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America scared of Taliban: तालिबान के सामने अमेरिका ने टेके घुटने, अपने ठेकेदार को रिहा कराने के लिए तालीबानी आतंकी को छोड़ा

America scared of Taliban: दुनिया के मोस्ट पॉवरफुल देश अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान में घुसकर कभी लादेन को मारा हो तो कभी अफगानिस्तान में घुसकर अलकायदा के दूसरे सरगना अलजवाहिरी को मौत के घाट उतार दिया हो, लेकिन तालिबानी आतंकवादियों से डर गया है।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Sep 19, 2022 17:34 IST, Updated : Sep 19, 2022 17:51 IST
Bashir Noorzai
Image Source : INTERNET MEDIA Bashir Noorzai

Highlights

  • तालिबानी आतंकी नूरजई ने खुद खोली अमेरिका की पोल
  • अमेरिका ने अपने ठेकेदार मार्क फ्रीरिच को रिहा कराने के बदले आतंकी को छोड़ा
  • तालीबान ने अमेरिका को दिखा दी उसकी औकात

America scared of Taliban: दुनिया के मोस्ट पॉवरफुल देश अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान में घुसकर कभी लादेन को मारा हो तो कभी अफगानिस्तान में घुसकर अलकायदा के दूसरे सरगना अलजवाहिरी को मौत के घाट उतार दिया हो, लेकिन तालिबानी आतंकवादियों से उसे डर लगता है। अमेरिका ने ताबिलबान के सामने घुटना टेक दिया है। अमेरिका ने अपने एक ठेकेदार को रिहा कराने के बदले तालिबानी आतंकी को जेल से छोड़ दिया है। इस सनसनीखेज खबर ने पूरी दुनिया के सामने विश्व के सबसे ताकतवर देश की अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती करा दी है। हालांकि अमेरिका ने इस मामले में अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। आइए अब आपको बताते हैं कि तालिबान ने अमेरिका को कैसे डराया और इस डर के बदले में अमेरिका को क्या करने पर मजबूर कर दिया।

बता दें कि अफगानिस्तान में इन दिनों तालीबानी आतंकियों की सरकार है। अफगानिस्तान का एक अपराधी अमेरिका की जेल में करीब 17 वर्षों से बंद था। यह तालिबानी आतंकी संगठन का सदस्य था। जब अफगानिस्तान में तालिबानियों की सरकार बनी तो अपने साथी को छुड़ाने के लिए उसने अमेरिका पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। दरअसल इससे पहले अमेरिका ने अफगानिस्तान की जेल में बंद एक अमेरिकी ठेकेदार को छोड़ने के लिए तालिबान से कहा था, लेकिन तब वह नहीं माना। तालिबान ने इस पर सौदेबाजी करते हुए अमेरिकापर यह कहकर दबाव बना दिया कि वह अमेरिकी ठेकेदार को तभी छोड़ेगा, जब इसके बदले में तालिबानी सदस्य को अमेरिका छोड़ दे। इसके बाद अमेरिका ने वही किया।

तालिबानी कैदी ने खुद खोला अमेरिका का राज

अमेरिकी अधिकारियों ने तालिबान के दबाव में आकर उसके सदस्य को छोड़ दिया और अपने ठेकेदार को छुड़ा लिया, लेकिन यह सब किसी को पता नहीं चलने दिया। मगर अमेरिका की पोल तब खुल गई जब तालिबानी कैदी अमेरिका से छूटकर अफगानिस्तान पहुंचा और उसने यह बात मीडिया में बता दिया। इससे पूरी दुनिया में हलचल मच गई है। गुआंतानामो जेल में सालों कैद रहने के बाद रिहा वरिष्ठ तालिबानी ने सोमवार को दावा किया कि अफगानिस्तान में कैद अमेरिकी ठेकेदार के बदले उसे रिहा कर काबुल में तालिबान के सुपुर्द किया गया है। मादक पदार्थ धंधे का सरगना और तालिबान का सदस्य बशीर नूरजई ने काबुल में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उसने गुआंतानामो बे स्थित अमेरिकी कारागार में 17 साल व छह महीने बिताए और वहां से रिहा होने वाला वह आखिरी तालिबानी कैदी है।

विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका और तालिबान के संबंधों का यह नया युग
नूरजई के साथ तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने भी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। उसने इस अदला-बदली का स्वागत करते हुए कहा कि यह अमेरिका और तालिबान के संबंधों का ‘नया युग’ है। मुत्तकी ने बताया कि 31 जनवरी 2020 को अफगानिस्तान से अपहृत पूर्व अमेरिकी नौसैनिक और सिविल कॉन्ट्रेक्टर मार्क फ्रीरिच को रिहा किया गया है। पिछले साल न्यूयॉर्क की एक पत्रिका ने फ्रीरिच का वीडियो साझा किया था जिसमें वह रिहा करने की गुहार लगाता दिख रहा है। ताकि वह अपने परिवार के साथ दोबारा मिल सके। फ्रीरिच ने वीडियो में कहा कि इसे नवंबर में रिकॉर्ड किया गया है। फ्रीरिच इलिनॉयस का रहने वाला है और माना जा रहा है कि हक्कानी नेटवर्क से जुड़े तालिबान ने उसे बंधक बनाया था। अमेरिका के अधिकारियों ने उसे रिहा कराने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रहे।

बदले में छोड़ा गया अमेरिकी ठेकेदार
अमेरिका से रिहा तालीबानी नूरजई ने दावा किया कि अमेरिका ठेकेदार अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा दो साल से अधिक समय पहले बंधक बनाया गया था। वह हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों के कब्जे में था। अब तक अमेरिका उसे छुड़ाने में सफल नहीं हो पाया था। मगर तालिबान से संपर्क करने के बाद इस अदला-बदली की शर्त पर ठेकेदार को छोड़ दिया गया है। अमेरिकी ठेकेदार मार्क फ्रेरिक्स के परिवार ने कहा कि उन्हें छोड़ दिया गया है। इससे जाहिर हो रहा है कि अमेरिका तालिबान से डरता है। इसीलिए अफगानिस्तान में तालिबानियों को स्वीकार्य करने में भी अमेरिका को जरा भी हिचक नहीं हुई।

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