संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र के एक उच्च स्तरीय अधिकारी ने जल को केवल संघर्ष ही नहीं बल्कि सहयोग के स्रोत का प्रतिनिधि भी बताते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में की गई सिंधु जल संधि दो युद्धों के बाद भी बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव जान एलीसन ने महासभा के इतर जल शांति का एक स्रोत विषय पर आयोजित उच्च स्तरीय कार्यक्रम में यह बात कही।
उरी में सैन्य अड्डे पर हुए आतंकवादी हमले के कारण भारत एवं पाकिस्तान के बीच बढे तनाव के बीच यह संधि अचानक सुर्खियों में आ गई है। एलीसन ने कहा, 20वीं सदी की दूसरी छमाही में 200 से अधिक जल संधियों पर सफलतापूर्वक वार्ता की गई है। भारत एवं पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि दो युद्धों के बाद भी बची रही और यह आज भी लागू है।
एलीसन ने अन्य संधियों का जिक्र करते हुए कहा, अफ्रीका में जल संसाधनों के प्रबंधन में सहयोग का पुराना इतिहास है।
उल्लेखनीय है कि भारत ने कल स्पष्ट किया था कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए परस्पर विश्वास और सहयोग महत्वपूर्ण है। सरकार की ओर से यह बयान उस वक्त आया है जब भारत में ऐसी मांग उठी है कि उरी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए इस जल बंटवारा समझौते को खत्म किया जाए।
यह पूछे जाने पर कि दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए क्या सरकार सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करेगी तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ऐसी किसी संधि पर काम करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों के बीच परस्पर सहयोग और विश्वास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संधि की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि यह सद्भावना पर आधारित है।