रूस: कज़ान में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान का मुद्दा उठाया। विदेश मंत्री का फोकस सुरक्षा के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधारों पर भी रहा। भारत लंबे समय से यूएनएससी में सुधारों की मांग विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है। इस बार विदेश मंत्री जयशंकर ने फिर से ब्रिक्स में इस अहम मुद्दे की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने कहा, "...हम एक अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था कैसे बना सकते हैं?
जयशंकर ने कहा कि इसके लिए सबसे पहले स्वतंत्र प्रकृति के प्लेटफ़ॉर्म को मज़बूत और विस्तारित करना होगा। विभिन्न डोमेन में विकल्पों को व्यापक बनाकर और उन पर अनावश्यक निर्भरता को कम करना पड़ेगा, जिनका लाभ उठाया जा सकता है। इसमें ब्रिक्स ग्लोबल साउथ के लिए एक अंतर बना सकता है....2) स्थापित संस्थानों और तंत्रों में सुधार करके, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी और गैर-स्थायी श्रेणियों में सुधार करके। इसी तरह बहुपक्षीय विकास बैंक मे सुधार करके, जिनकी कार्य प्रक्रियाएँ संयुक्त राष्ट्र की तरह ही पुरानी हैं।
भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान सुधारों का दिया उदाहरण
भारत ने सुधारों के लिए जी-20 की अध्यक्षता का उदाहरण दिया। जयशंकर ने कहा कि भारत ने अपने जी20 प्रेसीडेंसी के दौरान एक प्रयास शुरू किया और हमें यह देखकर खुशी हुई कि ब्राज़ील ने इसे आगे बढ़ाया....3) अधिक उत्पादन केंद्र बनाकर वैश्विक अर्थव्यवस्था का लोकतंत्रीकरण करके...4) वैश्विक बुनियादी ढाँचे में विकृतियों को ठीक करके जो औपनिवेशिक युग से विरासत में मिली हैं। दुनिया को अधिक कनेक्टिविटी विकल्पों की आवश्यकता है जो रसद को बढ़ाएं और जोखिमों को कम करें। यह एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए, जिसमें क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का पूरा सम्मान हो....5)अनुभवों और नई पहलों को साझा करके।" इस प्रकार वैश्विक न्याय व्यवस्था का नया प्रारूप तैयार किया जा सकता है।
संघर्षों और तनावों को दूर करने पर जोर
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा, "संघर्षों और तनावों को प्रभावी ढंग से संबोधित करना आज की विशेष आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया है कि यह युद्ध का युग नहीं है। जयशंकर ने कहा, "...हम इस विरोधाभास का सामना कर रहे हैं कि परिवर्तन की ताकतें आगे बढ़ने के बावजूद कुछ पुराने मुद्दे और भी जटिल हो गए हैं। एक ओर, उत्पादन और उपभोग में लगातार विविधता आ रही है। उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले राष्ट्रों ने अपने विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति को गति दी है। नई क्षमताएं उभरी हैं, जिससे अधिक प्रतिभाओं का इस्तेमाल आसान हुआ है। यह आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनर्संतुलन अब उस बिंदु पर पहुंच गया है, जहां हम बहु-ध्रुवीयता पर विचार कर सकते हैं।"