Russia Ukraine News: यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध् को 50 दिन से भी अधिक समय बीत गया है। दरअसल, इस युद्ध की बुनियाद है NATO यानी द नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन। रूस आखिर नाटो से डरता क्यों है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके जवाब आज हम इस खबर में जानेंगे। इससे पहले हम ये जान लें कि ये वही नाटो है जिसके बढ़ने या यूरोप में अपने पैर पसारने की वजह रूस और अमेरिका के बीच चला शीतयुद्ध था। और अब... यूक्रेन जो कि नाटो में शामिल होना चाह रहा है, उसे रूस ने आखिरी तक मनाने की कोशिश की कि वो नाटो संगठन में शामिल होने की न सोचे। यूक्रेन नहीं माना। नतीजा यह रहा कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। जानिए नाटो से रूस आखिर क्यों डरता है। इससे पहले ये भी जानें कि क्या है यह संगठन और क्यों अस्तित्व में आया।
सो.संघ के 1991 में विघटन के बाद नाटो के बढ़ते कद से डरने लगा रूस
सोवियत संघ 20वीं सदी में बहुत बड़ी ताकत हुआ करता था। अमेरिका का सामना करने के लिए यदि दूसरी कोई महाशक्ति थी, तो वो था सोवियत संघ। लेकिन 1991 में मिखाइल गोर्बाचोव के बाद बोरिस येल्त्सिन सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने। उनके कार्यकाल में सोवियत संघ का विभाजन हो गया और रूस का उद्भव हुआ, जो पहले से कमजोर था। इसलिए नाटो से डरना स्वाभाविक हो गया था।
रूस के प्रभाव वाले पूर्वी यूरोप के देशों पर डोरे डालने लगा अमेरिका
अमेरिका के प्रभाव वाला नाटो संगठन पश्चिम यूरोपीय देशों का समूह था। जबकि रूस के प्रभाव वाले देश पूर्वी यूरोप के थे। लेकिन शक्तिशाली अमेरिका के कारण नाटो का प्रभाव पूर्वी देशों में भी पड़ने लगा और ये रूस के प्रभाव वाले पूर्वी यूरोपीय देश नाटो में शामिल होने के लिए लालायित होने लगे या कहें अमेरिका उन्हें प्रलोभन देने लगा। इससे डरते हुए रूस ने कड़ा विरोध किया।
रूस को डर, यूक्रेन के बहाने सीधे सरहद तक पहुंच सकती है नाटो की सेना
नाटो देशों की संयुक्त सेना हर समय अपने सरहद पर तैनात रहती हैं। ऐसे में रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है तो NATO की सेना रूस के बॉर्डर तक पहुंच जाएगी। क्योंकि रूस और यूक्रेन की सीमाएं एक दूसरे से खुली हुई हैं। रूस नहीं चाहता कि उसकी सीमा पर नाटो की सेना की दस्तक हो। क्योंकि सम्मिलित सेना से लड़ने में रूस को काफी नुकसान हो सकता है। यही उसकी डर की वजह है।
नाटो में जितने देश जुड़ेंगे उतना पॉवरफुल होगा यह संगठन
साल 2017 से 2020 के बीच दो देश नाटो में शामिल हुए हैं। कुछ ईस्ट के देश भी नाटो में जा रहे हैं। रूस का मानना है कि नाटो में जितने देश शामिल होंगे, उतना ही अमेरिका पॉवरफुल हो जाएगा। यही रूस के डर और यूक्रेन से विवाद का मुख्य कारण है।
नाटो देशों में शामिल हैं ब्रिटेन, फ्रांस जैसे परमाणु संपन्न देश
रूस को यह डर भी है कि नाटो के कुछ देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं। अमेरिका तो है ही, लेकिन यूरोप के देश जो सामरिक दृष्टि से अमेरिका के मुकाबले रूस के करीब हैं, वे भी परमाणु संपन्न हैं। इनमें ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश भी शामिल हैं। वहीं जर्मनी भी हथियारों के जखीरे वाला देश है। ऐसे में रूस का डर स्वाभाविक है कि इन देशों की सम्मिलित सेनाओं से अकेले लड़ना रूस के लिए मुश्किल है, भले ही वह खुद ताकतवर क्यों न हो।
रूस के पास नाटो की टक्कर का कोई संगठन न होना, चालबाज है ड्रेगन
अमेरिका के साथ पूरा नाटो संगठन एकजुट है। लेकिन रूस के साथ ऐसा कोई सैन्य गठबंधन नहीं है। ले—देकर चीन जो कि समाजवादी देश है, वह रूस के विचारों का पक्षधर है, लेकिन चालबाज ड्रेगन रूस के साथ युद्ध में शिद्दत के साथ खड़ा होगा, इसमें संशय है। क्योंकि अमेरिका और रूस का युद्ध हो, तो वो अपने आपको कमजोर नहीं करना चाहेगा। चीन की नीति भी दोस्ती की नहीं, साम्राज्यवादी है। रूस भी इस बात को समझता है, इसलिए वह नाटो से लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता।
क्या है NATO, कैसे हुई शुरुआत?
यूक्रेन और रूस के युद्ध के बीच एक शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में है और वो है 'नाटो'। सबसे पहले यह जानेंगे कि आखिर यह संगठन है क्या। नाटो कुछ देशों का एक इंटरगवर्नेंट मिलिट्री संगठन है। इसका मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है। नाटों देशों के बीच एक संधि है जिसके तहत अगर किसी नाटो देश पर कोई गैर नाटो देश हमला करता है, तो नाटो के सभी सदस्य देश पीड़ित नाटो देश के साथ खड़े हो जाते हैं और उसकी मदद करते हैं। यूक्रेन यही चाहता है कि किसी भी तरह वह नाटो में मिल जाए, जिससे कि रूस के विरुद्ध उसके साथ पूरा नाटो संगठन जीवंत रूप से खड़ा हो जाए।
क्या है नाटो के गठन का उद्देश्य?
नाटो संगठन के गठन के पीछे की पटकथा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से शुरू होती है। दूसरा वर्ल्ड वार 1945 में खत्म हुआ था। इसके बाद पूरी दुनिया दो अलग—अलग खेमों में बंट गई थी। उस वक्त दो सुपर पॉवर थे, जिसमें एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ यानी अविभाजित रूस था। रूस यूरोप में अपनी तगड़ी पॉवर रखता था। समाजवाद से प्रभावित सोवयित संघ पूर्वी यूरोप के देशों को अपने प्रभाव में कर चुका था। जबकि अमेरिका पूंजीवाद का झंडा उठाता था। ऐसे में नाटो संगठन के माध्यम से वह सोवियत संघ के प्रभाव को रोकना चाहता था। यही कारण था कि नाटो का अमेरिका ने विस्तार किया।