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Nuclear War: दुनियाभर में भुखमरी, 5 अरब से ज्यादा मौत... अमेरिका और रूस के बीच अगर परमाणु युद्ध हुआ तो क्या-क्या होगा, स्टडी में सामने आईं शॉकिंग बातें

Nuclear War US Russia Study: इस बड़े युद्ध का खतरा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से बढ़ गया है। शोधकर्ताओं ने गणना प्रत्येक देश के परमाणु हथियारों के आधार पर की है। इनमें ब्रिटेन सहित नौ देश हैं, जिनके पास वर्तमान में 13,000 से अधिक परमाणु हथियार हैं।

Written By: Shilpa
Published : Aug 16, 2022 17:38 IST, Updated : Aug 16, 2022 17:48 IST
Nuclear War US Russia
Image Source : PIXABAY Nuclear War US Russia

Highlights

  • अमेरिका-रूस के बीच हो सकता है युद्ध
  • पूरी दुनिया के लिए घातक होगी परमाणु जंग
  • पृथ्वी के वातावरण को तबाह करेंगे हथियार

Nuclear War: अमेरिका और रूस के बीच दशकों से जारी तनाव अब भी पहले जैसा बना हुआ है। अब एक नई स्टडी में हैरान कर देने वाली बातें सामने आई हैं। इसमें पता चला है कि अगर इन दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध होता है, तो वैश्विक स्तर पर अकाल पड़ जाएगा और दुनिया की दो तिहाई आबादी खत्म हो जाएगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि पूर्ण पैमाने पर होने वाले युद्ध के दौरान भूख की वजह से 5 अरब से ज्यादा लोग मारे जाएंगे। इन्होंने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए दिखाया है कि युद्ध में हथियारों की वजह से ऊपरी वायुमंडल काला हो जाएगा, जो सूर्य को अवरुद्ध कर देगा। इससे दुनियाभर में फसल बर्बाद हो जाएगी। 

स्टडी के प्रमुख लेखक और अमेरिका के न्यूजर्सी में रटगर्स यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर लिली शिया ने कहा, 'आंकड़ों ने हमें एक बात बताई है। हमें हमेशा परमाणु युद्ध को होने से रोकना है।' मॉडलिंग छह युद्ध परिदृश्यों के तहत हुई है, और इस पर नए सिरे से प्रकाश डालती है। इसमें पांच भारत-पाकिस्तान के बीच लड़े जाने वाले युद्ध और एक बड़ा अमेरिका-रूस युद्ध शामिल है। इस बड़े युद्ध का खतरा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से बढ़ गया है। शोधकर्ताओं की गणना प्रत्येक देश के परमाणु हथियारों के आधार पर की गई है। इनमें ब्रिटेन सहित नौ देश हैं, जिनके पास वर्तमान में 13,000 से अधिक परमाणु हथियार हैं।

बड़े स्तर पर भुखमरी फैलेगी

विशेषज्ञों को पता चला है कि अगर दो नए परमाणु संपन्न देशों के बीच भी संघर्ष होता है, तो उससे खाने का सामान नष्ट हो जाएगा और इसकी वजह से बड़े स्तर पर भुखमरी होगी। कम्युनिटी अर्थ सिस्टम मॉडल नाम के एक जलवायु पूर्वानुमान उपकरण ने विभिन्न देशों में मक्का, चावल, गेहूं और सोयाबीन पर युद्ध के प्रभाव का अनुमान लगाया है। शोधकर्ताओं ने पशुधन चरागाह और समुद्री मत्स्य पालन में अनुमानित परिवर्तनों की भी जांच की है। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति में, मॉडलिंग के तहत पांच वर्षों के भीतर वैश्विक औसत खाद्य आपूर्ति में सात प्रतिशत की कमी आई है। अगर युद्ध और घातक हुआ, जैसे अमेरिका और रूस के बीच, तो उसके खत्म होने के तीन से चार साल बाद तक ये आंकड़ा 90 फीसदी तक जा सकता है। 

डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि रूस और अमेरिका जैसे प्रमुख निर्यातकों सहित अन्य देशों में भी फसल की गिरावट सबसे गंभीर होगी। स्टडी में कहा गया है कि युद्ध के कारण प्रतिबंध लगाए जाएंगे और अफ्रीका और मध्य पूर्व के आयात पर निर्भर देशों में गंभीर संकट पैदा हो जाएगा, जिससे वैश्विक खाद्य बाजारों में स्थिति खराब हो जाएगी। यहां तक कि सात फीसदी की गिरावट 1961 के सबसे बडे़ रिकॉर्ड की संख्या को भी पार कर जाएगी। युद्ध के बड़े परिदृश्य में दो साल के भीतर पृथ्वी के 75 फीसदी से अधिक हिस्सों में भुखमरी आ जाएगी और 5 अरब से अधिक लोगों की मौत होगी। 

कचरा कम करने से भी नहीं होगा लाभ

दुनिया की वर्तमान आबादी की संख्या इस वक्त करीब 8 अरब है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जानवरों को खिलाए जाने वाले चारे या दूसरे सामान को इंसानी खाने के तौर पर इस्तेमाल करने या फिर कचरे को कम करने से भी अधिक फायदा नहीं मिलेगा। प्रोफेशर शिया का कहना है, 'भविष्य के काम फसल के मॉडल में और भी बारीकियां लेकर आएंगे।' इसमें उदाहरण के तौर पर बताया गया है कि समताप मंडल के गर्म होने से ओजोन परत नष्ट हो जाएगी, सतह पर अधिक पराबैंगनी विकिरण पैदा होगा और हमें उसके खाद्य आपूर्ति पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने की जरूरत है।

कोलोराडो यूनिवर्सिटी में जलवायु वैज्ञानिक वाशिंगटन डीसी जैसे विशिष्ट शहरों के लिए विस्तृत सूट मॉडल बना रहे हैं। स्टडी के सह लेखक एलन ओबोक भी रटबर्ग यूनिवर्सिटी से हैं। उनका कहना है कि शोधकर्ताओं के पास पहले से ही अधिक से अधिक जानकारी है, ये जानने के लिए कि किसी भी तरह का परमाणु युद्ध वैश्विक खाद्य प्रणालियों को खत्म कर देगा और इस प्रक्रिया में अरबों लोगों की मौत हो जाएगी। उनका कहना है, 'अगर परमाणु हथियार मौजूद हैं, तो उनका इस्तेमाल किया जा सकता है और दुनिया कई बार परमाणु युद्ध के करीब आई है। लंबे वक्त तक समाधान यही है कि परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। परमाणु हथियारों पर रोक वाली पांच साल पुरानी संयुक्त राष्ट्र की संधि को 66 देशों ने मंजूरी दी है लेकिन नौ परमाणु संपन्न देशों में से किसी से भी इसे अनुमति नहीं मिली है।'

नौ देशों को भी हस्ताक्षर करने की जरूरत

उन्होंने कहा, 'हमारे काम ने ये स्पष्ट कर दिया है कि उन नौ देशों के लिए ये वक्त विज्ञान और बाकी दुनिया को सुनने और संधि पर हस्ताक्षर करने का है।' इस साल की शुरुआत में एक अन्य अमेरिकी टीम को पता चला था कि अमेरिका और रूस के बीच होने वाले परमाणु युद्ध से 'लिटिल आइस एज' शुरू होगी। यानी हथियारों की वजह से वातावरण पर इतना घातक प्रभाव पड़ेगा, जिससे मौसम ठंडा हो जाएगा और हर तरफ बर्फ दिखाई देगी। जो हजारों साल तक रह सकती है। विस्फोट होने के बाद पहले महीने में औसत तापमान करीब 13 डिग्री फारेनहाइट तक गिर जाएगा। यह सबसे पहले हिमयुग के मुकाबले अधिक है। जो 11,700 साल पहले खत्म हुआ था। इसकी वजह से वूली मैमथ की मौत हो गई थी।   

 
एक बार जब धुंआ ऊपरी वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है तो यह विश्व स्तर पर फैलता है और सभी को प्रभावित करता है। इसके अलावा एक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र भी शुरू में और नई महासागरीय अवस्था में तबाह हो जाएगा, जिसका मत्स्य पालन और अन्य सेवाओं पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। इस नई स्टडी को नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

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