न्यूयॉर्क: कोरोना वायरस से जूझ रही दुनिया में अब इंसान के वजूद से जुड़ी हर खबर चौंकाने लगी है। ऐसी ही एक खबर हमारी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) से जुड़ी है। पिछले दिनों खबर आई थी कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति कम होती जा रही है। ऐसे में इंडिया टीवी ने NASA से इस बारे में बात की। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति कम होने के सवाल पर नासा ने कहा है कि चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव लगातार होते रहते हैं और ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि मैग्नेटिक फील्ड पूरी तरह से गायब हो जाए।
क्या कहा NASA ने?
NASA ने इंडिया टीवी को बताया कि चुंबकीय क्षेत्र से जुड़े अधिकांश सिद्धांत गलत धारणाओं पर आधारित हैं। नासा की करेन सी. फॉक्स ने कहा, ‘जियोमैग्नेटिक फ्लिप के बारे में एक और डूम्सडे हाइपोथिसिस सौर गतिविधि के बारे में आशंकाएं पैदा करती है। इस हाइपोथिसिस के मुताबिक ध्रुवों द्वारा जगह की अदला-बदली से पृथ्वी के उस चुंबकीय क्षेत्र का खात्मा हो जाएगा जो हमें सोलर फ्लेयर्स और सूर्य से आने वाले कोरोनल मास इजेक्शंस से बचाता है।’ उन्होंने कहा कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र वक्त के साथ मजबूत या कमजोर हो सकता है, लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि यह पूरी तरह गायब हो सकता है।
किस काम आता है चुंबकीय क्षेत्र
धरती का चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) सूर्य से आने वाली हानिकारक शक्तिशाली चुंबकीय तरंगों से हमारी रक्षा करता है। सूर्य से अति आवेशित कण इसी चुंबकीय क्षेत्र के कारण धरती पर नहीं पहुंच पाते हैं, और हम सुरक्षित रहते हैं। यह चुंबकीय क्षेत्र खास तौर पर अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका के क्षेत्रों में धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। वैज्ञानिक यूरोपीय स्पेस एजेंसी से हासिल किए गए स्वार्म सैटेलाइट समूह के आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं और प्रभाव के कारणों को जानने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रभाव को ‘साउथ एटलांटिक एनामोली’ (South Atlantic Anomaly) कहा जा रहा है।
ध्रुवों का अपनी जगह बदलना कोई नई घटना नहीं
शोधकर्ताओं का मानना है कि चुंबकीय क्षेत्र के कमजोर होने से ही हमारे चुंबकीय ध्रुव अपना स्थान बदल रहे हैं, लेकिन ध्रुवों का स्थान बदलना पृथ्वी के लिए कोई नई घटना नहीं है। लेकिन जानकारों का मानना है कि चुंबकीय क्षेत्र का कमजोर होने से अंतरिक्ष से आने वाले आवेशित कण वहां स्थित हमारे उपग्रहों में घुस कर उनके काम पर असर डाल सकते हैं और उपकरणों को खराब कर सकते हैं। हालांकि नासा का कहना है कि इससे थोड़ा-बहुत असर तो पड़ सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा जिसे घातक की श्रेणी में रखा जाए।