संयुक्त राष्ट्र: बीते सोमवार संयुक्त साष्ट्र की एक बैठक में योगाचार्य सदगुरु जग्गी वासुदेव ने कहा, "योग न तो भारतीय है और न ही भारत का है।" उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि मानव कल्याण के लिए योग एक निरपेक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी है। वासुदेव ने कहा, "विज्ञान अपनी सर्वव्यापकता और निरपेक्षता के कारण योग भारतीय नहीं हो सकता है।"
कई देशों के राजनयिकों और अधिकारियों के बीच उन्होंने कहा, "हां, इसकी उत्पत्ति भारत में हुई है। भारतीय होने के नाते इसके लिए मुझे गर्व है। लेकिन यह भारत से संबंधित नहीं है। यह सत्य है कि संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत ने इसे दुनिया को उपहार के रूप में दिया है।"
वासुदेव ने योग दिवस की पूर्व संध्या पर "आचार्यो के साथ वार्तालाप: सतत विकास की लक्ष्य प्राप्ति के लिए योग" विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। योग समारोह के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र सचिवालय भवन के पास मयोग के कई आसन भी किए गए। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकरुद्दीन ने कहा, "योग के दोनों पहलू- स्मरणीय सोच और सतर्क कार्रवाई, वैश्विक समस्याओं के प्रति हमारी सामूहिक प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं।"
उन्होंने कहा, "बैठक का उद्देश्य योग के बौद्धिक पक्ष की खोज करना और इसे राजनीतिक दृष्टि से जोड़ना था। हमलोगों ने खुद को सतत विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तैयार कर लिया है।" बैठक में एक अन्य 97 वर्षीया योग शिक्षक पोरचोन लिंच भी उपस्थित थीं। उन्होंने महात्मा गांधी से अपनी मुलाकात को याद करते हुए कहा कि गांधी ने उनसे कहा था, "भयभीत मत होइए, जब आप किसी चीज में विश्वास करते हैं तो कीजिए।" उस सलाह ने लिंच को द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजियों के खिलाफ फ्रांस का साथ देने में मदद की।
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कार्यकारी निदेशक नाता मेनाब्दे ने कहा कि योग विश्व को भारतीय उपहार के रूप में है और यही वजह है कि यह खास है।
WHO एलोपैथिक दवाओं और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के साथ योग को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए उसने भारत के साथ करार भी किया है। संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के स्थाई प्रतिनिधि मसूद बिन मोमेन ने कहा कि वह साइटिका से पीड़ित थे और योग से उन्हें राहत मिली। नेपाल के स्थाई प्रतिनिधि दुर्गा प्रसाद भट्टाराई ने योग के बड़े पैमाने पर हो रहे व्यवसायीकरण की निंदा की। वासुदेव ने कहा कि जब कोई चीज लोकप्रिय होती है तो उसके व्यवसायीकरण का डर रहता है। उन्होंने कहा, "धरातल पर गड़बड़ियां हो सकती हैं, लेकिन मूल तत्व निष्कंटक बना हुआ है।"