वॉशिंगटन: तथ्यों की जांच करने वाले अमेरिका स्थित और वेब आधारित एक मीडिया आउटलेट ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह दावा गलत है कि पेरिस समझौते के कारण भारत और चीन के कोयला उर्जा संयंत्रों के निर्माण की निगरानी नहीं हो सकेगी।
एन्नेनबर्ग पब्लिक पॉलिसी सेंटर के प्रोजेक्ट फैक्टचेक डॉट ओआरजी के प्रबंध संपादक लोरी रॉबर्ट्सन ने कहा कि पेरिस समझौते में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसमें यह तय किया जा सके कि कौन से देश कोयला संयंत्रों का निर्माण कर सकते हैं और कौन से नहीं। रॉबर्ट्सन ने कहा, ‘ट्रंप का यह दावा गलत है कि पेरिस समझौता चीन को सैकड़ों अतिरिक्त कोयला संयंत्रों के निर्माण की और भारत को वर्ष 2020 तक कोयला उत्पादन दोगुना करने की इजाजत देगा लेकिन अमेरिका को ऐसे संयंत्रों का निर्माण करने की अनुमति नहीं होगी।’
पेरिस समझौते से अलग होने के फैसले की घोषणा करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया था कि समझौते में भारत और चीन को जवाबदेह नहीं बनाया गया है। रॉबर्टसन ने कहा कि विकासशील देशों के मुकाबले अमेरिका को उच्च मानकों का पालन करना होगा लेकिन चीन और भारत ने जिन जलवायु संबंधी उपायों को स्वीकार किया है उनके तहत कोयले का बड़े पैमाने पर विस्तार नहीं किया जा सकता। वैसे भी अमेरिका में नए कोयला संयंत्र आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि उर्जा उत्पन्न करने के अन्य तरीके ज्यादा सस्ते पड़ेंगे।