Highlights
- युद्ध का सदमा और तनाव दूर करने भारत आईं डॉक्टरों ने बताई भयावह दास्तां
- डाक्टरों ने रूसी राष्ट्रपति को बताया तानाशाह
- पीएम मोदी को ग्लोबल लीडर मानती हैं यूक्रेनी डाक्टर
Ukrainian Doctors on War:रूस-यूक्रेन युद्ध के सात माह हो चुके हैं। अब रूस ने यूक्रेन के चार क्षेत्रों खेरसोन, जापोरिज्जिया, दोनेत्स्क और लुहांस्क को अपना हिस्सा बना लिया है। युद्ध अभी भी लगातार जारी है। मगर इस युद्ध में जिस तरह से यूक्रेन के रिहायशी इलाकों, अस्पतालों और महत्वपूर्ण इमारतों को निशाना बनाया जाता रहा है, वह किसी भयावह सपने से कम नहीं है। इस भयावह युद्ध की दास्तां को करीब से देखने वाले यूक्रेनियों का कलेजा आज भी उस मंजर को याद कर धधक उठता है।
युद्ध के बीच में ही अपना तनाव दूर करने भारत में योग और आयुर्वेद की शरण में आईं दो यूक्रेनियन महिला डॉक्टरों ने वहां के लाइव हालात को इंडिया टीवी के साथ साझा किया है। डॉ. एला पोदकेपाइवा यूक्रेन के आइपिन शहर की हैं और डॉ. इजीनिया यूक्रेन की राजधानी कीव से हैं। दोनों ही यूक्रेन के एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर हैं। फरवरी महीने में जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध का आरंभ हुआ तो दोनों डॉक्टर अपने-अपने शहर में मौजूद थीं। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि युद्ध इतना भयावह होने जा रहा है। उस भयावह मंजर को बताते दोनों महिला डॉक्टर अचानक रोने लगीं और उनका शरीर कांपने लगा। इससे समझा जा सकता है कि युद्ध की कितनी भीषण त्रासदी यूक्रेन ने झेली है और अब भी झेल रहा है। आइए अब आपको यूक्रेन युद्ध की लाइव दास्तां महिला डॉक्टरों की जुबानी ही सुनवाते हैं....
एक जोरदार धमाके ने कर दिया सबकुछ खत्म
डॉ. एला अपने बच्चे के साथ यूक्रेन के आइपिन शहर में रह रही थीं। एला कहती हैं कि पूरे शहर में मिसाइलें फटने की भीषण आवाजें, फाइटर जेटों की गर्जना और बमों की बेदर्द बौछार ने जिंदगी को ऐसे डर के कोने में धकेल दिया था कि अगले क्षण का कोई भरोसा नहीं था। डर के इस साये ने घर में भी छुपने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं छोड़ी थी। हर पल आंखों में मौत का मंजर नाच रहा था। अपने बच्चों की चिंता सबसे ज्यादा थी। सभी लोग अपने-अपने घरों में कैद थे। कब कहां और किसके घर पर अगला बम या मिसाइल गिरने वाली है, इसका कोई ठिकाना नहीं था। एला कहती हैं कि मैं अपने घर में थीं। आसपास मिसाइलों और बमों की गूंज के बीच जिंदगी तड़प रही थी। किस पल जिंदगी खत्म हो जाए, यह डर जिंदा मार देने के लिए काफी था। इसी बीच अचानक कोई मिसाइल या बम मेरे भी मकान की छत पर आ गिरा। भयानक धमाके की आवाज सुनकर मैं बाहर की तरफ भागी। इतने में देखा कि मकान से लेकर आसमान में ऊपर तक और आसपास सिर्फ काला धुआं दिखाई दे रहा है। मैं काले गुबार के बीच जमीन पर डर से लेट गई। क्योंकि आसपास कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। मैं समझ गई कि आज सबकुछ खत्म हो चुका है। कहीं कोई दूसरा बम मेरे और बच्चे के ऊपर न गिर जाए, यह सोचकर ही हार्ट अटैक जैसा आने वाला एहसास हो रहा था। धीरे-धीरे गुबार छंटा तो देखा कि मेरा सबकुछ खत्म हो चुका था।
छलकी आंखें, घबरा गया दिल
एला कहती हैं कि मैं रो रही थी, चिल्ला रही थी। मगर इन धमाकों की गूंज में मेरी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं था। बुरी तरह घबराई थी। बहुत बड़े सदमें में जा चुकी थी। कई जगह लाशें बिछी थीं। बहुत ही भयावह मंजर था वो। ये कहकर एला की आंखें डबडबाने लगीं। उन्होंने अपने आंसू पोछे फिर वह कांपने लगीं। कहने लगीं बस अब कुछ बताया नहीं जाता। प्लीज कुछ मत पूछिये। बीती याद करने से हम खुद को संभाल नहीं पा रहे।
