संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के शहरी इलाकों में अब विवाह के चलन में बदलाव देखने को मिल रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पारिवारिक सहमति से पारंपरिक विवाह (अरेंज मैरिज) की जगह अब लड़का-लड़की की पहल पर परिवार की रजामंदी से होने वाले विवाह (सेमी अरेंज मैरिज) लेते जा रहे हैं। इसकी वजह से वैवाहिक हिंसा में कमी आ रही है और आर्थिक व परिवार नियोजन जैसे अहम फैसलों में महिलाओं के विचारों को ज्यादा अहमियत दी जा रही है।
यह जानकारी UN महिला की नयी रिपोर्ट ‘प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड वीमन 2019-2020: फेमलीज इन अ चेंजिंग वर्ल्ड’ में दी गई। यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई। UN महिला की कार्यकारी निदेशक फूमजिले म्लाम्बो नगूका ने कहा कि यह रिपोर्ट दिखाती है कि परिवार अपनी संपूर्ण विविधता में, ‘लैंगिक समानता में अहम निर्धारक, निर्णय लेने वालों को आज के लोगों की जिंदगी की हकीकत को देखते हुए जमीनी स्तर पर नीतियों को पहुंचाने में मदद करते हैं जिसके मूल में महिला अधिकार हैं।’ उन्होंने कहा कि परिवार मतभेदों, असमानताओं और काफी हद तक हिंसा के लिए भी जमीन तैयार करने वाले भी हो सकते हैं।
फूमजिले ने कहा, ‘दुनिया भर में हम इस बात की कोशिश के गवाह बन रहे हैं कि महिला एजेंसी को खारिज किया जाए और उनके अपना फैसला लेने के अधिकार को ‘पारिवारिक मूल्यों’ के संरक्षण के नाम पर खारिज किया जाए।’ रिपोर्ट में कहा गया कि दक्षिणी और पूर्वी एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया में विवाह व्यापक वैश्विक और सामाजिक अनिवार्यता है। रिपोर्ट में कहा गया कि कई देशों में अपना साझेदार चुनना व्यक्तिगत फैसला नहीं होता बल्कि यह विस्तृत परिवार अथवा सामाजिक नेटवर्क द्वारा लिया जाता है।
इसमें कहा गया, ‘उदाहरण के लिये भारत में पारंपरिक विवाह (अरेंज मैरिज) अब भी समान्य बना हुआ है। माता-पिता द्वारा तय पारंपरिक विवाह में महिलाओं की अपना साझेदार चुनने में भूमिका बेहद सीमित होती है और हो सकता है कि वे अपने होने वाले पति से शादी के दिन ही पहली बार मिली हों। समय बीतने के साथ इस प्रथा की जगह हालांकि लड़का-लड़की की पहल पर परिवार की रजामंदी से होने वाले विवाह (सेमी अरेंज मैरिज) आंशिक रूप से ले रहे हैं खास तौर पर शहरी इलाकों में।’ इस तरह के विवाह में परिवार संभावित साझेदार के बारे में सुझाव देता है लेकिन महिलाएं चुनती हैं कि शादी करनी है या नहीं या किसे साझेदार बनाना है।
रिपोर्ट में कहा गया कि लड़के-लड़की की पहल पर होने वाले विवाह में पारंपरिक विवाह के मुकाबले महिलाओं के पास खर्चे करने, बच्चे करने (कितने) और गर्भनिरोधकों जैसे अहम फैसलों को लेकर अपनी बात रखने का 3 गुना ज्यादा मौका होता है। ऐसे विवाह में महिलाएं बिना किसी परिवार सदस्य के खुद ही दोस्तों या रिश्तेदारों के यहां जाने का पारंपरिक विवाह के मुकाबले 2 गुना ज्यादा मौका रखती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लड़के-लड़की की पहल पर होने वाले विवाह में वैवाहिक हिंसा की संभावना भी कम होती है। (भाषा)