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Explainer: जंग के कारण रूस की डिफेंस इंडस्ट्री पर बुरा असर, नहीं कर पा रहा हथियारों की सप्लाई, क्या भारत पर पड़ेगा प्रभाव?

रूस कम से कम इस दशक के अंत तक बढ़ती सैन्य संसाधनों की वैश्विक डिमांड को पूरा करने में उतना सक्षम नहीं रहेगा। इनमें सबसे अहम खरीदार भारत है, जिसने रूस के साथ ब्रह्मोस से लेकर एस.400 मिसाइल रोधक प्रणाली तक के लिए डील कर रखी है।

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published : Apr 21, 2023 11:07 IST, Updated : Apr 21, 2023 11:51 IST
जंग के कारण रूस की डिफेंस इंडस्ट्री पर बुरा असर, नहीं कर पा रहा हथियारों की सप्लाई, क्या भारत पर पड़े
Image Source : FILE जंग के कारण रूस की डिफेंस इंडस्ट्री पर बुरा असर, नहीं कर पा रहा हथियारों की सप्लाई, क्या भारत पर पड़ेगा असर?

India Russia Defence Trade: रूस और भारत परंपरागत रूप से मित्र हैं। रूस ने हर मौके पर भारत की मदद की है। यही कारण है कि रूस के साथ भारत का कारोबार भी पिछले दशकों में बढ़ा है। रूस से सैन्य साजोसामान खरीदने वालों में सबसे अव्वल खरीदार भारत है। लेकिन ये कहानी बदली रूस और यूक्रेन की जंग के बाद। फरवरी 2022 में जब रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू हुई तो रूस को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। एक तो लंबा युद्ध और दूसरा उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध। इस कारण से रूस सैन्य साजोसामान और हथियारों की आपूर्ति करने में पिछड़ गया। क्योंकि वह युद्ध में उलझ गया। रूस से भारत परंपरागत रूप से हथियार खरीदता है और सैन्य साजोसामान बनाने की टेक्नोलॉजी तक। जंग शुरू होने के बाद रूस की डिफेंस इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई हैै। वह दुनिया के देशों को हथियार नहीं बेच पा रहा है। जानिए क्या भारत पर इसका असर पड़ेगा?

रूस जब से जंग शुरू हुई है, लगातार यूक्रेन से युद्ध लड़ रहा है। चूंकि यूक्रेन को पूरा ‘नाटो‘ संगठन जिसमें अमेरिका भी शामिल है, बड़ी मात्रा में आर्थिक और सैन्य मदद कर रहे हैं। इस कारण रूस को भी अपनी पूरी ताकत झोंकना पड़ रहा है। यही कारण है कि जंग के कारण रूस की डिफेंस इंडस्ट्री अपने सैनिकों को ही हथियार और अन्य सैन्य उपकरणों की आपूर्ति ठीक से नहीं कर पा रही है। 

ब्रह्मोस से एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की डील तक पर असर

रूस की डिफेंस इंडस्ट्री इस युद्ध में उलझकर रह गई है। इस कारण वह दुनिया को हथियारों की मदद उस तरह से नहीं कर पा रही है, जितना जंग और आर्थिक प्रतिबंध लगने के पहले करती थी। बताया तो यह जा रहा है कि रूस कम से कम इस दशक के अंत तक बढ़ती सैन्य संसाधनों की वैश्विक डिमांड को पूरा करने में उतना सक्षम नहीं रहेगा। इनमें सबसे  अहम खरीदार भारत है, जिसने रूस के साथ ने ब्रह्मोस से लेकर एस.400 मिसाइल रोधक प्रणाली तक के लिए डील कर रखी है। साथ ही रूस की टेक्नोलॉजी से भारत और रूस ने मिलकर कई हथियार बनाए हैं, इनमें ब्रह्मोस जैसी मिसाइल भी शामिल है। लेकिन दोनों देशों के साझा कार्यक्रम भी जंग के कारण प्रभावित हुए हैं। 

भारत के लिए क्या है चुनौती?

ऐसे में भारत के लिए यह चुनौती होगी कि अपने सैन्य हथियारों की पूर्ति यदि रूस से नहीं होती है तो आगे किस तरह काम करना होगा। क्योंकि भारत की अपनी सैन्य जरूरतें हैं, जिनका तुरंत समाधान होना जरूरी है। भारत को चीन से एलएसी पर, हिंद महासागर में और एलओसी पर पाकिस्तान से निपटने के लिए अपनी सेना को सैन्य साजोसामान के साथ मजबूत बनाए रखने की चुनौती हमेशा रहती है। हालांकि रूस यूक्रेन की जंग के बाद भी भारत ने अपने रक्षा विकल्प खुले रखे हैं।

रूस बड़ा रक्षा साझेदार, पर जंग में उलझा, भारत ने खुले रखे ये विकल्प

 भारत ने विकल्प के तौर पर फ्रांस से राफेल, इटली, अमेेरिका से बड़े पैमाने पर सैन्य साजोसामान और हथियारों के लिए डील की है। अमेरिका से होवित्जर तोप मिली है। लेकिन फिर भी रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार रहा है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के सैन्य संतुलन के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय सेना के बख्तरबंद वाहनों में 90 फीसदी से ज्यादा, वायुसेना और नौसेना द्वारा संचालित लड़ाकू विमानों में 69 फीसदी और नौसेना की पनडुब्बियों और युद्धपोतों में 44 फीसदी हिस्सा रूस से मिले हथियारांे और सैन्य साजोसामान का है। इन पोतों में से 65 प्रतिशत रूसी मिसाइलें कैरी की जाती हैं। 

भारत के लिए रूस क्यों रहा है अहम रक्षा साझेदार?