डा. इजीनिया ने बताई कीव के कहर की कहानी
डा. एला की दर्द भरी दास्तां ने हमें भी काफी भावुक बना दिया था। डा. एला का हाल देखने के बाद डा. इजीनिया से बात करने की हिम्मत भी नहीं हो पा रही थी। क्योंकि डा. इजीनिया एला को देखते-देखते ही विह्वल होने लगीं थीं। उनके आंसू भी आंखों के कोने से टकपते हुए गाल को छूते हुए भारत की मिट्टी से लिपट कर गमों को कम करने का प्रयास कर रहे थे। डा. इजीनिया से युद्ध की त्रासदी के बीच जिंदगी गुजारने की मजबूरी पर सवाल किया तो दर्द की दास्तां सुनकर आत्मा दहल गई। डा. इजीनिया ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। एक बेटी का घर बस चुका है। दूसरी बेटी साथ में थी। रूस बेदर्दी से रिहायशी इलाकों में भी बम बरसा रहा था। सड़कों पर बजते सायरन और सेना के जवानों की आवाजाही, मिसाइलों, बमों और तोपों की गर्जना सीने को छलनी कर रही थी। इस मुश्किल भरे माहौल में जिंदगी को बचाने की जद्दोजहद भी थी। क्योंकि कोई भी अपनी जिंदगी यूं ही नहीं खोना चाहता। वह कहती हैं कि घरों पर बम गिर रहे थे। बेटी घर पर थी और मैं अस्पताल में। बेटी की सुरक्षा की चिंता के बीच मरीजों का इलाज करने की बड़ी चुनौती थी। रात-दिन बेटी के पास जा नहीं सकती थी। हर तरफ कर्फ्यू था। बेटी जिंदा बची भी है या नहीं। इसकी कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। मन में बेचैनी और दिल में मरीजों का दर्द लिए एक-एक पल काटना मुश्किल था। धमाके ने मेरे घर का भी एक हिस्सा उड़ा दिया। मगर गनीमत थी और भगवान का शुक्र भी कि मेरी बेटी बच गई। अब हम सभी अस्पताल में थे। मरीजों का इलाज कर रहे थे। यह कहते हुए डा. इजीनिया लगातार अपने आंसू पोंछती जा रही थीं और सिसक रही थीं।
डा. एला और इजीनिया को तनाव दूर करने आईं योग की शरण में
नोएडा के सेक्टर 41 स्थित आरोग्य सदनम में डा. एला और डा. इजीनिया अपना तनाव दूर करने के मकसद से कुछ दिनों के लिए युद्ध की विभीषिका के बीच में ही भारत आई हैं। उन्हें भारत के योग और आयुर्वेद पर काफी भरोसा है। वह यहां नाड़ी चिकित्सा, योग और पंचकर्मा से अपना स्ट्रेस दूर करवा रही हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ भारत सरकार के गुरु वैद्य अच्युत कुमार त्रिपाठी डा. एला और डा. इजीनिया का इलाज कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि डा. एला और डा. इजीनिया ने गहरा सदमा झेला है। ऐसे में तनाव होना स्वाभाविक था। योग और आयुर्वेद में इसे दूर करने की ताकत है। पंचकर्मा और सिरोधारा के साथ योग से उन्हें आराम मिल रहा है। वैद्य अद्वैत कुमार त्रिपाठी ने बताया कि डा. एला और डा. इजीनिया 30 सितंबर को भारत आईं। वह दो दिन बाद स्वदेश लौट जाएंगी।
पीएम मोदी को मानती हैं ग्लोबल लीडर
डा. एला और डा. इजीनिया भारत के प्रधानमंत्री मोदी से काफी प्रभावित हैं। वह कहती हैं कि मोदी आज के समय में ग्लोबल लीडर हैं। वह रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका पर भी संतोष जाहिर करती हैं। वहीं रूस के राष्ट्रपति को तानाशाह, अराजक असंवेदनशील बताती हैं। कहती हैं कि जब कोई नेता लंबे समय तक सत्ता में रहता है तो वह अराजक हो जाता है। अब दोनों डाक्टरों को अपने देश लौटकर फिर से घायल मरीजों की सेवा करनी है।
यूक्रेन के क्षेत्रों का रूस में विलय का किया विरोध
डा. एला और डा. इजीनिया राष्ट्रवादी हैं। हालांकि उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता भी यूक्रेन में सताती रहती है। अब वह भारत में आकर अच्छा और तनावरहित महसूस कर रही हैं। दोनों डाक्टरों ने खेरसोन, जापोरिज्जिया, दोनेत्स्क और लुहांस्क को रूस में मिलाए जाने के पुतिन के कदम का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि उनका दिल हमेशा यूक्रेन के लिए धड़केगा।