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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने समलैंगिक संबंधों पर भारतीय न्यायालय के फैसले की प्रशंसा की

संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष मानवाधिकार अधिकारी ने आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर करने के भारतीय उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया तथा और देशों से अपने सभी लोगों को समानता का मौलिक अधिकार देने की अपील की।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: September 26, 2018 11:46 IST
संयुक्त राष्ट्र- India TV Hindi
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने समलैंगिक संबंधों पर भारतीय न्यायालय के फैसले की प्रशंसा की

संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष मानवाधिकार अधिकारी ने आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर करने के भारतीय उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया तथा और देशों से अपने सभी लोगों को समानता का मौलिक अधिकार देने की अपील की। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेत ने महासभा के इतर एलजीबीटीआई के एक कार्यक्रम में कहा कि दुनियाभर में बदलाव हो रहा है। 

70 से अधिक देशों में परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन संबंध अपराध

भारत के उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने छह सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आपसी सहमति से बनाए समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। यह भारत में समलैंगिक अधिकारों के लिए बड़ी जीत मानी गई। बाचेलेत ने कहा कि 70 से अधिक देशों में परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन संबंध अपराध हैं। इन कानूनों से एलजीबीटी लोगों को जेल की लंबी सजा होती है तथा कुछ मामलों में तो शारीरिक दंड दिया जाता है। ये निस्संदेह पूर्वाग्रहों, घृणा और हिंसा को बढ़ावा देते है लेकिन कानून बदल सकते हैं।

हमने हाल ही में भारत में उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले को देखा

बाचेलेत ने कहा कि भारत में हमने हाल ही में उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले को देखा जिसमें परस्पर सहमति से बनाए समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया। यह महत्वपूर्ण चर्चा पूरी दुनिया में चल रही है। ना केवल यूरोप और उत्तर अमेरिका में बल्कि यह अफ्रीका, एशिया, अमेरिका, कैरीबिया और प्रशांत देशों में भी चल रही है। इन ‘‘अहम बदलावों’’ का स्वागत करते हुए बाचेलेत ने कहा कि और देशों को अपने सभी लोगों को समानता का मौलिक अधिकार देने के लिए अपने कानूनों एवं नियमों में बदलाव करने की जरुरत है। 

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