One Year of Russia Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच जंग को आज एक साल पूरे हो गए हैं। रूस ने जंग की शुरुआत में ताबड़तोड़ हवाई हमले करके अपने खतरनाक इरादे जाहिर कर दिए थे। यूक्रेन के कई शहरों में खतरे के सायरन बज उठे थे। पूरी दुनिया में एक अजीब सी दहशत थी। जब पूरी दुनिया के देश कोरोना के बाद अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में लगे हुए थे, तब अचानक 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण करके जंग का आगाज कर दिया था। यूक्रेन बैकफुट पर आ गया। जैसे जैसे समय आगे बीतता रहा, रूस और यूक्रेन की जंग और भीषण होती गई। लेकिन जब हालात बिगड़ने लगे तो यूक्रेन के साथ अमेरिका और उसके सहयोगी'नाटो' के देश खड़े हो गए। अमेरिका ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का साथ दिया। आर्थिक और सैन्य मदद का सिलसिला शुरू हुआ। तब यूक्रेन ने भी रूस पर पलटवार किया। रूस के टैंक उड़ाए। कई कब्जाए शहरों पर फिर कब्जा किया। शह और मात का ये खेल चलते चलते पूरा एक साल हो गया। जानिए जंग के एक साल में कूटनीतिक स्तर पर क्या बदलाव आए। दोनों देश आज कहां खड़े हैं।
दरअसल, ये जंग अभी खत्म ही नहीं हुई है। क्योंकि रूस ने आने वाले समय में और ज्यादा हमलों की चेतावनी दे दी है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में पोलैंड के रास्ते यूक्रेन का दौरा किया। पूर्वी 'नाटो' देशों के साथ नई रणनीति बनाई। रूस को यह धमकी भी दे डाली कि 'नाटो' यूक्रेन के साथ मुस्तैदी से खड़ा है। अब तो चीन भी खुलेआम रूस का समर्थन करने लगा है। डर यही है कि कहीं रूस यूक्रेन की जंग 'विश्वयुद्ध' में न बदल जाए। बहरहाल, हम देखते हैं रूस यूक्रेन के एक साल के दौरान कौन कौनसे अहम पड़ाव आए?
रूस के सैनिकों ने यूक्रेन में कैसे किया कूच, किस तरह लड़ी लड़ाई?
- जंग के ऐलान के पहले ही रूस ने जंगी विमान उड़ाकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। फिर जंग से तीन दिन पहले रूस ने यूक्रेन के डोनबास प्रांत के डोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था।
- फिर पुतिन ने जंग का ऐलान किया तो करीब 2 लाख रूसी सैनिक यूक्रेन की ओर कूच कर गए थे। उत्तर में रूस के मित्र देश बेलारूस के रास्ते यूक्रेन की राजधानी कीव की ओर सेना बढ़ी। वहीं पूर्व में डोनबास के रास्ते खारकीव की ओर रूस की आर्मी आगे बढ़ रही थी।
- दक्षिण के इलाके से भी यूक्रेन में रूसी सैनिक पहुंच गए। दक्षिण में क्रीमिया के रास्ते ये रूसी सैनिक क्रीमिया के रास्ते ओडेसा, जापोरिज्जिया और मारियूपोल की तरफ आए।
- बीते एक साल में रूस ने अपनी ताकत से यूक्रेन के कई अहम शहरों और बंदरगाहों पर कब्जा कर लिया। लेकिन यूक्रेन चुप नहीं बैठा। जवाबी कार्रवाई लगातार जारी रही। जहां रूस कमजोर पड़ा, उस शहर पर यूक्रेन ने फिर अपना कब्जा कर लिया।
जानिए कैसे दोनों देशों को महंगी पड़ी जंग
रूस और यूक्रेन की इस जंग के एक साल के दौरान दोनों देशों को काफी नुकसान हुआ। खासकर दोनों देशों के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए। रूस में तो राष्ट्रपति पुतिन ने सेना में युवाओं के लिए भर्ती निकाली तो कई युवकों ने डरकर रूस ही छोड़ दिया। क्योंकि जंग में बड़ी संख्या में दोनों ओर के सैनिक मारे गए। पश्चिमी देशों के अधिकारियों और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस युद्ध में रूस के 1.80 लाख और यूक्रेन के 1 लाख सैनिक या तो मारे गए, या फिर घायल हुए हैं।
सैनिकों की मौत: यूक्रेन का दावा
यूक्रेन ने दावा किया है कि 23 फरवरी 2023 तक रूस के 1,45,850 सैनिक मारे गए हैं। हालांकि यूक्रेन ने अपनी ओर के मारे गए सैनिकों की मौत का आंकड़ा नहीं बताया।
रूस ने ये किया दावा
उधर, रूस ने पिछले साल सितंबर में सैन्य मौतों का आधिकारिक आंकड़ा दिया था। तब रूस ने बताया था कि इस जंग में उसके करीब 6 हजार सैनिक मारे जा चुके हैं। हालांकि, रूस की न्यूज वेबसाइट मॉस्को टाइम्स ने बताया है कि 17 फरवरी 2023 तक रूस के 14,709 सैनिक मारे जा चुके हैं। हालांकि रूस सैनिकों की मौत के आंकड़े देने और जंग के बारे में ज्यादा जानकारी देने से शुरू से ही बचता रहा है।
युद्ध से हिल गई दुनिया, ग्लोबल जीडीपी को लगा करारा झटका
दो देशों के इस युद्ध में दुनिया की इकोनॉमी पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा। दुनिया जब कोरोना से उबर रही थी और अपनी इकोनॉमी सुधारने में लगी हुई थी, तभी दोनों देशों में जंग शुरू हो गई। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को करारी चोट पहुंची। आईएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पिछले साल वैश्विक जीडीपी ग्रोथ 3.2 फीसदी होने का अनुमान लगाया था, जिसे अब घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया गया है। 2024 में यह 3.4 फीसदी होने का अनुमान है।
जंग से दुनिया कई देशों में खाद्यान्न की आ गई किल्लत
रूस और यूक्रेन के बेल्ट में दुनिया की सबसे ज्यादा गेहूं की पैदावार होती है। दुनिया का करीब 25 फीसदी गेहूं इन दोनों देशों में ही होता है। लेकिन जंग के कारण कई देशों में गेहूं की किल्लत हो गई। क्योंकि यूक्रेन से गेहूं इन देशों तक पहुंच ही नहीं सका। खासकर मिडिल ईस्ट यानी खाड़ी देशों और अफ्रीकी देशों में खाद्यान्न के लिए हाहाकर मच गया। तब भारत ने इन देशों की पूर्ति की। जंग से कई देशों में खाना दूभर हो गया।
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