संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा: पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई लड़कियों के साथ जबरन धर्मांतरण और शादी के किस्से आम हैं। सिंध में तो शायद ही कोई ऐसा महीना बीतता होगा जब किसी हिंदू लड़की के साथ दरिंदगी की खबरें सामने न आएं। वहीं, इस मुल्क में ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की जिंदगी भी चुनौतियों से भरी रहती है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को इन मासूम बच्चियों की चीखों का सुनाई देना एक बड़ी घटना है। दरअसल, यह मुद्दा कुछ एक्सपर्ट्स के जरिए संयुक्त राष्ट्र में जोर-शोर से उठा है।
‘सरकार जांच के लिए तुरंत कदम उठाए’
संयुक्त राष्ट्र के जाने-माने स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक गुट ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की कम उम्र की बच्चियों और युवतियों के अपहरण, जबरन विवाह और धर्मांतरण में कथित वृद्धि पर चिंता जताई है। इस गुट ने इस तरह की प्रथाओं पर अंकुश लगाने और पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए तत्काल प्रयास करने का आह्वान किया है। विशेषज्ञों ने कहा, ‘हम सरकार से आग्रह करते हैं कि इन कृत्यों को निष्पक्ष रूप से और पाकिस्तान के कानून तथा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के अनुरूप रोकने एवं पूरी तरह से जांच करने के लिए तत्काल कदम उठाएं।’
एक्सपर्ट्स ने कहा- अपराधियों को दें सजा
साथ ही इन एक्सपर्ट्स ने पाकिस्तान की सरकार से मांग की है कि अपराधियों को पूरी तरह से जवाबदेह ठहराया जाया। एक्सपर्ट्स ने सोमवार को कहा कि वे यह सुनकर बहुत परेशान हैं कि 13 साल की कम उम्र की लड़कियों को उनके परिवारों से अगवा किया जा रहा है और उनके घर से दूर ले जाकर उनकी तस्करी की जा रही है। एक्सपर्ट्स ने कहा कि कभी-कभी उनसे दोगुनी उम्र के पुरुषों से उनकी शादी की जाती है और धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। उन्होंने एक बयान में कहा कि यह सब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन है।
अपराधियों के साथ खड़ा नजर आता है प्रशासन
बता दें कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों के अपहरण और धर्मपरिवर्तन की खबरें आती रहती हैं। कई मामलों में प्रशासन भी या तो हाथ पर हाथ धरे नजर आता है, या फिर अपराधियों के साथ खड़ा मिलता है। सिंध में कई इलाके ऐसे हैं जहां हिंदू एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों को ज्यादती का शिकार होना पड़ता है। कई मामलों में तो अदालतों से भी न्याय नहीं मिल पाता। इन मामलों को खुद पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता उठाते रहे हैं लेकिन कट्टरपंथियों के असर के चलते सरकार भी खामोश होकर तमाशा देखती रहती है।