नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध की बरसी से पहले रोजाना घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। जो बाइडन की औचक यूक्रेन यात्रा के बाद रूस तिलिमला उठा है। आक्रोश में आए पुतिन ने पहले राष्ट्र के नाम संबोधन करके यूक्रेन युद्ध के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने अमेरिका पर यूक्रेन में ईराक-सीरिया जैसा खेल खेलने का आरोप भी लगाया और फिर वह कर डाला जिसकी कल्पना न अमेरिका ने की थी और न ही विश्व ने। दरअसल पुतिन ने अमेरिका के साथ परमाणु हथियार नियंत्रण संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। ऐसा करके पुतिन ने दुनिया को साफ संदेश दे दिया कि अब वह यूक्रेन युद्ध जीतने के लिए परमाणु हमले की हद तक भी जा सकते हैं। रूस की इस खतरनाक मंशा से अमेरिका भी बौखला उठा है। अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि परमाणु हथियार नियंत्रण संधि को निलंबित करके पुतिन ने बड़ी गलती कर दी है।
यूक्रेन युद्ध को लेकर अब रूस और अमेरिका बिलकुल आमने-सामने आ गए हैं। इधर रूस ने अमेरिका के कट्टर दुश्मन चीन से संबंधों को मजूबत बनाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति के लिए शी जिनपिंग का समर्थन मांग लिया है। ऐसे में तेजी से बदलते घटनाक्रमों ने दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने में झोंक दिया है। जहां से लौट पाना अब मुश्किल लग रहा है। आपको बता दें कि पूरी दुनिया में जितने परमाणु हथियार हैं, उसके चार से पांच गुना परमाणु हथियार अकेले रूस रखता है। अगर रूस ने परमाणु हमला करना शुरू किया तो भी दुनिया का बच पाना मुश्किल होगा। जब तक दूसरे देश रूस को जवाब देने की सोच रहे होंगे, तब तक पुतिन आधी दुनिया में तबाही मचा चुके हैं।
तबाही से बचा सकता है भारत
रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर बढ़ते तीसरे विश्व युद्ध की आशंका के मद्देनजर अब दुनिया को भारत से ही उम्मीद दिखाई दे रही है। जर्मनी ने रूस-यूक्रेन युद्ध को तत्काल रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारत का समर्थन मांग लिया है। वह इसी हफ्ते के आखिर में पीएम मोदी से मिलने भारत भी आ रहे हैं। इस दौरान यूक्रेन युद्ध के अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती तानाशाही भी प्रमुख मुद्दा होगा। दुनिय के अन्य देश भी मानते हैं कि भारत ही विश्व को न सिर्फ रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की तानाशाही से होने वाले खतरे से टाल सकता है, बल्कि वह तीसरे विश्व युद्ध की आशंकित तबाही से भी दुनिया को बचा सकता है।
बाइडन ने पुतिन को ललकारा
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को कहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका एवं रूस के बीच परमाणु हथियारों की नियंत्रण संधि के आखिरी बचे हिस्से से अपने देश की भागीदारी निलंबित करके 'बड़ी गलती' की है। अमेरिकी राष्ट्रपति उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के पूर्वी हिस्से के सहयोगियों को आश्वस्त करने के लिए पोलैंड पहुंचे थे। उन्होंने इन सहयोगी देशों को आश्वस्त किया कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बावजूद अमेरिका उन सभी देशों के पक्ष में खड़ा रहेगा। परमाणु हथियार नियंत्रण संधि से पीछे हटने की पुतिन की घोषणा के बाद अमेरिका में खलबली मच गई है। बाइडन ने रूस के इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि जब यह संधि हुई थी तो इसे एक नयी शुरुआत की संज्ञा दी गयी थी। परमाणु मुखास्त्र और मिसाइल निरीक्षण के रूसी सहयोग को निलंबित करने का निर्णय वर्ष 2022 के अंत में मॉस्को द्वारा रद्द की गई वार्ता का अनुसरण करता है। बाइडन की यह चेतावनी ऐसे वक्त आई है जब वह पोलैंड और यूक्रेन की अपनी चार-दिवसीय यात्रा को समेटने के क्रम में ‘बुखारेस्ट नाइन’ के नेताओं के साथ बातचीत कर रहे थे।
क्या है बुखारेस्ट 9
नाटो गठबंधन के सबसे पूर्वी हिस्से के नौ देशों को ‘बुखारेस्ट नाइन’ कहा जाता है। ये देश 2014 में उस वक्त एक साथ आए थे, जब पुतिन ने यूक्रेन से क्रीमिया को अलग करके उस पर कब्जा कर लिया था। जैसे-जैसे यूक्रेन में युद्ध खिंचता जा रहा है, ‘बुखारेस्ट नाइन’ देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं। कई लोगों को चिंता है कि यूक्रेन में सफल होने के बाद पुतिन उन देशों के खिलाफ भी सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं। इससे यह सभी देश भी घबरा गए हैं। अमेरिका उन देशों को हौसला देने के प्रयास में है। मगर घबराहट ने उनकी बेचैनी बढ़ा दी है। ये देश जानते हैं कि पुतिन सनक गए तो वह कुछ भी कर सकते हैं। इन नौ देशों में चेक गणरज्य, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, रोमानिया और स्लोवाकिया शामिल हैं। बाइडन ने “जब रूस ने यूक्रेन पर एक वर्ष पहले आक्रमण किया तो यह केवल यूक्रेन के लिए परीक्षा नहीं थी, बल्कि यह यूरोप और अमेरिका के लिए भी कड़ी परीक्षा थी। साथ ही साथ नाटो और सभी लोकतांत्रिक देशों की भी परीक्षा थी।
बाइडन ने कहा कि पुतिन में निरंकुशता की भूख
अमेरिका के राष्ट्रपति ने पुतिन का नाम लिए बगैर उन्हें निरंकुश करार दिया और कहा कि "निरंकुशता की भूख को संतुष्ट नहीं किया जा सकता है। इसका विरोध किया जाना चाहिए। बाइडन ने मंगलवार को वारसॉ में मोल्दोवा की राष्ट्रपति माइया सैंडू से भी मिले। सैंडू ने बीते हफ्ते दावा किया था कि रूस बाहरी ताकतों का उपयोग करके उनके देश की सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश कर रहा है। यूक्रेन और रोमानिया के बीच स्थित और यूरोप के सबसे गरीब देशों में से एक मोल्दोवा का रूस से ऐतिहासिक संबंध रहा है, लेकिन वह 27 देशों के यूरोपीय संघ में शामिल होना चाहता है। इसलिए रूस उससे भी खफा है। बाइडन ने यूरोपीय संघ में शामिल होने के लिए मोल्दोवा के प्रयास का समर्थन किया। बाइडन ने कहा कि कीव को जितनी मदद हो सकेगी, उतना अमेरिका करता रहेगा।
यह भी पढ़ें...