न्यूयॉर्क: अमेरिका में भारतीय मूल के डॉक्टरों के एक परिवार ने कोरोना वायरस के चलते अपने दो महत्वपूर्ण डॉक्टर सदस्यों को खो दिया है। पिता-पुत्री की मौत से इस परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। इस परिवार में माता-पिता और तीन बेटियों सहित सभी पांचों सदस्य डॉक्टर थे, जिनमें से अब केवल तीन सदस्य बचे हैं। प्रिया खन्ना सर्जन पिता और बाल रोग विशेषज्ञ माता की मंझली बेटी थीं जिन्होंने डॉक्टर बनने से पहले अन्य क्षेत्रों में अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन बाद में उन्होंने भी डॉक्टर पेशे को ही चुना।
प्रिया के माता-पिता 1970 के दशक के शुरू में भारत से अमेरिका आए थे और उत्तरी न्यूजर्सी में बस गए थे। परिवार को छोड़ गई डॉक्टर प्रिया की छोटी बहन अनीशा खन्ना ने कहा, ‘‘वह बहुत ही दयालु थी। उसने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया। जब वह अलग करियर में गई तो उसे लगा कि चिकित्सक के पेशे को छोड़कर उसके लिए और कोई पेशा उपयुक्त नहीं है।’’ कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आने के बाद प्रिया और उनके पिता सत्येंद्र खन्ना की अप्रैल महीने में कुछ ही दिनों के भीतर मृत्यु हो गई। वे दोनों उसी अस्पताल में एक-दूसरे के नजदीक थे जहां प्रिया का जन्म हुआ था।
डॉक्टरों के इस परिवार ने चिकित्सा सेवा के जरिए अपने जीवन में अनेक लोगों की जान बचाने का काम किया। अनीशा खन्ना और उनकी मां कमलेश खन्ना न्यूजर्सी के ग्लेन रिज में बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में काम करती हैं। परिवार की सबसे बड़ी बेटी सुगंधा खन्ना मैरीलैंड में रहती हैं और वह आपातकालीन कक्ष में फिजीशियन हैं। सत्येंद्र खन्ना एक बड़े सर्जन थे और न्यूजर्सी में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी करने वाले पहले सर्जनों में से एक थे। परिवार के प्रभाव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रिया के अंतिम दिनों में उनकी उसकी देखभाल करने वाले डॉक्टरों में से एक ने कई साल पहले प्रिया के दिशा-निर्देशन में ही पढ़ाई की थी।
डॉक्टर बेटियों की मां कमलेश ने बताया कि सुगंधा अपने पिता को आदर्श मानती थी और सर्जन बनना चाहती थी। प्रिया ने पहले कानून या कारोबार के क्षेत्र में किस्मत आजमाने की कोशिश की, लेकिन बाद में वह गुर्दा रोग विशेषज्ञ बन गई। अनीशा ने भी प्रिया के पदचिह्नों का पालन किया और कंसास सिटी में मेडिकल स्कूल में दाखिला ले लिया। अनीशा ने कहा, ‘‘हमारे माता-पिता हमारी प्रेरणा हैं। मैंने चिकित्सा का पेश अपनी मां की वजह से अपनाया जो बहुत ही मजबूत महिला हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रिया मेरी बड़ी बहन थी। वह हमेशा मेरी रक्षा करती थी।’’
सत्येंद्र मार्च के मध्य में बीमार पड़े और एक सप्ताह बाद उन्हें एंबुलेंस से बेलेविले स्थित क्लारा मास मेडिकल सेंटर ले जाया गया। बाद में प्रिया भी बीमार पड़ी और उसे भी इसी अस्पताल में ले जाया गया। अपनी शिक्षक रही प्रिया की देखभाल करने वाले डॉक्टर काशीनाथन ने कहा, ‘‘यह बहुत ही दुखद था जब मैंने अपनी प्रशिक्षक को इस हाल में देखा।’’ अस्पताल में पिता-पुत्री दोनों वेंटिलेटर पर थे। अनीशा ने कहा, ‘‘43 वर्षीय प्रिया 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रही और 13 अप्रैल को उसकी मौत हो गई। उसके पिता की मौत 21 अप्रैल को हुई जिन्हें यह भी पता नहीं चल पाया कि उनकी मंझली बेटी उनसे पहले दुनिया छोड़कर चली गई है।’’
उन्होंने कहा कि इससे पांच दिन पहले ही उनके माता-पिता ने अपनी शादी की 50वीं वर्षगांठ मनाई थी। सत्येंद्र 77 साल के थे। अनीशा ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि मैं क्या कहूं। यह बहुत ही दुखद है। मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूं, इस सदमे को कैसे सहन करूं। यह बीमारी बहुत क्रूर है। हम यहां तक कि उनका (पिता और बहन) का हाथ तक नहीं थाम सके।’’