Highlights
- क्या लिज ट्रस का इस्तीफा भारत के लिए झटका है?
- लिज ट्रस को भारत की ‘दोस्त’ के तौर पर जाना जाता है।
- लिज ट्रस अपने पद पर सिर्फ 6 हफ्ते ही रह पाईं।
Liz Truss Resignation Effect on India: ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने सिर्फ 6 हफ्तों के छोटे से कार्यकाल के बाद गुरुवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। देश की राजधानी लंदन स्थित 10 डाउनिंग स्ट्रीट में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA) नहीं करा सकीं। लिज ट्रस सिर्फ एक दिन पहले बुधवार तक संसद में खुद को ‘फाइटर’ बता रही थीं और उन्होंने कहा था कि वह ‘जिम्मेदारी बीच में छोड़ने वाली’ शख्स नहीं हैं। हालांकि 24 घंटे भी नहीं बीते कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया।
भारत के साथ मजबूत संबंधों की पक्षधर रही हैं ट्रस
लिज ट्रस ने ब्रिटेन की विदेश और व्यापार मंत्री के रूप में भारत के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंधों की वकालत की थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह भारत के साथ आगे बढ़ने की तरफ देख रही थीं। ट्रस ने कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व चुनाव में भारतीय मूल के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक को मात देकर पिछले महीने ही 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर दस्तक दी थी। पद पर 45 दिन रहने के बाद इस्तीफा देकर वह ब्रिटेन के इतिहास में सबसे कम समय तक रहने वाली प्रधानमंत्री बन गयी हैं। इससे पहले 1827 में जॉर्ज कानिंग अपनी मृत्यु तक 119 दिन ही इस पद पर रहे थे।
पिछले साल ETP पर किए थे दस्तखत
भारत के मोर्चे पर बात करें तो बोरिस जॉनसन के नेतृत्व वाली सरकार में पूर्व अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री रहीं ट्रस ने भारत-ब्रिटेन उन्नत व्यापार साझेदारी (ETP) पर पिछले साल मई में हस्ताक्षर किए थे। वह ब्रिटेन के लिए ब्रेग्जिट के बाद की बड़ी उपलब्धि के रूप में इस साल के अंत तक की समय-सीमा को ध्यान में रखते हुए FTA को लेकर बातचीत जारी रखना चाह रही थीं। उन्होंने भारत को ‘बड़ा और अहम अवसर’ करार दिया था और उनका मानना है कि भारत और ब्रिटेन ‘व्यापार में जो गतिशीलता बनी है, उसे लेकर बेहतर स्थान पर हैं।’
ETP पर ट्रस ने दिया था बड़ा बयान
ETP पर साइन करने के तुरंत बाद ट्रस ने कहा था, ‘हम विस्तृत व्यापार समझौते पर विचार कर रहे हैं जिसमें सब शामिल हो, वित्तीय सेवा से लेकर कानूनी सेवा तक, डिजिटल और आंकड़ों तक, वस्तु से लेकर कृषि तक। हम मानते हैं कि इस समझौते पर शीघ्र हस्ताक्षर होने की प्रबल संभावना है, जिससे दोनों पक्षों की ओर कर कम होगा, दोनों पक्ष एक दूसरे के बीच अपने सामान की आपूर्ति देखेंगे।’ ट्रस ने पार्टी के कंजर्वेटिव फ्रेंड्स ऑफ इंडिया (CFIN) के कार्यक्रम में दोहराया था कि द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के मामले में ‘वह बहुत ही प्रतिबद्ध’ हैं।
FTA को लेकर काफी प्रतिबद्ध थीं ट्रस
ट्रस ने प्रतिबद्धता जताई थी कि वह भारत-ब्रिटेन FTA करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि बहुत मुमकिन है कि यह समझौता दिवाली तक हो जाएगा, लेकिन इस साल के अंत तक इसे हर हाल में अमली जामा पहना दिया जाएगा। ट्रस लगातार हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर जोर देती रही हैं ताकि ‘स्वतंत्र नेटवर्क’ के लक्ष्य को हासिल किया जा सके और चीन एव रूस की आक्रामकता का मुकाबला किया जा सके। उन्होंने वादा किया कि ब्रिटेन का वीजा प्रशासन भारत से ‘बेहतरीन प्रतिभाओं’ को आकर्षित करना जारी रखेगा।
क्या भारत के लिए झटका है ट्रस का जाना?
अब सबसे अंत में सवाल यह आता है कि क्या लिज ट्रस का इस्तीफा भारत के लिए झटका है। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा नहीं है क्योंकि सिर्फ प्रधानमंत्री बदलने से भारत के प्रति ब्रिटेन की पॉलिसी में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आने वाला। इसके अलावा भारत एक उभरती हुई विश्व शक्ति है और ब्रिटेन समेत दुनिया के ज्यादातर देश उसके साथ अच्छा रिश्ता ही रखना चाहेंगे। ऐसे में लिज ट्रस के रूप में भले ही भारत का एक ‘दोस्त’ पीएम पद से हटा हो, लेकिन जो इस कुर्सी पर आएगा वह भी भारत का ‘दोस्त’ ही होगा।