वाशिंगटन: अमेरिकी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ट्रंप प्रशासन इस बात को लेकर चिंतित है कि पाकिस्तान में हाल ही में जिस तरीके से विरोध प्रदर्शन खत्म हुए हैं उसने चरमपंथियों का हौसला बढ़ाया है। अमेरिका स्थिति पर नजर रख रहा है खासतौर से इसमें सेना की भूमिका पर। अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने सेना और कुछ कट्टर इस्लामिक समूहों के बीच असहायक संबंध देखे हैं। हम इस पर नजर रख रहे हैं कि क्या हुआ और सेना की इसमें क्या भूमिका थीं? चिंता इस बात की है कि जिस तरीके से ये प्रदर्शन समाप्त हुए उससे पाकिस्तान में चरमपंथ और चरमपंथियों को बढ़ावा मिला है।’’ अधिकारी ने कहा, ‘‘अभी सरकार बहुत कमजोर है। हाल के प्रदर्शन से भी यह दिखाई दिया।’’ (विदेश मंत्री पद पर बने रहेंगे टिलरसन, व्हाइट हाउस ने किया रिपोर्टों को खारिज)
उन्होंने कहा कि जिस तरीके से प्रदर्शनों से निपटा गया उससे पाकिस्तान में लोगों के लिए ईशनिंदा के आरोप लगाना आसान हो गया। पाकिस्तान में दर्जनों लोगों को सार्वजनिक तौर पर कथित ईशनिंदा के लिए मौत की सजा दी जा चुकी है। अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान में भाषण की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की स्थिति खराब होती जा रही है। व्हाइट हाउस अधिकारी ने आगे चेतावनी दी कि पाकिस्तान में किसी भी सैन्य तख्तापलट की ‘‘प्रतिक्रिया’’ होगी। पाकिस्तान में इस तरह की तानाशाही का इतिहास रहा है।
सैन्य तख्तापलट की स्थिति में ना केवल अमेरिका-पाकिस्तान संबंध अवरुद्ध होंगे बल्कि उस पर सभी तरह के प्रतिबंध भी लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से आश्वस्त नहीं हूं कि सेना सरकार का तख्तापलट करना चाहती है। लेकिन सेना निश्चित तौर पर सत्ता पर कब्जा जमाना चाहती है। इस बीच नेशनल काउंटरटेररिज्म सेंटर के निदेशक निकोलस जे रासमुस्सेन ने कांग्रेस में चर्चा के दौरान कहा कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में या पूर्वी अफगानिस्तान में अल कायदा का खात्मा नहीं हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि क्षेत्र में अल कायदा और उसके समर्थक अब भी हमले करना चाहते हैं और वह खतरा बना रहेगा।’’