संयुक्त राष्ट्र: भारत ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर राग अलापने पर पलटवार करते हुए कहा कि उसके नागरिकों को उनकी तरफ से बोलने के लिए किसी भी व्यक्ति की जरूरत नहीं है और कम से कम उन लोगों की तो कतई नहीं जिन्होंने नफरत की विचारधारा से आतंकवाद का कारोबार खड़ा किया है। खान ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र में पहली बार भाषण दिया और 50 मिनट के उनके संबोधन का आधा वक्त भारत और कश्मीर पर ही केंद्रित रहा। भारत ने शुक्रवार को खान द्वारा दिए गए बयान पर जवाब देने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया और पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेट कप्तान द्वारा लगाए आरोपों का बचाव करने के वास्ते संयुक्त राष्ट्र में अपने नए राजदूत को आगे किया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा ने कहा, ‘‘ऐसा माना जाता है कि इस मंच से बोले गए हर शब्द का इतिहास से वास्ता है। दुर्भाग्य से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से हमने आज जो भी सुना वह दोहरे अर्थों में दुनिया का निर्मम चित्रण था। हम बनाम वह, अमीर बनाम गरीब, उत्तर बनाम दक्षिण, विकसित बनाम विकासशील, मुस्लिम बनाम अन्य था। एक ऐसी पटकथा जो संयुक्त राष्ट्र में विभाजन को बढ़ावा देती है। मतभेदों को भड़काने और नफरत पैदा करने की कोशिश जिसे सीधे तौर पर ‘घृणा भाषण’ कहा जा सकता है।’’
मैत्रा ने कहा कि महासभा में विरले ही अवसर का ऐसा दुरुपयोग, बल्कि हनन देखा गया हो। उन्होंने कहा, ‘‘कूटनीति में शब्द मायने रखते हैं। ‘‘तबाही’’, ‘‘खून-खराबा’’, ‘‘नस्लीय श्रेष्ठता’’, ‘‘बंदूक उठाओ’’ और ‘‘अंत तक लड़ाई’’ करो जैसे वाक्यांशों का इस्तेमाल मध्यकालीन मानसिकता को दर्शाता है न कि 21वीं सदी की दूरदृष्टि को।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम आपसे अनुरोध करेंगे कि आप इतिहास की अपनी समझ को ताजा करें। साल 1971 में पाकिस्तान द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ किए क्रूर नरसंहार और उसमें लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के निआजी की भूमिका को न भूलें। एक ऐसी कड़वी सच्चाई जिसकी बांग्लादेश की माननीय प्रधानमंत्री ने आज दोपहर को इस महासभा को याद दिलाई।’’
मैत्रा ने कहा कि खान की परमाणु विध्वंस की धमकी अस्थिरता का सूचक है न कि शासन कला की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री खान का आतंकवाद पर स्पष्टीकरण भड़काऊ है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत के लोगों को अपने लिए बोलने वाले किसी व्यक्ति की जरूरत नहीं है और कम से कम उनकी तो बिल्कुल नहीं जिन्होंने नफरत की विचारधारा से आतंकवाद का कारोबार खड़ा किया है।’’ खान ने अपने भाषण में संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षकों को यह पुष्टि करने के लिए पाकिस्तान आने का न्योता दिया कि वहां कोई आतंकवादी संगठन नहीं है।
मैत्रा ने कहा कि दुनिया उन्हें उस वादे पर कायम रखेगा। उन्होंने कहा कि कुछ सवाल है जिस पर पाकिस्तान प्रस्तावित सत्यापन के अग्रदूत के रूप में जवाब दे सकता है और वह है कि क्या खान ‘‘न्यूयॉर्क शहर से इस बात से मना कर पाएंगे कि वह ओसामा बिन लादेन के खुलेआम समर्थक थे?’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या पाकिस्तान इस बात की पुष्टि कर सकता है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित 130 आतंकवादी और 25 आतंकवादी संगठन उसके यहां नहीं है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या पाकिस्तान यह मानेगा कि वह दुनिया में एकमात्र देश है जो संयुक्त राष्ट्र की अलकायदा और इस्लामिक स्टेट प्रतिबंध सूची में शामिल लोगों को पेंशन देता है।’’
मैत्रा ने कहा, ‘‘क्या पाकिस्तान बता सकता है कि यहां न्यूयॉर्क में उसके प्रमुख बैंक हबीब बैंक को आतंकवाद के वित्त पोषण पर लाखों डॉलर के जुर्माने के बाद अपनी दुकान बंद करनी पड़ी?’’ प्रथम सचिव ने कहा, ‘‘क्या पाकिस्तान इससे इनकार करेगा कि वित्तीय कार्रवाई कार्य बल ने देश को 27 प्रमुख मानकों में से 20 से अधिक के उल्लंघन के लिए नोटिस दिया?’’ उन्होंने कहा कि कभी क्रिकेट खिलाड़ी रहे और ‘‘जेंटलमैन खेल में विश्वास रखने वाले खान ने आज ऐसा भाषण दिया जो ‘‘दर्रा आदम खेल की बंदूकों की मंडी की याद दिलाता है।’’
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ऐसा देश है जहां 1947 में 23 फीसदी रहे अल्पसंख्यक समुदाय की संख्या घटकर आज तीन फीसद रह गई है और उसने ईसाइयों, सिखों, अहमदियों, हिंदुओं, शियाओं, पश्तूनों, सिंधियों और बलोचों पर कठोर ईशनिंदा कानून लगाए, व्यवस्थित मुकदमें चलाए, घोर उल्लंघन किए और जबरन धर्म परिवर्तन किया।
मैत्रा ने कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवाद और घृणा भाषण को बढ़ावा दिया वहीं भारत जम्मू कश्मीर में विकास की मुख्यधारा के साथ आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘विविधता, अनेकवाद और सहिष्णुता के साथ ही भारत के फलते-फूलते और जीवंत लोकतंत्र में जम्मू कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख को अच्छे तरीके से मुख्यधारा में लाया जा रहा है।’’