रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर पश्चिमी देशों का दोहरा रवैया सामने आया है। द वर्ल्ड पॉलिसी फोरम (ग्लोबल सॉल्यूशंस) के कार्यक्रम में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने रियलिटी चेक के तौर पर भारत का उदाहर दिया है। शोल्ज ने कहा कि रूस को यूक्रेन में अपना सैन्य अभियान शुरू किए हुए एक साल से अधिक हो गया है। इस दौरान भारत ने लगातार कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके बावजूद भारत, वियतनाम और दक्षिण अफ्रीका जैसे 'प्रभावशाली देशों' ने रूस के खिलाफ मतदान में भाग नहीं लिया।
ओलाफ शोल्ज ने भारत का नाम लेकर यह उदाहरण ग्लोबल विजन समिट में बतौर रियलिटी चेक के तौर पर दिया। उन्होंने इस दौरान भारत, दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम जैसे देशों का नाम लिया। उन्होंने कहा कि रूस की आलोचना नहीं करने वाले कुछ देशों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों को समान रूप से लागू नहीं किया जाता है। ओलाफ शोल्ज ने इस दौरान यह भी उल्लेख किया कि हिरोशिमा में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान वह यूक्रेन के अटूट समर्थन की पुष्टि करेंगे।
भारत ने न हमले का समर्थन किया न ही विरोध
भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के चलते यूक्रेन पर रूस के हमले का न तो विरोध किया है और न ही समर्थन। इंडोनेशिया के बाली में सितंबर 2022 में हुए शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन में तो भारत ने पुतिन से ये तक कह दिया था कि ...यह युग युद्ध का नहीं है...बातचीत के जरिये शांति का रास्ता निकाला जाना चाहिए। इसके बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपति से भी फोन पर बातचीत करके युद्ध को शांति और वार्ता से सुलझाने का सुझाव दिया। वहीं पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव में भारत अपनी विदेश नीति के तहत वोटिंग से दूर रहा। इसी तरह जब पश्चिमी देशों ने रूस के कच्चे तेल पर प्राइस कैप और अन्य प्रतिबंध लगाए तो भी भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा। यही बातें पश्चिमी देशों को खल रही हैं।