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अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोविड -19 का संभावित इलाज खोजा

एक नये अध्ययन में पाया गया कि छोटे अणु वाले प्रोटीज निरोधक (प्रोटीज इन्हिबिटर वायरस रोधी दवाओं की एक श्रेणी है जो एड्स और हैपेटाइटिस सी के इलाज में प्रयुक्त होती हैं) मानव कोरोना वायरस के खिलाफ असरदार हैं।

Written by: Bhasha
Published on: August 04, 2020 18:43 IST
coronavirus treatment american scientist discovers possible cure । अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोविड -19 - India TV Hindi
Image Source : AP अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोविड -19 का संभावित इलाज खोजा (Representational Image)

वाशिंगटन. अमेरिका में वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 वायरस और अन्य प्रकार के कोरोना वायरसों का संभावित चिकित्सीय उपचार खोज लिया है। रोग फैलाने वाले कोरोना वायरस वैश्विक जन स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं जैसा कि सार्स-सीओवी, एमईआरएस-सीओवी और नये उभरे सार्स-सीओवी-2 के कारण देखने को मिला भी है।

एक नये अध्ययन में पाया गया कि छोटे अणु वाले प्रोटीज निरोधक (प्रोटीज इन्हिबिटर वायरस रोधी दवाओं की एक श्रेणी है जो एड्स और हैपेटाइटिस सी के इलाज में प्रयुक्त होती हैं) मानव कोरोना वायरस के खिलाफ असरदार हैं। प्रोटीज एक एंजाइम है जो प्रोटीन को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ने की प्रक्रिया को गति देता है। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि ये कोरोना वायरस 3सी जैसे प्रोटीज, जिन्हें 3सीएलप्रो के तौर पर जाना जाता है, मजबूत चिकित्सीय लक्ष्य हैं क्योंकि ये कोरोना वायरस के प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अमेरिका की कंसास स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, कायोंग ओक चांग ने कहा, “कोविड-19 अनुसंधान में टीका विकसित करना और इलाज ढूंढना सबसे बड़े लक्ष्य हैं और इलाज असली कुंजी है।’’ चांग ने कहा, “इस पत्र में कोरोना वायरस 3सीएलप्रो को लक्ष्य बनाने वाले प्रोटीज अवरोधक के ब्यौरे हैं जो एक लोकप्रिय चिकित्सीय लक्ष्य है।”

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यह अध्ययन दिखाता है कि अनुकूलित कोरोना वायरस 3सीएलप्रो निरोधकों की इस श्रृंखला ने मानव में फैलने वाले कोरोना वायरसों - एमईआरएस-सीओवी और सार्स-सीओवी-2 की कल्चर की गई कोशिकाओं और एमईआरएस के लिए चूहों पर किए गए प्रयोग में वायरस का प्रजनन नहीं होने दी। उन्होंने कहा कि ये परिणाम दिखाते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के संभावित इलाज के लिए यौगिकों की इस श्रृंखला की आगे और जांच की जानी चाहिए। यह अध्ययन ‘साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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