वाशिंगटन: युद्ध की त्रासदी झेल रहे अफगानिस्तान में भारत की भूमिका में विस्तार की इच्छुक अमेरिकी नीति नयी दिल्ली के लिए एक अवसर है जिसके तहत वह अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान को वह रूप दे सकता है, जैसा पड़ोसी वह अपने लिए चाहता है साथ ही यह नीति पाकिस्तान के लिए संकेत है कि इस मामले में अब उसकी भूमिका पहले की भांती मजबूत नहीं रह गयी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कल के संबोधन के बाद नीति विश्लेषकों ने उक्त निष्कर्ष निकाला है। ट्रंप ने कल अपनी दक्षिण एशिया नीति का खुलासा किया जिसमें उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण भाग भारत के साथ अमेरिका के रणनीतिक संबंधों का विकास है और उन्होंने आतंकवाद को समर्थन देने के लिए पाकिस्तान को चेतावनी दी। (नाइजीरियाई जिहादियों ने छह ग्रामीणों की हत्या की: मिलिशिया)
साउथ एशिया सेन्टर के निदेशक भारत गोपालस्वामी का कहना है कि अफगानिस्तान में भारत की विस्तृत भूमिका की अपील का अर्थ है कि अमेरिका चाहता है कि नयी दिल्ली युद्ध से जर्जर अपने पड़ोसी देश में और ज्यादा आर्थकि निवेश करे। गोपालस्वामी ने कहा कि नयी रणनीति भारत को अमेरिका के साथ मिलकर काम करने और ऐसे अफगानिस्तान का निर्माण करने का भी अवसर देती है, जैसा कि वह चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका का महत्वपूर्ण सुरक्षा और आर्थकि साझोदार है।
ट्रंप ने भारत के अमेरिका के साथ अरबों डॉलर के व्यापार का जिक््रु किया और कहा कि यह भी एक कारण है कि वह चाहता है कि नयी दिल्ली अफगानिस्तान में अपनी आर्थकि और विकास सहायता बढ़ाए। गोपालस्वामी ने कहा कि पहले से ही भारत अफगानिस्तान में बांध और वहां के संसद भवन के निर्माण जैसी विकास परियोजनाओं में शामिल है। लेकिन उन्होंने कहा कि ट्रंप ने भारत को अफगानिस्तान में वर्तमान के मुकाबले और बड़ी भूमिका निभाने की चुनौती दी है।
अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के रेजीडेंट फेलो सदानंद धुमे ने इस नयी नीति को स्वागत योग्य कदम बताया है। उन्होंने कहा, भारत को अफगानिस्तान में अमेरिका का सहयोगी कहे जाने का स्वागत करना चाहिए। यह स्पष्ट संकेत है कि अब वाशिंगटन इस्लामाबाद की भावनाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं देगा और अफगानिस्तान भारत की सीमा सुरक्षा की दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।