वॉशिंगटन: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के एक पूर्व सहयोगी ने कहा है कि पेरिस जलवायु परिवर्तन करार पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन हासिल करने के लिए ओबामा ने कई अनोखे तरीके अपनाए। उन्होंने मोदी से बेहतर तालमेल कायम करने के लिए अपने सालाना ‘स्टेट ऑफ दि यूनियन’ संबोधन की तारीख भी बढ़ा दी थी और गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि बनकर भारत की यात्रा भी की थी।
ओबामा के पूर्व निजी एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सहयोगी बेंजामिन रोड्स ने एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में बताया है कि ओबामा ने पेरिस जलवायु करार की राह में खड़ी एकमात्र बड़ी शक्ति भारत को साथ लाने के लिए क्या-क्या तौर-तरीके अपनाए। दि एशिया ग्रुप के ‘दि टीलीव्स’ पॉडकास्ट में पूर्वी एशियाई मामलों के पूर्व सहायक विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल और भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा के साथ परिचर्चा के दौरान रोड्स ने कहा, ‘‘जब तक हम पेरिस तक पहुंचे, मुख्य बाधा भारत था।’’
रिचर्ड वर्मा के सवालों के जवाब में रोड्स ने कहा कि तत्कालीन ओबामा प्रशासन ने 2014 के अंत में चीन को करार के बाबत समझा-बुझा कर राजी कर लिया था। साल 2014 में ही दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय उत्सर्जन लक्ष्यों में कमी लाने की घोषणा की थी। यह पेरिस समझौते का मूल बिंदू बन गया था। रोड्स ने बताया कि दो सबसे बड़े उत्सर्जकों के करार के बाद अन्य देशों ने समझौते को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं की घोषणा कर दी। नतीजतन, पेरिस में जलवायु समझौता लागू होने के कगार पर पहुंच गया। बहरहाल, रोड्स ने कहा कि ‘‘मुख्य बाधा भारत’’ था। उन्होंने बताया कि मोदी का दिल जीतने के लिए ओबामा ने क्या रणनीति अपनाई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें भारत जाने के लिए ‘स्टेट ऑफ दि यूनियन’ संबोधन की तारीख बढ़ानी पड़ी।’’ गौरतलब है कि ओबामा 26 जनवरी 2015 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत आए थे। ओबामा भारत की यात्रा दो बार करने वाले एकमात्र अमेरिकी राष्ट्रपति हैं। ‘स्टेट ऑफ दि यूनियन’ संबोधन अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के संयुक्त सत्र को संबोधित करने का वार्षिक कार्यक्रम है। यह हर साल की शुरुआत में होता है। रोड्स ने बताया कि मोदी का दिल जीतने के कारण ओबामा को दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों को भी करार के मुद्दे पर साथ लाने में मदद मिली।
पेरिस में भारतीय अधिकारियों के साथ हुई बातचीत को ‘‘नहीं भूलने वाला अनुभव’’ करार देते हुए रोड्स ने कहा, ‘‘मैं कभी नहीं भूलूंगा। ओबामा कोने में आए..वहां मोदी से पहले भारतीय वार्ताकार मौजूद थे। वे ओबामा के सामने अपनी दलीलें पेश करने लगे। मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। ओबामा और भारतीय वार्ताकारों के बीच यह करीब 30 मिनट तक चला। लेकिन मोदी के वहां पहुंचने तक राष्ट्रपति को सफलता नहीं मिली।’’
रोड्स ने कहा कि मोदी कोने में आए और सीधा मूल मुद्दे पर पहुंच गए। मोदी ने ओबामा से कहा कि उनके यहां 30 करोड़ लोग बगैर बिजली के हैं। मोदी ने कहा, ‘‘आप मुझसे कह रहे हैं कि मैं कोयले का इस्तेमाल नहीं कर सकता और मुझे यह सारी चीजें करनी पड़ेगी।’’ ओबामा के पूर्व सहयोगी के मुताबिक, तभी ओबामा अपनी ‘नस्ल’ के पहलू को सामने ले आए। रोड्स ने कहा, ‘‘मुझे याद आ रहा है कि ओबामा ने पहले ऐसा कभी नहीं किया था। वह अमूमन दूसरे नेताओं के साथ अपनी नस्ल का मुद्दा लाने से परहेज करते थे।’’
ओबामा के हवाले से रोड्स ने बताया कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ने मोदी से कहा, ‘‘देखिए, मैं समझ रहा हूं। मैं अश्वेत हूं, मैं अफ्रीकी-अमेरिकी हूं। मैं जानता हूं कि एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था में रहने का क्या मतलब होता है, जब आपके पीछे लोग अमीर होते चले जाते हैं...लेकिन मैं जिस दुनिया में हूं, वहां मुझे रहना भी है। यदि मैं इसी असंतोष पर फैसले करने लगूं तो फिर कभी कुछ कर ही नहीं पाऊंगा।’’ रोड्स ने दावा किया कि ओबामा ने मोदी को बताया कि अमेरिका सौर ऊर्जा संयंत्र लगवाने में भारत की मदद करेगा ताकि लोग तेजी से ऊर्जा प्राप्त कर सकें। उन्होंने मोदी को उन बड़ी सौर पहलों के बारे में भी बताया जिसे अमेरिका पेरिस में बिल गेट्स के साथ शुरू करने वाला था।