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द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों ने 2 लाख विदेशी युवतियों को बनाया था "यौन गुलाम", अब आया अदालत का ये बड़ा फैसला

जापानी सैनिकों द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में मौज-मस्ती और शारीरिक भूख मिटाने के लिए 2 लाख से अधिक विदेशी युवतियों को सेक्स गुलाम यानि यौन गुलाम बनाया गया था। इसमें से ज्यादातर लड़कियां दक्षिण कोरिया की थीं। अब करीब 80 वर्ष बाद कोर्ट ने इस पर बड़ा फैसला देते हुए जापान सरकार को पीड़ितों को मुआवजे के लिए आदेशित किया है।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Nov 24, 2023 9:47 IST, Updated : Nov 24, 2023 9:47 IST
हक में फैसला आने के बाद कोर्ट से बाहर आती 95 वर्षीय एक पीड़िता, जिसे जापानी सैनिकों ने बनाया था यौन
Image Source : AP हक में फैसला आने के बाद कोर्ट से बाहर आती 95 वर्षीय एक पीड़िता, जिसे जापानी सैनिकों ने बनाया था यौन गुलाम

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों ने विदेशी लड़कियों को अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए सेक्स गुलाम बना रखा था। प्रत्येक सैनिक के लिए सेक्स गुलाम उपलब्ध थी। सेक्स गुलाम बनाई गई युवतियों की संख्या 2 लाख से अधिक थी। जापानी सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में जमकर इनका यौन शोषण किया था। जबरन कई वर्षों तक अपने साथ रखा था। सेक्स गुलाम बनाई गई इन युवतियों को एक ही काम दिया गया था, वह था सैनिकों की शारीरिक भूख मिटाना। मगर इस मामले में अब दक्षिण कोरिया की एक अदालत ने जापान को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने युद्धकालीन यौन दासता के सभी पीड़ितों को 1,54,000 डॉलर यानि प्रत्येक को 1 करोड़ 28 लाख रुपये से अधिक का बतौर मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया है।

अदालत ने कहा कि पीड़ितों का "जबरन अपहरण किया गया। फिर उन्हें यौन दासता में फंसाया गया"। दक्षिण कोरिया के उच्च न्यायालय ने गुरुवार को निचली अदालत के उस फैसले को पलटते हुए जापान को युद्ध के समय जबरन यौन दासता को मजबूर की गई महिलाओं को मुआवजा देने का आदेश दिया है। जबकि निचली अदालत ने इस मांग को खारिज कर दिया था। जीवित बची 16 महिलाओं ने कोर्ट में अपील दायर की थी। मगर 2021 में निचली अदालत ने कहा था कि महिलाएं मुआवजे की हकदार नहीं हैं। इसके लिए टोक्यो के लिए "संप्रभु प्रतिरक्षा" का हवाला दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि यदि पीड़ितों के पक्ष में फैसला सुनाया तो एक राजनयिक घटना हो सकती है।

युद्ध के बाद सामान्य जिंदगी नहीं जी सकीं महिलाएं

जिन महिलाओं और लड़कियों को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यौन गुलाम बनाया गया था, वह सभी युद्ध के बाद सामान्य जिंदगी नहीं जी सकीं थी। एएफपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालती दस्तावेज़ के अनुसार, सियोल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को फैसला सुनाया  "यह कहना उचित है कि अवैध आचरण के मामले में संप्रभु प्रतिरक्षा का सम्मान नहीं किया जाना चाहिए"। इसलिए जापान को प्रत्येक शिकायतकर्ता को लगभग 1 करोड़ 28 लाख से अधिक का भुगतान किया जाए। अदालत ने कहा कि पीड़ितों का "जबरन अपहरण किया गया या उन्हें यौन दासता में फंसाया गया"। परिणामस्वरूप उन्हें "नुकसान" उठाना पड़ा और "युद्ध के बाद वे सामान्य जीवन नहीं जी सकीं"।

जीवित बची 95 वर्षीय पीड़िता ने जाहिर की खुशी

सेक्स गुलाम बनाई गई एक 95 वर्षीय पीड़िता अभी भी जीवित है। उन्होंने 16 वादियों के साथ मुकदमा दायर किया था। अदालत का फैसला पक्ष में आने के बाद ली यंग-सू ने इमारत से बाहर निकलते हुए खुशी से अपनी बांहें ऊंची कर दीं और संवाददाताओं से कहा: "मैं बहुत आभारी हूं... मैं उन पीड़ितों को धन्यवाद देती हूं जो गुजर चुके हैं।" मुख्यधारा के इतिहासकारों का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 200,000 महिलाओं और लड़कियों को जापानी सैनिकों ने सेक्स गुलाम बनाया था। इनमें से ज्यादातर कोरिया, चीन सहित एशिया के अन्य हिस्सों से थीं। जापानी सैनिकों के लिए आरामदेह सेक्स गुलाम बनने के लिए उन्हें मजबूर किया गया था।

जापान ने कहा व्यावसायिक रूप से हुई थी लड़कियों की भर्ती

यह मुद्दा लंबे समय से सियोल और टोक्यो के बीच द्विपक्षीय संबंधों को खराब कर रहा है, जिसने 1910 और 1945 के बीच कोरियाई प्रायद्वीप का उपनिवेश किया था। यह फैसला तब आया है जब राष्ट्रपति यूं सुक येओल की रूढ़िवादी दक्षिण कोरियाई सरकार ने उत्तर कोरिया से बढ़ते सैन्य खतरों का संयुक्त रूप से मुकाबला करने के लिए ऐतिहासिक मतभेदों को खत्म करने और टोक्यो के साथ संबंधों में सुधार करने की मांग की है। जापानी सरकार इस बात से इनकार करती है कि वह युद्धकालीन दुर्व्यवहारों के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है। उसका कहना है कि पीड़ितों को नागरिकों द्वारा भर्ती कराया गया था और सैन्य वेश्यालयों को व्यावसायिक रूप से संचालित किया गया था। 

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