Tuesday, September 17, 2024
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संयुक्त राष्ट्र ने बताया मोदी सरकार में वास्तव में कितने करोड़ लोग आए गरीबी से बाहर, वजह भी गिनाई

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी मोदी सरकार के विकास पर मुहर लगा दी है। यूएनजीए ने बताया है कि मोदी सरकार ने किस तरह से लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। महासभा ने पूरी दुनिया को भारत का उदाहरण देते कहा कि यहां सिर्फ डिजिटलीकरण से 80 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: August 01, 2024 23:11 IST
संयुक्त राष्ट्र।- India TV Hindi
Image Source : AP संयुक्त राष्ट्र।

संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मोदी सरकार में गरीबी से बाहर आए भारतीयों को लेकर अपनी मुहर लगा दी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि माना है। डेनिस फ्रांसिस ने भारत का उदाहरण देते हुए रोम में वैश्विक श्रोताओं को बताया कि दक्षिण एशियाई देश (भारत) ने डिजिटलीकरण के माध्यम से लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। फ्रांसिस ने डिजिटलीकरण के माध्यम से तीव्र विकास को गति देने का जिक्र करते हुए भारत का उदाहरण दिया और उसकी सराहना की। 

उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए भारत का मामला लें,… भारत पिछले पांच या छह वर्षों में केवल स्मार्टफोन के उपयोग से 80 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सक्षम रहा है।’’ फ्रांसिस रोम स्थित संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) में ‘‘वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए भूखमरी को समाप्त करने की दिशा में प्रगति में तेजी लाने’’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। फ्रांसिस व्याख्यान के बाद कार्यक्रम में एकत्रित संयुक्त राष्ट्र के राजनयिकों, अधिकारियों और नीति विशेषज्ञों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत में ग्रामीण किसानों का कभी बैंकिंग प्रणाली से कोई संबंध नहीं था लेकिन अब वे अपने सभी व्यवसाय स्मार्टफोन की मदद से कर पा रहे हैं, जिनमें उनके देनदारियों का भुगतान और ऑर्डर के लिए भुगतान प्राप्त करना भी शामिल है।

80 करोड़ लोग भारत में गरीबी से उबरे

संयुक्त राष्ट्र अध्यक्ष ने रेखांकित किया कि भारत में 80 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए हैं। फ्रांसिस ने कहा कि भारत में इंटरनेट की पहुंच उच्च स्तर पर है और लगभग हर किसी के पास मोबाइल फोन है। संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष ने कहा कि वैश्विक दक्षिण के कई हिस्सों में ऐसा नहीं है। ‘‘समानता की मांग है कि डिजिटलीकरण के लिए वैश्विक ढांचे पर बातचीत के शुरुआती चरण के रूप में इस असमानता को दूर करने के लिए कुछ प्रयास, कुछ पहल की जानी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि 2009 में भारत में केवल 17 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक खाते थे 15 प्रतिशत ने डिजिटल भुगतान का उपयोग किया था, 25 में से एक के पास एक विशिष्ट पहचान दस्तावेज था और लगभग 37 प्रतिशत के पास मोबाइल फोन थे।

फ्रांसिस ने कहा कि ये संख्याएं तेजी से बढ़ी हैं और आज दूरसंचार घनत्व 93 प्रतिशत तक पहुंच गई है। एक अरब से अधिक लोगों के पास डिजिटल पहचान पत्र हैं और 80 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास बैंक खाते हैं। 2022 तक,प्रति माह 600 करोड़ से अधिक डिजिटल माध्यम से लेनदेन किए गए।  (भाषा) 

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