Hardeep Puri Germany Visit: दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा 'जहरीली' हो गई है। हालात इतने खराब हैं कि स्कूलों की छुट्टी करके आनलाइन क्लासेस में पढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा है। अस्पतालों में अस्थमा और सांस के मरीज बढ़ गए हैं। दिल्ली एनसीआर ही नहीं, उत्तर भारत के अधिकांश इलाकों की हवा में प्रदूषण फैल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रदूषण का सबसे बड़ा जिम्मेदर पराली जलाने को बताया है। साथ ही पराली जलाने को लेकर राज्यों को फटकार भी लगाई है। दिल्ली में में हर साल की यही कहानी है। पराली जलाने की समस्या का कोई स्थाई निराकरण नहीं निकल सका है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद प्रदूषण के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें प्रयासों में जुटी हुई हैं। इन सबके बीच भारत के केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी पराली जलाने की समस्या का समाधान निकालने के लिए जर्मनी जा रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी पहुंचे जर्मनी
दिल्ली एनसीआर सहित कई राज्यों में बढ़ते वायु प्रदूषण के खतरे को रोकने की कवायदों के बीच केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे हैं। उन्होंने यहां पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए जर्मन बायोगैस एसोसिएशन के सीईओ क्लॉडियस दा कोस्टा गोमेज से मुलाकात की। दरअसल, जर्मनी पराली से बायोगैस का उत्पादन करने में दुनिया में सबसे आगे है।
जानिए जर्मनी से कैसे मिलेगा पराली जलाने की समस्या का हल?
उन्होंने कहा कि 'पंजाब में सबसे ज्यादा पराली जलाने की घटनाएं होती हैं। यह सबसे बड़ी समस्या है। जर्मन बायोगैस एसोसिएशन के सीईओ से हरदीप पुरी ने मुलाकात की और पराली जलाने की समस्या का हल खोजने की कोशिश की। यह हल पराली जलाने की समस्या से लोगों को राहत प्रदान करेगा। वहीं हरदीप सिंह पुरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर कहा कि पंजाब में पराली जलाने की समस्या बहुत ज्यादा है। इसलिए जर्मन बायोगैस एसोसिएशन के सीईओ डॉ. क्लॉडियस दा कोस्टा गोमेज से मुलाकात की। दरअसल, पराली का उपयोग बायोगैस उत्पादन के लिए किया जा सकता है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जर्मनी दुनिया में सबसे आगे है।
22% गेहूं और 34% चावल की फसल से पैदा होती है पराली
मंत्री हरदीप पुरी ने आंकड़े बताते हुए कहा कि 'हर साल भारत में करीब 352 एमटी पराली पैदा होती है। इसमें से 22 फीसदी गेहूं की फसल से और 34 फीसदी चावल से पैदा होती है। इस पराली का लगभग 84 मीट्रिक टन (23.86 फीसदी) सालाना फसल कटाई के तुरंत बाद खेत में जला दिया जाता है। बायोगैस के लिए पराली का उपयोग करना एक जीत होगी।