संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने स्कूलों में स्वच्छता संबंधी सुविधाएं बेहतर करने की दिशा में तेजी से प्रगति की है। साथ ही इसमें कहा गया है कि देश में ऐसे स्कूलों की तादाद बहुत तेजी से घटी है जहां स्वच्छता संबंधी सुविधाएं बिलकुल नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के एक नए संयुक्त अध्ययन, ‘ड्रिकिंग वाटर, सैनिटेशन एंड हाईजीन इन स्कूल्स: 2018 ग्लोबल बेसलाइन रिपोर्ट’ में कहा गया है कि स्कूलों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं, सीखने के लिए स्वस्थ माहौल का आधार मुहैया कराती हैं और लड़कियों की मौजूदगी उस वक्त भी ज्यादा होगी जब वह माहवारी से गुजर रही होंगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन/ संयुक्त राष्ट्र बाल निधि के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम या जेएमपी ने यह वार्षिक रिपोर्ट तैयार की है जो 1990 से पेयजल, स्वच्छता और सफाई (डब्ल्यूएएसएच) पर वैश्विक प्रगति की निगरानी कर रहा है। यह सतत विकास के दो लक्ष्यों- लक्ष्य छह (साफ पानी और स्वच्छता) और लक्ष्य चार (समग्र एवं समान गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना) को प्राप्त करने की दिशा में की गई प्रगति को रेखांकित करता है।
रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2030 तक खुले में शौच की प्रवृत्ति खत्म करने के सतत विकास लक्ष्य छह को हासिल करने के उद्देश्य से स्कूल कार्यक्रमों में डब्ल्यूएएसएच शिक्षा, जागरुकता बढ़ाने और व्यवहार में जरूरी बदलाव के लिए अहम राह बनाता है। इसमें बताया गया कि वर्ष 2000 से 2016 के बीच ऐसे स्कूलों की तादाद बहुत तेजी से घटी है जहां स्वच्छता संबंधी सुविधाएं बिलकुल नहीं थी और यह खुले में शौच करने वाली आबादी के अनुपात से भी ज्यादा तेजी से घटा है।
इस चलन को देखते हुए जेएमपी ने अनुमान जताया कि भारत के लगभग सभी स्कूलों में स्वच्छता संबंधी किसी न किसी तरह की सुविधा जरूर है जबकि दस साल पहले आधे से ज्यादा स्कूलों में कोई स्वच्छता सुविधा नहीं होने की रिपोर्ट थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत के हालिया सर्वेक्षण में मासिक धर्म से जुड़े स्वच्छता इंतजामों की उपलब्धतता पर सूचना जुटाई गई। सैनिटरी वस्तुओं के निस्तारण के लिए ढक्कन वाले कूड़ेदान रखने वाले स्कूलों का अनुपात राज्यों के हिसाब से अलग-अलग पाया गया जिसमें चंडीगढ़ के 98 प्रतिशत स्कूलों से लेकर छत्तीसगढ़ के 36 प्रतिशत स्कूल शामिल थे। मिजोरम एक मात्र ऐसा राज्य है जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में सैनिटरी कूड़े के निस्तारण के लिए मशीनें लगी हुई थीं।