वॉशिंगटन: जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के भारत सरकार के फैसले के संबंध में संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका तक का दरवाजा खटखटा चुके पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही है। राजनयिक सूत्रों के अनुसार इस्लामाबाद से सीमा पार आतंकवाद या घुसपैठ के लिए कश्मीर के मौजूदा घटनाक्रम का इस्तेमाल ना करने के लिए स्पष्ट तौर पर कहा गया है। पाकिस्तान द्वारा पिछले कुछ दिनों में इस मामले पर सहयोग के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी रखने वाले एक राजनयिक ने कहा कि पाकिस्तान को इस मामले पर बेहद कम तवज्जो मिली है, और एक तरह से उसे आतंकवाद के मामले में अपने रिकॉर्ड को लेकर बेइज्जत ही होना पड़ा है।
भारत का कहना है कि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न हिस्सा है और यह पूरी तरह देश का आंतरिक मामला है। वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, शीर्ष पाकिस्तानी नेता और उसके राजनयिक लगातार अमेरिकी सांसदों और वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें बता रहे हैं कि यदि वे मध्यस्थता नहीं करते हैं तो युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने शुक्रवार को कहा था कि इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष स्थिति तनावपूर्ण दिखाने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘यह ध्यान आकर्षित करने का एक पैंतरा है, समय आ गया है कि पाकिस्तान नयी वास्तविकता का सामना करे और भारत के आंतरिक मामलों में दखल देना बंद करे।’
सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान को साफ तौर पर कहा गया है कि क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता कायम रखने का दायित्व उसका है। उन्होंने कहा, ‘उन्होंने (अंतराष्ट्रीय समुदाय) पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि वे सीमा पार घुसपैठ जैसा कोई कदम ना उठाए, जिससे शांति एवं सुरक्षा को नुकसान पहुंच सकता है।’ सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानी नेताओं और अधिकारियों से बार-बार कहा गया है कि वे कुछ भी करें, लेकिन आतंकवाद का इस्तेमाल ना करें। आतंकवाद को वित्तीय सहायता मुहैया ना कराने की अपनी प्रतिबद्ध पूरी ना करने को लेकर पाकिस्तान पर ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ द्वारा काली सूची में डाले जाने का खतरा मंडरा रहा है। दो राजनयिक सूत्रों ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय स्थिति पर करीबी नजर बनाए है।