Highlights
- नीदरलैंड मांस से काफी दूर हो जाएगा
- लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं
- सार्वजनिक विज्ञापन बंद कर दिए जाएंगे
Netherlands: दुनिया का एक ऐसा देश जहां 90 फ़ीसदी लोग मांसाहारी है फिर भी हैरान कर देने वाली बात है कि यहां आप लोग मांस से दूरी बना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं नीदरलैंड की। नीदरलैंड के एक शहर हार्लेम में किए गए एक फैसले से लग रहा है कि अब नीदरलैंड मांस से काफी दूर हो जाएगा। नीदरलैंड ने इशारों ही इशारों में लोगों को संकेत दे दिया है कि अब किसी भी तरीके से मीट के इस्तेमाल को कम करना चाहिए।
दरअसल, आपको बता दें कि हार्लेमें में मीट के उत्पादन में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए मीट के विज्ञापनों पर बैन लगाने का फैसला लिया गया है। इस फैसले के बाद कई लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं लेकिन एक तबका किसानों का है जो काफी नाराज हुआ है। ऐसे में आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि नीदरलैंड अब मीट से दूरी बना रहा है, आइए इस लेख के माध्यम से समझते हैं।
दुनिया का पहला ऐसा शहर
नीदरलैंड के इस शहर में फैसला लिया गया कि साल 2014 में हार्लेमें में मीट के सभी सार्वजनिक विज्ञापन बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद बस, बस शेल्टर, सर्वजनिक हार्डिंग या अन्य मार्केट में मांस के विज्ञापन नहीं दिखाई देंगे। कई रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा माना जा रहा है कि दुनिया का पहला शहर है जिसने मांस के विज्ञापन के खिलाफ इतना ठोस कदम उठाया है। इस बैन के पीछे का उद्देश्य सिंपल है कि लोगों को मांस खाने की इच्छा को कम करना और मांस की खपत में कटौती करना। हालांकि अब मीट पर बैन लगाने की बात नहीं है फिलहाल सिर्फ उसके विज्ञापन को लेकर बात की जा रही है।
इस वजह से लिया गया फैसला
नीदरलैंड में मांस का उपयोग बड़े पैमाने पर की जाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 95 फ़ीसदी डच लोग मांस खाते हैं और इनमें 20 फ़ीसदी भी ऐसे लोग हैं जो हर रोज मांस के बिना नहीं रह सकते हैं। इन आंकड़ों को देखते हुए सरकार कोशिश कर रही है कि इसे ज्यादा से ज्यादा जितना कम किया जा सके। अब आपके मन मे सवाल आ रहा होगा कि आखिर इस तरह का फैसला क्यों लिया जा रहा है। नीदरलैंड के लोग क्लाइमेट चेंज को लेकर काफी जागरूक हो गए हैं। यह फैसला क्लाइमेट चेंज को लेकर ही लिया गया है। देश में काफी लंबे समय से क्लाइमेट चेंज को लेकर बहस चल रही थी कि किस तरह से मीट की वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसे में इस तरह का फैसला लेने से दुनिया भर में नीदरलैंड का स्वागत किया जा रहा है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
कई विशेषज्ञ और वैज्ञानिक मांसाहार को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते रहे हैं उनका मानना है कि मांस से दुनिया के कार्बन फुटप्रिंट पर असर पड़ता है। इसके अलावा यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, मीट इंडस्ट्री और पशुपालन ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का सबसे बड़ा मुख्य स्रोत माना जाता है। वहीं कई रिसर्च भी सामने आ चुके हैं कि ग्लोबल फूड प्रोडक्शन से प्लेनेट हीटिंग की दिक्कत बढ़ रही हैं।
आपको बता दें कि कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले जंगलों को जानवर के चरने के लिए काटा जाता है पेड़ पौधों की पर्याप्त मात्रा में कमी हो रही है। इसके अलावा चारा उगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले उर्वरक नाइट्रोजन से भरपूर होते हैं, जो वायु, जल प्रदूषण जलवायु परिवर्तन और ओजोन दिक्कतों को बढ़ावा दे रहे हैं। ज्यादा पशुधन से मीथेन गैस भी तेजी से बढ़ रही है और यह एक ग्रीन हाउस गैस है।