रूस से भारत इसलिए हथियार खरीदने को प्राथमिकता देता है, क्योंकि पश्चिमी देश कुछ हथियार और रक्षा टेक्नोलॉजी को भारत के साथ साझा करने से कतराते हैं। लेकिन रूस ऐसा नहीं करता। रूस के सैन्य उपकरण आमतौर पर पश्चिमी समकक्षों की तुलना में सस्ते भी होते हैं। 

रूस की डिफेंस इंडस्ट्री को रक्षा बाजार में अपना जमीन खोने का डर

जंग और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का प्रभाव रूस की डिफेंस इंडस्ट्री पर पड़ा है। रूस की डिफेंस इंडस्ट्री कंपोनेंट और कुशल लेबर की कमी से भी जूझ रही है। ऐसे में मास्को के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि रक्षा निर्यात बाजार में उसका जो कद है, वो कुछ कम न हो जाए, इस पर काम करना होगा। रक्षा निर्यात बाजार में जमीन खोेने का डर भी रूस को है। क्योंकि सैन्य जरूरतों के लिए फिर दूसरे देशों से डील करने की संभावनाएं तलाश की जाने लगती हैं। वहीं कई देश अपने देश में ही रक्षा उत्पादन करने पर भी फोकस करते हैं।

रूसी डिफेंस इंडस्ट्री की चुनौतियों से भारत को क्या समस्या?

भारत रूस से सबसे ज्यादा रक्षा सौदे करता है। लेकिन रूस के जंग में उलझने और उस पर वैश्विक प्रतिबंध के कारण भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है। नई दिल्ली को रूस से प्रमुख सैन्य उपकरण, स्पेयर पार्ट्स और गोला-बारूद की डिलीवरी में देरी का सामना करना पड़ा है। इनमें इसमें पांच एस-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली की डिलीवरी में देरी शामिल है। जिसके लिए भारत ने 2018 में रूस को 5.4 बिलियन डॉलर का ऑर्डर दिया था। 

ऐसे में नई दिल्ली ने भी अपनी पहल पर रूस से अतिरिक्त उपकरण खरीदने की योजना को अभी ठंडे बस्ते में डाल दिया है।  इसमें 48 अतिरिक्त एमआई-17वी-5 मध्यम-लिफ्ट हेलीकाप्टरों की खरीद की योजना शामिल है। अब भारत अपने घरेलू हेलिकॉप्टर निर्माण कार्यक्रम पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा।  भारत अपनी क्षमताओं को दुरुस्त करने में जुटा है। वैसे देखा जाए तो रूस के जंग में उलझने से भारत को प्रभाव जरूर पड़ा है, लेकिन भारत के पास विकल्प खुले हैं। 

भारत की अमेरिका, फ्रांस से भी है बड़ी डिफेंस डील

अमेरिका से भारत का रक्षा कारोबार काफी बढ़ा है। अमेरिकी कंपनियों ने भारत के लिए परिवहन विमान, पनडुब्बी रोधक जंगी जेट, अटैक करने वाले खतरनाक हेलिकॉप्टर और हॉवित्जर तोप के लिए 2008 से अब तक 15 बिलियन डॉल्र से अधिक मूल्य के एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर चुका है। 

यही नहीं, फ्रांस, इजरायल, दक्षिण कोरिया और स्पेन की फर्मों ने भी इस दौरान कई अहम रक्षा समझौते किए हैं। इनमें भारत सरकार के अच्छे इनिशिएटिव के कारण फ्रांस से बड़ा रक्षा आयात सौदा हुआ। इसमें 36 राफेल फाइटर जेट की डील शामिल है। यह 8.7 बिलियन डॉलर का सौदा है। इससे पहले 2005 में भारत ने छह कलवरी श्रेणी की हमलावर पनडुब्बियों के लाइसेंस और प्रोडक्शन के लिए फ्रांस के साथ 3.5 बिलियन डॉलर का सौदा किया था।

जंग के कारण 2030 तक प्रभावित रह सकता है रूस का रक्षा निर्यात

अमेरिका से उन्नत किस्त के हेलिकॉप्टर खरीदने के सौदे से रूस के हेलिकॉप्टरों की जो जरूरत महसूस हो रही थी, वह काफी हद तक कम हो सकती है। दरअसल, रक्षा खरीद एक दिन का काम नहीं होता, इसमें दशक लग जाता है। रूस की डिफेंस इंडस्ट्री जिस तरह जंग से प्रभावित हुई है, उसकी वजह से भारत को इस दशक के अंत तक यानी 2030 तक रूस से रक्षा संसाधनों की आपूर्ति में व्यवधान के साथ रहना सीखना होगा। क्योंकि भारत की रक्षा संसाधनों की डिमांड रूस संभवतः पूरी तरह से पूरी नहीं कर सकता।

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