संयक्त राष्ट्र: भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक समिति ने अगले साल परमाणु हथियारों को ग़ैरक़ानूनी घोषित करने के लिए एक नयी संधि पर बातचीत के लिए एक प्रस्ताव अपनाया है लेकिन इस पर हुई वोटिंग पर भारत ने हिस्सा नही लिया। भारत का कहना है कि उसे नहीं लगता कि इससे परमाणु निरस्त्रीकरण में मदद मिलेगी।
निरस्त्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र महासभा की समिति ने शुक्रवार को परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता पर प्रस्ताव का मसौदा पास किया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य विश्व को परमाणु हथियार मुक्त बनाना है। प्रस्ताव में बहुपक्षीय परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता को आगे बढ़ाने की ज़रुरत पर ज़ोर दिया गया है। समिति ने परमाणु हथियारों पर कानूनी रुप से रोक लगाने पर चर्चा के लिए 2017 में सम्मेलन बुलाने का भी फ़ैसला किया है ताकि परमाणु हथियारों को पूरी तरह समाप्त किया जा सके।
इस प्रस्ताव के पक्ष में 123 और विरोध में 38 वोट पड़े जबकि 16 देश अनुपस्थित रहे।
निरस्त्रीकरण कॉंफ़्रेंस में भारत के स्थाई सदस्य डीबी वेंकटेश वर्मा ने कहा कि भारत को वोटिंग से मजबूरन ग़ैरहाज़िर रहना पड़ा क्योंकि उसे नहीं लगता है 2017 में परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए बुलाए गए सम्मेलन से ये मक़सद हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परमाणु निरस्त्रीकरण पर मौजूदा असंतुलन को ख़त्म करने के लिए बातचीत और विचार विमर्श ज़रुरी है। "भारत परमाणु निरस्त्रीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है और इस चिंता को भी साझा करता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय बहुपक्षीय परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता को अभी तक आगे नहीं ले जा सका है।
वोटिंग से ग़ैरहाज़िर रहने पर स्पष्टीकरण देते हुए वर्मा ने कहा कि भारत परमाणु हथियार के इस्तेमाल की स्थिति में होने वाले भयावह मानव विनाश से भी चिंतित है। उन्होंने कहा कि भारत ने 2016 में जिनीवा में वर्किंग ग्रुप की बैठक में भाग नहीं लिया था इसलिए वह उसकी (बैठक) रिपोर्ट और सिफ़ारिशों पर अपनी स्थिति सुरक्षित रख रहा है।
उन्होंने कहा, "भारत ने व्यापक परमाणु हथियार निरस्त्रीकरण पर बातचीत शुरु करने के लिए हुए सम्मेलन में इसका समर्थन किया है। सम्मेलन में कहा गया था कि रसायनिक हथियार सम्मेलन की तरह परमाणु हथियार ख़त्म करने के लिए भी अंतरराष्ट्रीय पर जांच पड़ताल ज़रुरी है।
भारत ने दोहराया कि परमाणु अप्रसार संधि में उसके शामिल होने का सवाल ही नही उठता।