Sunday, December 22, 2024
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ट्रंप के इन फैसलों ने दुनिया को चौंकाया, अब मोदी के कार्यक्रम में होंगे शामिल, जानिए वजह

हालांकि ट्रंप राजनीति में इतने परिपक्व नहीं माने जाते हैं, लेकिन हो सकता है कि भविष्य के चुनावी अंकगणित के आकलन के आधार पर उन्होंने नरेंद्र मोदी के साथ जाने का फैसला लिया होगा।

Written by: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Updated : September 17, 2019 20:38 IST
Narendra Modi, Donald Trump
Image Source : FILE PHOTO Narendra Modi And Donald Trump File Photo

नई दिल्ली:  टेक्सास के ह्यूस्टन में नरेंद्र मोदी के 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का शामिल होना एक बिल्कुल अलग, चौंकानेवाली और ऐतिहासिक घटना है। ट्रंप के इस फैसले ने ठीक उसी तरह से चौंकाया है जैसे उन्होंने अफगानिस्तान को लेकर तालिबान से बातचीत को अचानक तोड़ने का फैसला लिया था। हालांकि इन दोनों फैसलों के बीच का अंतराल ज्यादा नहीं है। बेहद कम समय के अंतराल में राष्ट्रपति ट्रंप ने इन दोनों फैसलों से पूरी दुनिया के अंदर एक तात्कालिक विमर्श को जन्म दिया है। इस विमर्श में ट्रम्प का तालिबान से बातचीत तोड़ना और मोदी के 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में शामिल होना, दोनों की कड़ी को जोड़कर देखा जा सकता है। 

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी को लेकर तालिबान की अमेरिका से बातचीत अंतिम दौर में पहुंच चुकी थी। इस बातचीत में अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार को भी शामिल नहीं किया गया था। लेकिन ट्रंप ने अचानक बातचीत को खत्म कर यह संदेश देने की कोशिश की वह आतंकवादियों से कोई समझौता नहीं करेंगे। हालांकि बातचीत टूटने की वजह अफगानिस्तान में उस आतंकी हमले को बताया गया जिसमें एक अमेरिकी सैनिक की भी मौत हो गई थी। वहीं ट्रंप ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की सलाह देनेवाले अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भी छुट्ठी कर दी। अमेरिका के इस फैसले से सबसे बड़ी राहत अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार को मिली है। अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार तालिबान का सामना कर पाने में फिलहाल सक्षम नहीं है। इसलिए उसे आत्मनिर्भरता हासिल करने तक अमेरिकी सैनिकों की सहायता की जरूरत है। वहीं, अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व होना पाकिस्तान के हित में था। तालिबान की पूरी ट्रेनिंग और स्थापना पाकिस्तान में ही हुई थी।

उधर, अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और वहां तालिबान का प्रभुत्व स्थापित होने से भारत के हितों को गहरा आघात लगता सकता था। भारत अपना बड़ा निवेश अफगानिस्तान में कर चुका है और बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। इतना ही नहीं तालिबान की अफगानिस्तान में वापसी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा बन सकती थी। तालिबान अपने लड़ाकों को बड़ी आसानी से पाकिस्तान के रास्ते जम्मू-कश्मीर में भेजकर क्षेत्रीय शांति के लिए बड़ा खतरा बन सकता था। यदि अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता हो जाता तो निश्चित तौर पर इसे दुनिया में भारत की कूटनीतिक हार के तौर पर भी देखा जाता। लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प के एक अचानक लिए गए फैसले से निश्चित तौर पर भारत को भी बड़ी राहत और सामरिक सफलता मिली है। मोदी और ट्रंप के आलोचकों का मानना है कि अब ऐसे में ट्रंप के प्रति आभार भी मोदी को जताना होगा और ट्रंप भी मोदी का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करेंगे। 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में ट्रंप के शामिल होने को इसी कड़ी का अगला हिस्सा माना जा रहा है।

अमेरिका में अगले साल के अंत में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। यहां बड़ी तादाद में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं जिनका वोट राष्ट्रपति चुनाव में बेहद महत्वपूर्ण होता है। राष्ट्रपति की हार और जीत तय करने में इन वोटरों की भूमिका काफी अहम होती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोबारा चुनाव लड़ना चाहते हैं। अपनी कार्यशैली और अड़ियल रवैये के लिए चर्चित ट्रंप के लिए राष्ट्रपति के तौर पर दूसरा टर्म आसान नहीं लग रहा है। इसलिए उन्हें वोटों की सख्त दरकार भी है। मोदी और ट्रंप के आलोचकों का मानना है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए भारतीय मूल के लोगों के वोट के लालच में ट्रंप मोदी के साथ हाउडी मोदी कार्यक्रम में शामिल होने को राजी हो गए। हालांकि ये बातें आलोचकों की तरफ से कही जा रही हैं लेकिन विश्व राजनीति में दो बड़े नेता अगर दुनिया की बेहतरी और क्षेत्रीय शांति बनाए रखने के लिए कोई कदम उठाते हैं तो उसका स्वागत भी होना चाहिए। मोदी की लोकप्रियता जगजाहिर है और अमेरिका में मोदी के कार्यक्रम में ट्रंप के शामिल होने से निश्चित तौर पर भारतीय अमेरिकी समुदाय पर इसका असर पड़ेगा और हो सकता बहुत हद तक एक बड़े वोट को अपनी तरफ आकर्षित करने में ट्रंप कामयाब भी हो जाएं।   

ठोस पूर्वानुमानों के आधार पर समय रहते राजनितिक भविष्य का फैसला लेना किसी राजनेता की परिपक्वता को दर्शाती है। हालांकि ट्रंप राजनीति में इतने परिपक्व नहीं माने जाते हैं, लेकिन हो सकता है कि भविष्य के चुनावी अंकगणित के आकलन के आधार पर उन्होंने नरेंद्र मोदी के साथ जाने का फैसला लिया होगा। हालांकि इस फैसले के पीछे और भी कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन जो सतही तौर पर दिखाई दे रहा है, वह ट्रंप का चुनावी अंकगणित ही प्रतीत होता है। 

(इस लेख में व्यक्त लेखक के निजी विचार हैं)

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