लंदन: नेपोलियन बोनापार्ट को इतिहास के महानतम योद्धाओं में गिना जाता है, लेकिन वाटरलू की लड़ाई में हुई हार ने उनके साथ-साथ यूरोप की किस्मत भी बदल गई। एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, इंडोनेशिया के सुंबावा द्वीप में 1815 में हुआ एक ज्वालामुखी विस्फोट और इसके चलते वैश्विक मौसम का खराब होना वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन की हार के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार रहा होगा। जैसा कि हमने आपको बताया, इस लड़ाई में नेपोलियन की हार ने यूरोप के इतिहास की धारा ही बदल दी।
ब्रिटेन के ‘इंपीरियल कॉलेज लंदन’ के शोधार्थियों के अनुसार इतिहासकार यह जानते हैं कि बारिश और जमीन पर कीचड़ की मौजूदगी वाली परिस्थितियों ने गठबंधन सेना को नेपोलियन को हराने में मदद की थी। जून 1815 में हुई वाटरलू की लड़ाई से ठीक दो महीने पहले ही इंडोनेशिया के सुंबावा द्वीप में माउंट टैम्बोरा नाम के ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ था, जिससे 1,00,000 लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 1816 में गर्मियों का मौसम भी नहीं आया था।
पत्रिका ‘जियोलॉजी’ में प्रकाशित इस शोध में ज्वालामुखी विस्फोट से निकले राख और नेपोलियन की हार के बीच एक संबंध पाया गया है। शोधार्थियों ने पाया कि ज्वालामुखी विस्फोट से निकले राख के गुबार के चलते वायुमंडल के ऊपरी स्तर में शार्ट सर्किट हुआ होगा, जो बादल के बनने के लिए जिम्मेदार रहा। इन बादलों ने समूचे यूरोप में बारी बारिश की, जिसने नेपोलियन की हार में एक भूमिका निभाई। इस स्टडी के सामने आने के बाद कहा जा सकता है कि इतिहास का इस महान योद्धा की हार में विरोधी सेना के साथ-साथ कुदरत का भी हाथ था।