का क्रियान्वयन करना है।
इसके लिए अकेले अमेरिका ही 200 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है। एशिया दोनों देशों (चीन और अमेरिका) के निर्माण मानचित्र में शामिल है। लेकिन यह प्रतियोगिता सृजन से अधिक वर्चस्व की दिखाई दे रही है। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जून 2022 में जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में 'वैश्विक अवसंरचना एवं निवेश भागीदारी' (पीजीआईआई) के शुरू होने के बाद इसे आकर्षण और संदेह दोनों तरह की नजरों से देखा गया था। विकासशील देशों के लिए बुनियादी ढांचे का विकास सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि उनकी क्षमताएं सीमित हैं। 2013 से 2020 के बीच चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत दुनिया भर में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं में करीब 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। चीन निर्माण कार्य और निवेश के जरिए छोटे देशों में बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, लेकिन ये देश चीन के बढ़ते आधिपत्य को लेकर चिंता में हैं।
PGII के जरिए मुकाबला करेंगे पश्चिमी देश
पश्चिमी देश शुरू से ही चीन की परियोजनाओं को लेकर चिंता जताते रहे हैं और अब वह इसका विकल्प लेकर आगे आए हैं। पीजीआईआई चीन का सामना करने के लिए सबसे बड़ी परियोजना है लेकिन इसके भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि बुनियादी ढांचे के लिए निजी तौर पर पैसा जुटाने की योजना सफल होगी या नहीं। अधूरे प्रयासों का इतिहास पश्चिम के बुनियादी ढांचे की पहल की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रहा है। विकासशील देशों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अब इनसे मिलने वाले लाभ को देखना होगा।
चीन से ज्यादा लाभ दे रहे पश्चिमी देश
विकासशील देशों के लिए पीजीआईआई काफी दिलचस्प है। बुनियादी ढांचे के विकास के मामले में चीन के बीआरआई के मुकाबले पीजीआईआई के प्रस्तावों में जलवायु सुरक्षा, डिजिटल कनेक्टिविटी, लैंगिक समानता और स्वास्थ्य सुरक्षा शामिल हैं। ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें पश्चिमी कंपनियां अपने चीनी समकक्षों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त कर सकती हैं, खासकर स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ा समाधान देने में। निजी पूंजी जुटाकर बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण में 600 बिलियन डॉलर जुटाने का जी-7 देशों का वादा भी खास है। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए बीमा और पेंशन फंड देना फायदे का सौदा हो सकता है और विकासशील देशों को बुनियादी ढांचे के अंतर को पाटने और चीन से मुकाबला करने में मदद कर सकता है।
इस क्षेत्र में चीन के अलावा कोई नहीं हुआ सफल
पीजीआईआई के भविष्य को लेकर भी कई चिंताएं हैं। विकासशील एशियाई देशों में लैंगिक समानता के मामले में इसकी कोशिश कमजोर हो सकती है। लेकिन पीजीआईआई की विश्वसनीयता की समस्या और भी ज्यादा गंभीर है। चीन के अलावा, बुनियादी ढांचे की पहल का खराब ट्रैक रिकॉर्ड भी पीजीआईआई को प्रभावित कर सकता है। पहले से ही गुणवत्तापूर्व बुनियादी ढांचे के लिए जापान की पार्टनरशिप के अलावा यूरोप और एशिया के लिए यूरोपियन यूनियन कनेक्टिविटी स्ट्रैटेजी और ईयू-इंडिया कनेक्टिविटी पार्टनरशिप जैसी पहल अधर में पड़ी हुई हैं।
एशिया के विकासशील देशों के लिए बड़ा अवसर
चीन की बीआरआई पहल और पश्चिमी देशों की पीजीआईआई पहल के बीच कई अंतर साफतौर पर दिखाई दे रहे हैं। चीन की दक्षिणपूर्वी एशिया में हाई-स्पीड रेलवे से लेकर हाइड्रोपावर प्लांट तक कई योजनाएं हैं लेकिन क्षेत्र में पश्चिमी देशों की एक से अधिक परियोजनाओं की गिनती कर पाना भी मुश्किल है। पीजीआईआई सफल होगा या नहीं, ये तो केवल वक्त ही बता पाएगा लेकिन कम उम्मीद होने के बावजूद भी एशिया के विकासशील देशों को इसपर अपनी निगाहें बनाकर रखनी चाहिए। क्षेत्र में दो बुनियादी ढांचा मॉडल की मौजूदगी से एशियाई देशों के लिए बेहतर डील करने पर बातचीत करना आसान हो जाएगा।