वाशिंगटन: मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर भारत की तुलना दूसरे देशों के साथ करने से इनकार करते हुए अमेरिका ने कहा कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और वहां धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार जैसे विषयों पर चिंताओकं के समाधान के लिए संस्थाएं हैं। भारत में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ देशभर में बड़े पैमाने पर हो रहे प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने यह टिप्पणी की।
प्रदर्शनकारी धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणाथिर्यों को भारत की नागरिकता देने से जुड़े इस कानून को असंवैधानिक तथा विभाजनकारी बता रहे हैं क्योंकि यह मुसलमानों को शामिल नहीं करता।
टू प्लस टू मंत्रि स्तरीय वार्ता के समापन के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संवाददाताओं के एक समूह से कहा कि मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता ट्रंप प्रशासन के लिए और विदेश मंत्री माइक पोम्पियों के लिए मुख्य मुद्दे हैं।
अधिकारी ने कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह रेखांकित किया है कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है। सीएए के विरोध में भारत में प्रदर्शनों से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘इस कानून के बारे में भारत में बहस चल रही है। इसकी समीक्षा अदालतें करेंगी। राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं, मीडिया में इस पर चर्चा चल रही है। लोकतांत्रिक भारत में ये संस्थाएं हैं इसलिए हम उस प्रक्रिया का सम्मान करते हैं।’’
अधिकारी ने कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि (अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी राजदूत सैमुएल) ब्राउनबैक इस पर पहले ही टिप्पणी कर चुके हैं। धार्मिक आधार को लेकर हमें चिंताएं हैं लेकिन अब यह एक कानून का हिस्सा है जिसकी भारतीय व्यवस्था में लगातार समीक्षा हो रही है।’’
एक संवाददाता ने पूछा कि कश्मीर में सेवा बहाल करने के बारे में कोई विशेष आश्वासन मांगा गया है या कोई समय सीमा तय की गई है। इस पर उन्होंने कहा, ‘‘यह ऐसा संबंध नहीं है जहां अल्टिमेटम दिया जाता हो। यह एक ऐसा देश, ऐसा लोकतंत्र है जहां इन नीतियों पर मतदान होता है, बहस होती है, न्यायपालिका समीक्षा करती है। इसलिए मैं इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करूंगा।’’