वॉशिंगटन: अमेरिका की एक शीर्ष राजनयिक ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध अटूट हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच अगले महीने होने वाली मुलाकात से दोनों देशों के बीच संबंध और प्रगाढ़ होने की उम्मीद है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप 24-25 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर भारत आ रहे हैं। दक्षिण और मध्य एशिया के लिए कार्यकारी सहायक विदेश मंत्री एलिस वेल्स ने शनिवार को ट्वीट किया, ‘हमारे देशों के बीच संबंध अटल हैं।’
ट्वीट में उन्होंने आगे कहा, ‘इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की मुलाकात से हम इन संबंधों के और अधिक प्रगाढ़ होने की आशा करते हैं। भारत और अमेरिका करीबी साझेदार हैं और यह साझेदारी दिन प्रतिदिन मजबूत होती जा रही है। साथ मिलकर हम कीर्तिमान बना रहे हैं। उदाहरण के लिए हमने पिछले साल बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों का अमेरिका में स्वागत किया और इस साल और अधिक छात्रों के आने की उम्मीद कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के केंद्र में है और विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वेल्स ने कहा, ‘अमेरिका भारत के साथ हर कदम पर साझेदारी करने की प्रतीक्षा कर रहा है।’ हालांकि काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस थिंक टैंक की विशेषज्ञ एलिसा आयर्स का कहना है कि ट्रंप व्यापार समझौते से ज्यादा स्टेडियम में होने वाले समारोह और उसमें जुटी भीड़ पर अधिक ध्यान देते मालूम हो रहे हैं। आयर्स ने कहा, ‘मेरी नजर इस बात पर है कि जारी व्यापारिक समझौतों का क्या होगा जो (ट्रंप और मोदी की) पिछली मुलाकात में अंजाम तक नहीं पहुंच सके थे। व्यापार के संबंध में जो कुछ भी होगा वह साधारण होने की उम्मीद है क्योंकि किसी बड़े समझौते की बात तो छोड़ दीजिए, एक द्विपक्षीय निवेश संधि की बात तक नहीं हो रही है।’
उन्होंने कहा लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कुछ व्यापार मुद्दे बेहद जटिल रहे और इसे देखते हुए कोई भी प्रगति सकारात्मक कदम माना जाएगा। एक अन्य थिंक टैंक ‘हडसन इंस्टीट्यूट’ की विशेषज्ञ अपर्णा पांडेय के अनुसार ट्रंप की भारत यात्रा इसका प्रतीक है कि दोनों देश अपने संबंधों को लेकर कहां तक पहुंचे हैं। पांडेय ने कहा, ‘यह यात्रा वास्तविक परिणाम देने की बजाय प्रतीकात्मक ज्यादा होगी। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक इन अमेरिका’ का नारा देने वाले दो लोकप्रिय और राष्ट्रवादी नेताओं के बीच एक वास्तविक व्यापारिक समझौता होना कठिन है।’ (भाषा)