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भारत ने कहा, आतंकवादियों को पनाह देने वाले देशों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं

पाकिस्तान का परोक्ष तौर पर जिक्र करते हुए भारत ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई की पहचान करनी चाहिए और उसकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: September 26, 2019 11:47 IST
 Anti-terrorism fight should take strong steps against states providing havens to terrorists, India- India TV Hindi
V Muraleedharan | Facebook

संयुक्त राष्ट्र: पाकिस्तान का परोक्ष तौर पर जिक्र करते हुए भारत ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई की पहचान करनी चाहिए और उसकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। भारत ने साथ ही कहा कि उन देशों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने चाहिए जो आतंकवादियों को धन मुहैया कराते हैं तथा उन्हें पनाह देते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंत्री स्तरीय चर्चा बुधवार को हुई जिसे विदेश राज्य मंत्री वी.मुरलीधरन ने संबोधित किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ‘बगैर किसी देरी के’ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि (CCIT) को जल्द से जल्द स्वीकार करने का आह्वान किया।

CCIT एक प्रस्तावित संधि है, जिसमें सभी रूपों में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को अपराध घोषित करने तथा आतंकवादियों, उनके धन के स्रोत एवं कोष, हथियार तथा पनाह देने वाले समर्थकों के खात्मे का प्रावधान है। मुरलीधरन ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा, ‘हमारा मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों तथा उनके नेटवर्क को तबाह करने तक नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें उनकी पहचान की जानी चाहिए, उन्हें जिम्मेदार ठहराना चाहिए और उन देशों के खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिए जो आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उनका समर्थन करते हैं और धन मुहैया कराते हैं तथा आतंकवादियों एवं आतंकवादी संगठनों को पनाह देते हैं।’

मंत्री ने कहा कि आज की सुरक्षा समस्याओं को भौतिक या राजनीतिक सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता है। आतंकवाद, मादक पदार्थ की तस्करी, अंतरराष्ट्रीय अपराध और नयी प्रौद्योगिकीयों के सुरक्षा निहितार्थ वैश्विक चुनौतियां हैं जिन्हें अलग-अलग बांटकर नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए उनके प्रति हमारी प्रतिक्रिया में सीमा पार सहयोग को भी शामिल किया जाना चाहिए।’ भारत ने 1996 में संयुक्त राष्ट्र में CCI मसौदा प्रस्ताव पेश किया था लेकिन संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच आम सहमति नहीं बन पाने के कारण इसे हकीकत का रूप नहीं दिया जा सका। (भाषा)

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