वॉशिंगटन: अरबों डॉलर की लागत वाली चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) दक्षिण एशियाई देशों में चीन की पैठ को अधिक मजबूत करेगा। साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को "बढ़ाने" का काम करेगा। एक अमेरिकी शोध संस्थान ने आज यह बात कही। विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया कार्यक्रम के उप निदेशक और वरिष्ठ एसोसिएट माइकल कुगेलमैन ने आज प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा, "सीपीईसी चीन की पैठ को मजबूत बनाएगा और साफ तौर पर भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को बढ़ाएगा।" (अमेरिका में 21 वर्षीय भारतीय लड़के की गोली मारकर हत्या)
कुगेलमैन के मुताबिक, सीपीईसी पाकिस्तान को अधिक बिजली उत्पादन करने में मदद कर सकता है लेकिन वह पाकिस्तान के व्यापक बिजली संकट को हल नहीं कर सकेगा। उन्होंने लिखा, "पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति और आर्थिक प्रदर्शन में स्थिरता चीन के लिए महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह सीपीईसी की सफलता के लिए यह पहली शर्त है। इसके अतिरिक्त, भारत कड़े विरोध को देखते हुए सीपीईसी ने भारत-पाकिस्तान के तनाव को बढ़ा दिया।"
कुगेलमैन ने कहा कि यह परियोजना मध्य एशिया के बाजारों और प्राकृतिक गैस भंडारों तक पहुंचने के भारतीय प्रयासों में अतिरिक्त बाधाएं उत्पन्न करती है। पाकिस्तान के अपनी सरजमीं के इस्तेमाल से इनकार करने पर जमीन के जरिये भारत की इस क्षेत्र तक सीधी पहुंच नहीं है। सीपीईसी पर भारत की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए कुगेलमैन ने कहा कि इसको लेकर भारत को सबसे ज्यादा आपत्ति गिलगित-बाल्टिस्तान में निर्मित होने वाली परियाजनाओं पर है। भारत बीआरआई (बेल्ट और सड़क पहल) का औपचारिक रूप से विरोध नहीं कर रहा है बल्कि उसने अपनी चिंताओं को सीपीईसी तक सीमित कर रखा है, जिसे भारत अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।